नीति के दोहे
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बैर न दुर्जन से करें, 'सलिल' न करिए स्नेह
काला करता कोयला, जले जला दे देह
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बुरा बुराई कब तजे, रखे सदा अलगाव
भला भलाई क्यों तजे?, चाहे रहे निभाव
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असफलता के दौर में, मत निराश हों मीत
कोशिश कलम लगाइए, लें हर मंज़िल जीत
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रो-रो क़र्ज़ चुका रही, संबंधों का श्वास
भूल-चूक को भुला दे, ले-दे कोस न आस
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ज्ञात मुझे मैं हूँ नहीं, यार तुम्हारा ख्वाब
मन चाहे मुस्कुरा लो, मुझसे कली गुलाब
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