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सोमवार, 6 जुलाई 2020

चिंतन ज्योतिष : विज्ञान या कल्पना?

चिंतन 
ज्योतिष : विज्ञान या कल्पना?
इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल 
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विज्ञान और कल्पना परस्पर विरोधी नहीं है। 
हर वैज्ञानिक शोध के मूल में एक कल्पना होती है जिसे परिकल्पना या हायपोथीसिस कहते हैं। यह आकाशकुसुम या शेखचिल्ली की गप्प की तरह निराधार कपोलकल्पना तो नहीं होती पर कुछ तथ्यों और पूर्वज्ञान को आधार बनाकर की गयी कल्पना ही होती है। इस कल्पना के परीक्षण हेतु आधार तय किये जाते हैं, उन पर प्रयोग किये जाते हैं, प्रयोगों से मिले परिणामों का विश्लेषण किया जाता है। इस आधार पर  परिकल्पना में वांछित पपरिवर्तन किये जाते हैं, फिर प्रयोग, विश्लेषण और फिर प्रयोग जब तक अंतिम निष्कर्ष न मिल जाए। यह निष्कर्ष परिकल्पना के अनुकूल भी हो सकता है, प्रतिकूल भी। 
ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र  का अंग है जिसका मुख्य उद्देश्य भविष्य को जानना और बताना है। भविष्य का पूर्वानुमान करने के कई आधार हैं, जिनसे संबंधित विधाएँ अपने आपमें बहुत महत्वपूर्ण हैं। नक्षत्र विज्ञान, जन्म कुंडली शास्त्र, हस्त रेखा विज्ञान, मानव शरीर के अंगोपांगों (मस्तक, पेअर, कंठ, आँखें, वक्ष, नितंब, चर्म, वंश परंपरा आदि) का अध्ययन, रत्न विज्ञान, आत्मा से साक्षात्कार, पशु-पक्षियों द्वारा भविष्यवाणी आदि अनेक विधाएँ / विषय ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत हैं। निस्सन्देह इस विधाओं का विधिवत अध्ययन जिसने कभी नहीं किया वः बिना पर्याप्त अध्ययन के हम इन विषयों के बारे हम सही मत कैसे दे सकता है? 
मैंने इन विषयों की कुछ पुस्तकें पढ़ी हैं। निस्संदेह इन सभी विषयों का आरंभ कल्पना से हुआ होगा। सदियों तक अनुभव के पश्चात् इनके ग्रन्थ लिखे गए। सैंकड़ों सालों तक प्रचलन में रहकर भी ये समाप्त नहीं हुए, यही इस बात का प्रमाण है कि  ये विषय कपोलकल्पना नहीं हैं। अगणित भविष्यवाणियाँ की गयीं हैं। अनेक सही हुईं, अनेक गलत हुईं। गलत भविष्यवाणियाँ विषय का नहीं, विषय का अध्ययन करनेवाले का दोष हैं। किसी डॉक्टर के सब रोगी न तो ठीक होते हैं, न सब रोगी दिवंगत होते हैं। रोगी मर जाए तो चिकित्सा शास्त्र  को झूठा नहीं कहा जाता पर भविष्यवाणी के गलत होते ही ज्योतिष शास्त्र के औचित्य को  नकारा जाने लगता है। नकारने का काम वे करते हैं जिन्होंने कभी ज्योतिष शास्त्र की किसी विधा का अध्ययन ही नहीं किया।
ज्योतिष के  सही होने का सबसे बड़ा प्रमाण इसका गणना पक्ष है। पंचांग में ज्योतिष सिद्धांतों द्वारा की गयी काल गणना विज्ञान की कसौटी पर हमेशा सही प्रमाणित होती है। इसकी पुष्टि सूर्य - चंद्र ग्रहण की काल गणना तथा ग्रहों-नक्षत्रों की दूरियों आदि से की जा सकती है।वस्तुत: ज्योतिष शास्त्र कल्पना, शोध, गणना, विश्लेषण और देश-काल-परिस्थिति अनुसार परिणाम का पूर्वानुमान करने का शास्त्र है। यह विज्ञान और कला दोनों है। ज्योतिष शास्त्र के सन्दर्भ में यह भी विचारणीय है कि यह केवल भारत में नहीं है अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक  उन्नत देशों में भी इसकी मान्यता है।  
आज आवश्यकता इस बात की है कि विश्व के विविध देशों, सभ्यताओं और जातियों में प्रचलित ज्योतिष विधाओं के ज्ञान को एकत्र कर उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जाए। इस हेतु विविध विश्व विद्यालयों में विभाग आरंभ कर पारंपरिक और वैज्ञानिक विधियों से अध्ययन और परीक्षण किया जाना आवश्यक है। ज्योतिष के क्षेत्र में अधकचरी जानकारी के आधार पर भविष्यवाणी करनेवालों पर रोक आवश्यक है ताकि जन सामान्य धोखाधड़ी से बच सके।
विज्ञानं द्वारा नए ग्रहों-उपग्रहों की खोज के प्रकाश में पारंपरिक ९ ग्रहों के आधार पर की जा रही गणनाओं पर प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है। इसी प्रकार पर्यावरण, जलवायु, खान-पान, जीवन यापन की परिस्थितियों के कारण मनुष्य शरीर में आ रहे परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में ह्यूमन एनाटॉमी का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है। रमन एस्ट्रोलॉजी, गत्यात्मक ज्योतिष (विद्या सागर महथा द्वारा आरंभ) आदि अनेक नई अध्ययन पद्धतियों में संगणक की सहायता से गणनाएँ और परिणामों का विश्लेषण किया जा रहा है। ज्योतिषियों के पारस्परिक मतभेदों और अवधारणाओं का विज्ञान सम्मत परीक्षण भी आवश्यक है। ज्योतिष के संदर्भ में अंधे विश्वास और अंधे विरोध दोनों अतियों से बचकर स्वस्थ्य अध्ययन ही ज्योतिष विज्ञान के उन्नयन और प्रामाणिकता हेतु एकमात्र राह है।    
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