कुल पेज दृश्य

सोमवार, 6 जुलाई 2020

परिचर्चा : विषय - ज्योतिष : विज्ञान या कल्पना?

परिचर्चा :
विषय - ज्योतिष : विज्ञान या कल्पना?
*
१. सपना सराफ 'क्षिति', जबलपुर
ज्योतिष-शास्त्र निश्चित ही विज्ञान है। ये आँकड़ों के योग एवं घटाव पर आधारित होता है। ज्योतिषाचार्य आँकड़ों के ज़रिये किसी भी व्यक्ति का भूत एवं भविष्य बता सकते हैं। कभी-कभी ये ग़लत भी हो जाता है पर ऐसा तब होता है जब या तो आँकड़े सही ना हों या ज्योतिष का गहन ज्ञान ज्योतिषी को ना हो। अब यदि आप सोचें कि दो और दो को जोड़कर पाँच बन जाये तो ये तो असम्भव होगा ना ठीक इसी प्रकार कुंडली में आँकड़ों की स्थिति होती है यदि आँकड़े सही हैं एवं ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान ज्योतिषी को है तो उसकी भविष्यवाणी सही साबित होती है। कुल मिलाकर ज्योतिष विज्ञान है कल्पना नहीं।
*
२. डॉ. गायत्री शर्मा 'प्रीति', जबलपुर
ज्योतिष शास्त्र एक विज्ञान है और विज्ञान को पूरी तरह से गलत नहीं बताया जा सकता ज्योतिष विज्ञान खगोलीय पिंड के अध्ययन का विज्ञान है। ज्योतिष अनेक भविष्यवाणी करते हैं,वे कई बार गलत भी सिद्ध होती है किंतु क ई ज्योतिष की भविष्यवाणी सच साबित होती है। मैं मानती हूं कि यह उनकी साधना ज्ञान अध्ययन पर निर्भर करता है, ज्योतिष शास्त्र का अध्य यन जितना ज्यादा होगा, उसे उतना ही ज्ञान होगा ,और उसकी बातें सच साबित होंगी मेरे जीवन में कई अवसर पर ज्योतिष की बताई बात सच साबित हुई।

भारतवर्ष में ज्योतिष विज्ञान बहुत पुराना है ,और यह विज्ञान पर आधारित है। कई बार हम स्वयं पूर्वानुमान लगाते हैं ,और वह सच निकलता है ।यह हमारे अंतर्ज्ञान पर निर्भर करता है उसे क्षेत्र में हम जितना अध्ययन करेंगे हमारा ज्ञान बढ़ता जाएगा ।वह हमारे पूर्व अनुमान सही साबित होंगे ।

धर्म .व.ज्योतिष एक दूसरे के पूरक होते है। राम जन्म के बारे में पहले से बता दिया था कृष्ण के बारे में भी बता दिया था। हमारे यहां प्राचीन काल से गणनाए की जाती है ,जिनके आधार पर भविष्यवाणियां की जाती है। कभी-कभी हमारे जीवन में अनेक तरह की परेशानी आती रहती है जब कोई रास्ता नजर नहीं आता तो हम ज्योतिष शास्त्र का सहारा लेते हैं ग्रह भी हमारे जीवन पर प्रभाव डालते है।

ग्रह नक्षत्र ज्योतिष हमारे देश में इतने गहरे तक पैठ चुके हैं कि उन्हें निकालना असंभव है और इनका वैज्ञानिक आधार भी बताया जाता है। यह अलग बात है कि ज्यादातर ज्योतिष अपने अधकचरे ज्ञान पर आधारित बातें बताते हैं व लोगों का पैसा लूटते हैं। हमें अपने धर्म व कुछ सीमा तक ज्योतिष पर पूर्ण श्रद्धा व विश्वास व्यक्त करना चाहिए, परंतु जिन्हें ज्योतिष शास्त्र का पूरा ज्ञान हो उन्हीं में अपना विश्वास व्यक्त करना चाहिए कभी-कभी ज्योतिष हमारी भावनाओं के साथ खेल कर पैसा कमाते हैं, उनसे हमेशा दूर रहना है ।

*
३. डा अनिल कुमार बाजपेयी, जबलपुर
ज्योतिष शास्त्र वास्तव मे विज्ञान के ही गर्भ से निकला एक विषय है। प्राचीन भारत में गृहों, नक्षत्रो आदि की स्थिति, वेग आदि की गणना हेतू वैदिक गणित का उपयोग किया जाता था। जो दुरूह गणनाएं आज कम्प्यूटर से की जाती हैं, वे प्राचीन समय में वैदिक गणित से ही की जाती थी। ये सारे विषय ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत ही आते हैं जो पूरी तरह से गणित या विज्ञान का ही एक हिस्सा है। अतः ये कहा जाए की विज्ञान एवम् ज्योतिष साथ साथ चलते हैं तो अतिशियोक्तीं नही होगी। अब समस्या उस समय खड़ी होती है जब हम ज्योतिष शास्त्र मे घटनाओं की भविष्यवाणी तलाशने लगते हैं और नौकरी कब लगेगी, शादी कब होगी, अच्छा समय कब आयेगा, गुमा हुआ सोना कब मिलेगा आदि आदि जैसे प्रश्नों के उत्तर की उम्मीद ज्योतिष शास्त्र से लगा बैठते हैं। यदि ज्योतिष का आधार विज्ञान नही होता तो सूर्यास्त और सूर्योदय के सटीक समय, गृहण की जानकारी आदि का पता लगाना बेहद कठिन था। वास्तव में ज्योतिष केवल गृहों, उपग्रहों, नक्षत्रों से जुड़ा विषय है और इसका पृथ्वी के ऊपर लौकिक जगत में होने वाली घटनाओं के होने या ना होने से कोई सम्बंध नही हैं। ये तो हम मानवों का किया धरा है जिसमे हमने ज्योतिष को भविश्यवक्ता की तरह मानकर उससे सवाल करने लगे और इसे एक व्यवसाय ही बना डाला। मेरा अभिमत है की ज्योतिष शास्त्र भी अन्य विषयों की तरह एक विज्ञान की ही शाखा है। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा की विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में इसे एक विषय के रूप मे मान्य किया गया है।
*
४. डॉ. आलोक रंजन, जपला, झारखंड

जब हम किसी बात को सोचते हैं तो उस सोच के पीछे एक विजन छिपा रहता है वह विजन हकीकत में भी बदलता है और ज्योतिष के संबंध में तो यह बात सत्य प्रतिशत सत्य है कि यह एक खगोलीय विज्ञान है जिसके आधार पर समग्र नक्षत्रों का ग्रहों का राशियों का अध्ययन किया जाता है इस सौर मंडल में जितने भी पिंड हैं उस पिंड के लक्षण और प्रकृति के आधार पर ज्योतिष शास्त्र का निर्माण होता है और आज के ज्योति शास्त्री के विज्ञान की ही यह देन है कि सूर्य ग्रहण चंद्र ग्रहण विभिन्न प्रकार के त्योहार मकर संक्रांति का त्योहार आदि सभी निश्चित समय और तिथि पर ही हुआ करते हैं यह विज्ञान नहीं तो और क्या है ? लोग कहते हैं कि ज्योतिष एक कल्पना है, एक झूठ है| लेकिन उन्हें शायद पता ही नहीं है कि ज्योतिष कल्पना नहीं पूर्ण विज्ञान है, झूठ भी नहीं है पूर्ण सत्य है| ज्योतिष पूरी तरह गणित पर आधारित है, और गणित कभी झूँठा नही हो सकता| झूठे तो ज्योतिषी होते हैं| 10 प्रतिशत जानते हैं और 20 प्रतिशत बोलते हैं तो 10 प्रतिशत असत्य तो होना ही है| इसी को लोग कहते हैं कि ज्योतिष झूंठ है| आइऐ आपको दिखाते हैं कि कैसे? कुछ ज्योतिषी कहते हैं कि आप पर शनि की दशा चल रही है और अब आपका अनिष्ठ होना शुरू हो गया है| आप कुछ उपचार कर लें तो आपका यह संकट टल जाएगा| और इसके बाद कुछ उपाय बता देते हैं| आदमी बेचारा जैसे तैसे जोड़ तोड़ कर उस उपाय को करता है, लेकिन अच्छा कुछ भी नहीं होता उल्टे उसकी जेब ज़रूर ढीली हो जाती है| और किसी किसी के साथ कुछ अच्छा हो जाता है तो वह सोंच लेता है कि उस पर से शनि दोष समाप्त हो गया है, और फिर वह उस पंडित या उस ज्योतिषी को दान धन इत्यादि भेंट कर देता है| जबकि सच तो यह है कि पहले पर से शनि की दशा नहीं हटी लेकिन दूसरे पर से हट गई| और यह किसी जप तप या उपाय से नहीं हुआ बल्कि विज्ञान के सर्वमान्य सिद्धांत के कारण हुआ| विज्ञान और ज्योतिष के सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार कोई भी ग्रह हमेशा किसी के ऊपर नहीं रहता बल्कि अपनी चाल के अनुसार अलग अलग राशियों में जाता रहता है| जब एक निश्चित समयानुसार ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है तो उपाय करना कहाँ तक उचित है| सच तो यह है कि आकाश में मौजूद 9 ग्रह अपनी अपनी गति से चलते है और गणित के अनुसार एक खास समय पर अलग अलग राशियों में प्रवेश करते हैं| एक खास समय तक उस राशि में रहते हैं और फिर अगली राशि में चले जाते हैं| अलग अलग राशि में उनके अलग अलग प्रभाव होते हैं| कैसे आइए जानते हैं : आचार्य लोंगों ने आकाश को समझने के लिए इसे 12 भागों में बाँट दिया| हर भाग को एक नाम दे दिया जिसे हम राशि कहते हैं।कभी कभी साभार अंतरजाल से भी लेना पड़ता है सो आज लिया। धन्यवाद !
*
५. रमन श्रीवास्तव, जबलपुर

मानव ने आदि काल में जब आकाश को निहारा ग्रहों और उसके अनवरत चक्र देख कर अचरज से भर जाता रहा है,उसके ह्दय में तरह तरह के प्रश्न उठने लगे कि ये तारे सितारे क्या हैं क्या है इनकी गति और आवृति सूर्य चंद्र की गति का कैसा होता है विधान यही सब अनन्त प्रश्न बेधते थे मानव के मन मस्तिष्क को फल स्वरुप उत्कंठा जनित प्रश्नों के समाधान को वह बैचैन रहने लगा और आतुर हो उठा।

मानव स्वभाव ही ऐसा हैकि जब भी क्यों प्रश्न उठता है वह उसे सुलझाने के लिए जी जान से जुट जाता है, इसी जिज्ञासा की भूख ने ही बर्बर मानव बीसवीं शताब्दी का सभ्य मानव बना दिया है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेष्ण करने पर पता चलता है कि इसी जिज्ञासा ने हीउसे ज्योतिष शास्त्र जैसे गूढ़-गम्भीर विषयकी ओर प्रवृत किया उसने अपनी आँखों से आकाशीय ग्रह पिण्डों का अध्ययन किया और उसके निश्चित सिद्धान्त स्थिर किये, धीरे धीरे हमारे पूर्वज ज्योतिर्विज्ञान की अनेकानेक गुत्थियां सुलझाते गये और उनके सामने जो सत्य प्रोद्भूत हुआ, वह अनिर्वचनीय और सत्य के अति निकट था।ग्रहों के माध्यम से उनका भूत, वर्तमान और भविष्य स्वयं उनके सामने साकार। उपस्थित हो गया और इसी के कारण वे दिव्यदृष्टा ऋषि कहलाए।

ज्योतिर्विज्ञान भी अन्य विज्ञानों की ही तरह निश्चित तौर पर एक विज्ञान है, जो परीक्षण और अनुसंधानों की कसौटी पर खरा उतरता है। इसके भी निश्चित सिद्धान्त हैं, और जब प्रयोग की कसौटी पर कसते हैं , तो ये बिल्कुल सत्य सिद्ध होते हैं, लेकिन जिस प्रकार किसी भी विज्ञान के सिद्धान्तों को समझ लेने मात्र से ही उसमें पारंगत नहीं हो जाते ठीक उसी तरह ज्योतिर्विज्ञान में भी सिद्धान्तों के साथ-साथ प्रयोगों की महत्ता भी अनिवार्य है।

कुण्डली अपने आप में पूर्ण जीवन चित्र है।इसके बारह भाव मानव जीवन की समस्त आवश्यकताओं को अपनेआप में समेट लेते हैं

ज्योतिष का मूलाधार ग्रह,उनकी गति उनका पारस्परिक संबंध है क्योंकि किन्ही दो या दो सेअधिक ग्रहों के संयोग संबंध तथा सहयोग से विशेष योग का निर्माण होता है

जो जीवन को दिव्य ,उज्जवल या निम्न स्तर का बनाते हैं।

प्राचीन ऋषियोंने अपने अनुभव ज्ञान और अलौकिक सिद्धियों और अध्ययन द्वारा जो निष्कर्ष निकाले, उन्हीं निष्कर्षों को परिभाषा में बदलकर उनका नामकरण कर दिया गया, समय के साथ चूंकि अब स्थितियां बदल गई हैं अतः उस समय के फल कथन को आज के संदर्भ में समझा जाना आवश्यक है।

जिसने भो ग्रह स्थितियों के रहस्य को समझ लिया, उसने सब समझ लिया और वही भविष्य को पहचान सकता है।

अतः हम कह सकते हैं,कि ज्योतिष एक संपूर्ण विज्ञान है, केवल कल्पना नहीं।
*
६. डॉ रघुनंदन चिले, दमोह
मैं मूलतः विज्ञान का विद्यार्थी हूँ। सदैव हर बात को विज्ञान के निकष पर कसने का शगल मुझमें है। विज्ञान शोधपरक होता है।

प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था- विज्ञान अध्यात्म के बिना अंधा है तथा अध्यात्म, विज्ञान के बिना लंगड़ा है।

मेरा मानना है कि ज्योतिष,विज्ञान नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक अनुमान है। जब तक इससे अनुसंधान की परिपाटी नहीं जुड़ेगी,उसकी सत्यता के साक्ष्य लोगों तक पंहुचाने का प्रयास नहीं होगा तब तक अविश्वास करने वालों की संख्या कम नहीं होगी।

बारह राशियाँ मानी गई हैं। जातक के जन्म पर पण्डित एक अक्षर बताता है जिससे उसका नाम शुरू होता है।

अरबों लोगों के भाग्य को केवल 12 राशियों में कैसे विभाजित किया जा सकता है? अलग अलग भौगोलिक, सामाजिक, व्यावहारिक, परम्परागत, genetically different लोग कैसे इन बारह खानों में रखे जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए कोई एक राशि चुनें तथा इन राशि वालों के राशिफलों को देखें ।जो भी राशिफल होगा वह एकदम भिन्न होता है।

विवाह के लिए कुण्डलियां का मिलान होता है।अच्छे मिलान के बावजूद भी जातकों में तक़रार, अनबन आदि हम सब समाज में देख-सुन रहे हैं।स्थिति तलाक तक पहुंचने के उदाहरण हमारे सामने हैं।

ईसाई तथा मुस्लिम कुण्डली का मिलान करके शादी नहीं करते फिर भी उनमें इतनी संख्या में अलगाव या तलाक के मामले शायद ही हों। वे तो मुहूर्त देखकर भी शादी नहीं करते।

हमारे वृहत्तर समाज में कुण्डली, गुण आदि का मिलान करके शुभ मुहूर्त में शादी की जाती है फिर ये बिगड़ते सम्बंध ,टूटते-बिखरते संयुक्त परिवारों के प्रकरण क्यों सामने आ रहे हैं?

मैं फिर यही कहूँगा कि ज्योतिष में भी शोध हो,अनुसंधान हो जो वायवीय न हो बल्कि वास्तविक धरातल पर हों।हम ज्योतिष को मात्र इसलिए न अपनाएं या आँख मून्द कर विश्वास कर लें कि यह प्राचीन है या हमारे पुरखे भी इस पर विश्वास करते थे।
*
७. इंजीनियर अरुण भटनागर, जबलपुर
ज्योतिष शास्त्र नि:संदेह एक विज्ञान है। 'ज्योतिष ' शब्द से इसका तात्पर्य स्पष्ट दृष्यमान होता है, 'ज्योति' अर्थात प्रकाश,जिससे जीवन की

महत्ता झलकती है। आंखें प्रकाश में ही देखने योग्य होती हैं अन्यथा अंधेरा ही व्याप्त है। ज्योतिष वह शास्त्र है जिसमें शरीर स्थित सौरमंडल का बाह्य सौरमंडल से पारस्परिक संबंध विश्लेषित करके ग्रहों की स्थिति एवं गति के अनुसार फलाफल निर्देशित करना है।

ज्योतिष सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम।

हमारे दर्शनशास्त्र में 'यथा पिण्डे तथा ब्रहृमा़ण्डे ' का सिद्धांत लोकप्रिय है,इसका मतलब यह‌ है कि सौर जगत में सूर्यादि ग्रहों के परिभ्रमण में जो‌ नियम कार्य करते हैं वहीं नियम मानव शरीर स्थित सौर जगत के ग्रहों के भ्रमण करने में भी करते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि आकाश स्थित ग्रह ,शरीर स्थित ग्रहों के प्रतीक हैं। ग्रहों द्वारा मानव पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र की नींव रखी गयी थी। अब यह शास्त्र विद्वानों,ज्योतिविर्दों और ऋषि-मुनियों के अथक प्रयास के फलस्वरूप फल -फूल भी रहा है।

ज्योतिर्विदों का कथन है कि मनुष्य जिस ग्रह के प्रभाव में पैदा होता है उसके तत्व एवं वृत्ति से वह मनुष्य निश्चय ही प्रभावित होता है।ग्रहों की स्थिति में निरन्तर होने वाली विलक्षणता के कारण ही समयानुसार परिवर्तन होते रहते हैं। इसलिए मानव ग्रह विशेष कि युति और द्ष्टि के अनुसार ही समूह या इकाई रूप में प्रभावित होता है।

ज्योतिष शास्त्र का उपयोग दैनिक कार्यों में कर सकते हैं। दैनिक व्यवहार में आने वाले दिन, सप्ताह,पक्ष,मास,अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सवादि का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से ही होता है। अनपढ़ किसान भी भली भांति जानता है कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है।बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल‌ अच्छी हो। 'घाघ' की कहावतों में ज्योतिष के मूलाधारों का उपयोग स्पष्ट परिलक्षित होता है।

मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के सहयोग से चलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के व्यवहारिक उपयोग से अल्प श्रम व समय में अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर कथ्य और निष्कर्ष शुद्ध गणना पर ही सत्य सिद्ध हो पाते हैं। गणना में त्रुटियां होने भविष्य कथन सर्वथा झूठ साबित होते हैं। इस कारण लोगों का इस शास्त्र पर विश्वास कम होता जा रहा है।
*
८. डॉ.मुकुल तिवारी, जबलपुर
ज्योतिष शास्त्र पूर्णतः विज्ञान है। यह अंक गणित के आंकड़ों के गुणनफल पर आधारित होता है जैसे गणित में दशमलव लगानें से संख्यात्मक मान्य में अंतर अा जाता है और परिणाम सही या गलत हो जाता है वैसे ही ज्योतिष में ग्रह नक्षत्रों तारों की गणना में अंतर आने से भविष्यफल का परिणाम परिवर्तित हो जाता है।ज्योतिष ब्रह्मांड में उपस्थित ग्रह,नक्षत्र,तारे चन्द्र कलाओं आदि की सक्रियता पर आधारित होता है। अनेक ग्रह अपने कक्ष में घूमते रहते है इन ग्रह नक्षत्र तारों के घूमने की गति ,तीव्रता,सक्रियता आदि पर ज्योतिष की गणनाओं का आकलन निर्भर करता है।ज्योतिष की गणनाओ का जो सही आकलन कर लेता है उसका परिणाम(फलित) सत्य हो जाता है।
*
९. मनोरमा जैन पाखी, मेहगाँव भिंड

मेरे अनुसार ज्योतिष विज्ञान है। मगर इसमें विज्ञान की तरह तथ्यों की खोज, मूल्यांकन, प्रयोगशाला में प्रयोग और सत्यापन नहीं होता। किसी भी चीज को ठोक परखकर उसके होने न होने के पुख्ता और आँखों से दिखने वाले प्रमाण देखता है तब उस पर यकीन करता है। मगर विज्ञान वो भी है, जिसमें घटना, उसका कार्य कारण सम्बन्ध देखा जाता है। और तथ्यों की जांच परख कर भविष्यवाणी की जाती है। कभी कभी ये भविष्यवाणी गलत भी साबित होती हैं। तो अगर हम ज्योतिष को देखें तो ग्रहों की दिशा देखकर उनकी स्थिति कीअच्छे से जाँच करके, उनका अच्छे से मूल्यांकन करके ही निष्कर्ष निकाला जाता है। और भविष्यवाणी की जाती है। तार्किक तौर पर भी ये विज्ञान ही है। दरअसल कोई भी विषय विज्ञान से अछूता है ही नहीं, फिर वो दर्शशास्त्र हो या समाजशास्त्र, यहां तक कि अंकशास्त्र और ज्योतिषशात्र को भी विज्ञान की सारणी में इसलिए शामिल किया गया है।

मेरे मतानुसार कोई भी शास्त्र ,विज्ञान तब हो जाता है जब उसमें भविष्यवाणी करने की क्षमता हो, वो कार्य के होने के कारण ज्ञात करता हो, और किसी भी कथन का मूल्यांकन करने के बाद ही निष्कर्ष देता हो। और ज्योतिष ये सब करता है। विज्ञान की भी सभी भविष्यवाणी सच नही होती।

उदाहरण के लिए मेरी सहेली की दी के ससुर जी ने कहा था कि सहेली 45 पार करने के बाद जीवित नहीं रहेगी। और वो खुद अपनी अंतिम बेटी की शादी के बाद न रहेंगे। उनकी खुद को लेकर भविष्यवाणी सही साबित हुई। रही मेरी सहेली की बात तो उसमें अभी वक़्त है। एक ज्योतिष होने के नाते वह कभी भी यूँ ही कोई बात नहीं कहते थे। जब तक कि उसको नाप तोल न लें। भले ही मुझे इस शास्त्र पर पूरा भरोसा न हो, मगर इसे विज्ञान मानने से इनकार नहीं कर सकती। मेरे अनुसार, ज्योतिष विज्ञान है।
*
१०. प्रो.मीना श्रीवास्तव,"पुष्पांशी" ग्वालियर ७०४९०३५५५५ , अध्यक्ष
विषय:-ज्योतिष शास्त्र विज्ञान या कल्पना?
समीक्षा

ज्योतिष शास्त्र के अन्तर्गत हम उस स्थिति को जानने का प्रयास करते हैं जिसमें कि मानव अपनी हस्तविद्या ,भविष्यफल,राशिफल ,जन्म - कुंडली एवं विभिन्न प्रकार की भविष्यवाणी के संदर्भ में जानने का प्रयास करता हैं।

ज्योतिष शास्त्र के जनक बृह्मा के पुत्र महर्षि भृगु थे जो कि विष्णु के श्वसुर अर्थात् कि लक्ष्मी के पिता थे। भारत में ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता विशेष रूप से १८ महर्षियों को माना जाता हैं ।

ज्योति का अर्थ हैं प्रकाश और ज्योतिष के अन्तर्गत ज्योति पिण्डों का अध्ययन किया जाता हैं अर्थात् कि ज्योतिष शास्त्र में प्रकाश वाले पिंडों की गतिविधियों से संबंधित गणना के आधार पर भूत एवं भविष्य की घटनाएं बताई जाती हैं

प्राचीन उल्लेखों के आधार पर यह स्पष्ट है कि ज्योतिष शास्त्र में मुख्य रूप से तीन बाते होती हैं:-

(०१)गणित(होरा)

(०२)संहिता

(०३)फलित

गणित की सभी विधा जैसे कि रेखागणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान ये सभी ज्योतिष की शाखाएं हैं। ऋग्वेद में ३०,यजुर्वेद में ४४ एवं अथर्ववेद में १६२ श्लोक ज्योतिष शास्त्र से संबंधित है।

वास्तविक स्थिति यह है कि ज्योतिष शास्त्र पूर्ण रूप से विज्ञान हैं जी हाँ वर्तमान में अनेक बार हम देखते हैं कि :-ऐसे ज्योतिष जिन्हें ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान नहीं है परंतु वे धन अर्जित करने के उद्देश्य से इस शास्त्र का प्रयोग करते हुए भी देखे गये है और यही कारण है कि अज्ञानवश ये सही भविष्यवाणी नही कर पातें हैं औऱ अनेक प्रकार के गृह नक्षत्रों की गलत जानकारी देते हुए दोषमुक्ति के खर्चीले उपाय भी बता देते है ऐसी स्थिति में जनसामान्य लोग ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास नहीं कर पाते हैं जबकि हमारे देश में आज भी अनेक ज्योतिष ज्ञानवान भी हैं जो सही गणना के आधार पर सही भविष्यवाणीयां बताते हैं अत:मेरा स्पष्ट रूप से यह मानना है कि ज्योतिष शास्त्र एक विज्ञान हैं वशर्ते इसके लिए दो बाते अनिवार्य है (०१):-व्यक्ति सही समय ,स्थान और जो भी जानकारी ज्योतिष के द्वारा चाही गई हो वह सही बताये (०२):-आप जिस ज्योतिष के पास जा रहें हैं वह वास्तव में इस विषय का ज्ञानी होना चाहिए ।

हम सपना सराफ "क्षिति"के एवं डाँ गायत्री जी द्वारा दिये गये मत से सहमत हैं।साथ श्री अनिल जी ने ज्योतिष शास्त्र पर अपना शोध परक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है और अनेक विश्वविद्यालयों में इस विषय को पाठ्यक्रम के रूप में चलाए जा रहे हैं यह बात कहीं हैं ।वर्तमान में ज्योतिष के वास्तविक ज्ञान को समझने की आवश्यकता है। इसी प्रकार से *श्री आलोक रंजन जी ने भी ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता पर तार्किक विचार रखते हुए १२राशियों के संदर्भ में विवरण प्रस्तुत किया है , श्री रमन श्रीवास्तव जी ने भी ज्योतिष शास्त्र की वैज्ञानिकता को स्वीकार किया है साथ ही डॉ.रघुनंदन जी ने अपने सुविचार रखते हुए महत्वपूर्ण सुझाव प्रदान किया है कि ज्योतिष में भी शोध होना चाहिए ,आ.अरूण भटनागर जी ने अपने ज्योतिष शास्त्र संबंधी प्राचीन औऱ वर्तमान स्थिति से हमें अवगत करवाया

मैं ,आप सभी के शोध परक विचारों का सम्मान करते हुए - सभी आरणीय जनो ,आयोजक - मंडल,आदरणीय अरूण भटनागर जी एवं उपस्थित विद्वानों का ह्रदयतल से आभार,धन्यवाद और साधुवाद प्रेषित करती हूँ ।
*
११. इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल संयोजक
*
विज्ञान और कल्पना परस्पर विरोधी नहीं है।

हर वैज्ञानिक शोध के मूल में एक कल्पना होती है जिसे परिकल्पना या हायपोथीसिस कहते हैं। यह आकाशकुसुम या शेखचिल्ली की गप्प की तरह निराधार कपोलकल्पना तो नहीं होती पर कुछ तथ्यों और पूर्वज्ञान को आधार बनाकर की गयी कल्पना ही होती है। इस कल्पना के परीक्षण हेतु आधार तय किये जाते हैं, उन पर प्रयोग किये जाते हैं, प्रयोगों से मिले परिणामों का विश्लेषण किया जाता है। इस आधार पर परिकल्पना में वांछित पपरिवर्तन किये जाते हैं, फिर प्रयोग, विश्लेषण और फिर प्रयोग जब तक अंतिम निष्कर्ष न मिल जाए। यह निष्कर्ष परिकल्पना के अनुकूल भी हो सकता है, प्रतिकूल भी।

ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र का अंग है जिसका मुख्य उद्देश्य भविष्य को जानना और बताना है। भविष्य का पूर्वानुमान करने के कई आधार हैं, जिनसे संबंधित विधाएँ अपने आपमें बहुत महत्वपूर्ण हैं। नक्षत्र विज्ञान, जन्म कुंडली शास्त्र, हस्त रेखा विज्ञान, मानव शरीर के अंगोपांगों (मस्तक, पेअर, कंठ, आँखें, वक्ष, नितंब, चर्म, वंश परंपरा आदि) का अध्ययन, रत्न विज्ञान, आत्मा से साक्षात्कार, पशु-पक्षियों द्वारा भविष्यवाणी आदि अनेक विधाएँ / विषय ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत हैं। निस्सन्देह इस विधाओं का विधिवत अध्ययन जिसने कभी नहीं किया वः बिना पर्याप्त अध्ययन के हम इन विषयों के बारे हम सही मत कैसे दे सकता है?

मैंने इन विषयों की कुछ पुस्तकें पढ़ी हैं। निस्संदेह इन सभी विषयों का आरंभ कल्पना से हुआ होगा। सदियों तक अनुभव के पश्चात् इनके ग्रन्थ लिखे गए। सैंकड़ों सालों तक प्रचलन में रहकर भी ये समाप्त नहीं हुए, यही इस बात का प्रमाण है कि ये विषय कपोलकल्पना नहीं हैं। अगणित भविष्यवाणियाँ की गयीं हैं। अनेक सही हुईं, अनेक गलत हुईं। गलत भविष्यवाणियाँ विषय का नहीं, विषय का अध्ययन करनेवाले का दोष हैं। किसी डॉक्टर के सब रोगी न तो ठीक होते हैं, न सब रोगी दिवंगत होते हैं। रोगी मर जाए तो चिकित्सा शास्त्र को झूठा नहीं कहा जाता पर भविष्यवाणी के गलत होते ही ज्योतिष शास्त्र के औचित्य को नकारा जाने लगता है। नकारने का काम वे करते हैं जिन्होंने कभी ज्योतिष शास्त्र की किसी विधा का अध्ययन ही नहीं किया।

ज्योतिष के सही होने का सबसे बड़ा प्रमाण इसका गणना पक्ष है। पंचांग में ज्योतिष सिद्धांतों द्वारा की गयी काल गणना विज्ञान की कसौटी पर हमेशा सही प्रमाणित होती है। इसकी पुष्टि सूर्य - चंद्र ग्रहण की काल गणना तथा ग्रहों-नक्षत्रों की दूरियों आदि से की जा सकती है।वस्तुत: ज्योतिष शास्त्र कल्पना, शोध, गणना, विश्लेषण और देश-काल-परिस्थिति अनुसार परिणाम का पूर्वानुमान करने का शास्त्र है। यह विज्ञान और कला दोनों है। ज्योतिष शास्त्र के सन्दर्भ में यह भी विचारणीय है कि यह केवल भारत में नहीं है अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक उन्नत देशों में भी इसकी मान्यता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के विविध देशों, सभ्यताओं और जातियों में प्रचलित ज्योतिष विधाओं के ज्ञान को एकत्र कर उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाए। इस हेतु विविध विश्व विद्यालयों में विभाग आरंभ कर पारंपरिक और वैज्ञानिक विधियों से अध्ययन और परीक्षण किया जाना आवश्यक है। ज्योतिष के क्षेत्र में अधकचरी जानकारी के आधार पर भविष्यवाणी करनेवालों पर रोक आवश्यक है ताकि जन सामान्य धोखाधड़ी से बच सके।

विज्ञानं द्वारा नए ग्रहों-उपग्रहों की खोज के प्रकाश में पारंपरिक ९ ग्रहों के आधार पर की जा रही गणनाओं पर प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है। इसी प्रकार पर्यावरण, जलवायु, खान-पान, जीवन यापन की परिस्थितियों के कारण मनुष्य शरीर में आ रहे परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में ह्यूमन एनाटॉमी का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है। रमन एस्ट्रोलॉजी, गत्यात्मक ज्योतिष (विद्या सागर महथा द्वारा आरंभ) आदि अनेक नई अध्ययन पद्धतियों में संगणक की सहायता से गणनाएँ और परिणामों का विश्लेषण किया जा रहा है। ज्योतिषियों के पारस्परिक मतभेदों और अवधारणाओं का विज्ञान सम्मत परीक्षण भी आवश्यक है। ज्योतिष के संदर्भ में अंधे विश्वास और अंधे विरोध दोनों अतियों से बचकर स्वस्थ्य अध्ययन ही ज्योतिष विज्ञान के उन्नयन और प्रामाणिकता हेतु एकमात्र राह है।
***

कोई टिप्पणी नहीं: