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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

विमर्श : भाषिक शुद्धता

विमर्श : भाषिक शुद्धता  
संजीव 
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भाषा वाहक भाव की, करे कथ्य अभिव्यक्त
शब्द यथोचित यदि नहीं, तो मानें है त्यक्त
अनुभूत को अभिव्यक्त करने का माध्यम है भाषा। बच्चा भाषा सीखता है माँ और स्वजनों से। माता-पिता दोनों की भाषिक पृष्ठ भूमि प्राय: भिन्न होती है। भाषा कोई भी हो लोक दैनंदिन कार्य व्यापार में विविध भाषाओं-बोलिओं के शब्दों का प्रयोग करता है। ग्रामीण बोली और बाजारू भाषा इसी तरह बनती है। अध्ययन की भाषा शिक्षा के स्तर और विषयानुसार रूप ग्रहण करती है। प्राथमिक स्तर का भाषा शोधकार्य के उपयुक्त नहीं हो सकती। इसी तरह प्राणीशास्त्र में प्रयुक्त भाषा वाणिज्य अथवा यांत्रिकी को लिए अनुपयुक्त होगी।
भाषिक शुद्धता का शब्दों से संबंध नहीं 
सामान्यतः भाषिक शुद्धता के शब्द-प्रयोग से जोड़ दिया जाता है। मैं इससे सहमत नहीं हूँ। शब्द साझा होते हैं। मनुष्य जहाँ जाता है, जिनसे मिलता है, जो पढ़ता है, उससे शब्द ग्रहण करता है। वर्तमान में दूरदर्शन व अंतर्जाल ने 'छोटी सी ये दुनिया' की सोच को साकार कर दिया है। इसे शब्दों की यात्रा और सहज हो गयी है। जिस देश के पात्र, स्थान और लोकाचार की चर्चा की जाएगी, उस देश के शब्द प्रयोग में आएंगे ही। रूसी परिवेश की कहानी में रूस के पात्र, स्थान और लोकाचार स्वाभाविक है। वहाँ भारतीय वनस्पतियों, नामों, शहरों का उल्लेख अनुपयुक्त होगा। कहते हैं "पाँच कोस पे पानी बदले, बीस कोस पे बानी" अगर भाषा के स्वाभाविकता ही न होगी तो कृत्रिम भाषा से रसानंद कैसे मिलेगा?  
भाषिक शुद्धता का आधार व्याकरण और पिंगल 
भाषिक शुद्धता या अशुद्धता को देखने का आधार भाषा का व्याकरण और पिंगल होता है। हर भाषा की भिन्न प्रकृति और संस्कार होता है। हिंदी में २ लिंग हैं, संस्कृत में ३, अंग्रेजी में ४। भाषिक शुद्धता को महत्वहीन समझनेवाले यह बताएं की अंग्रेजी में हिंदी की तरह दो लिंग मानकर लिखा जाए तो उन्हें हजम होगा? यदि अंग्रेजी के पर्चे में परीक्षार्थी हिंदी की क्रिया, विशेषण आदि का प्रयोग करे तो उसे सही मानेंगे? अंग्रेजी में उचित शब्द होते हुए भी तमिल, मराठी या हिंदी के शब्द उपयोग करने पर अंक देंगे? 
भाषिक संस्कार 
इसी तरह हिंदी में जो सम्यक शब्द हैं उनका प्रयोग किया ही जाना चाहिए। गाँव के किसान 'गेहूं' की जगह 'व्हीट' कहे तो असहनीय होगा। लोक अन्य भाषिक शब्दों को अपने संस्कार में ढालता है। तभी 'मास्टर साहेब' को 'मास्साब', 'डॉक्टर साहेब' को 'डाक्साब' बनाकर ग्रहण कर लेता है। 'स्टेशन' को 'टेशन' कहे  तो भी स्वाभाविकता बनी रहती है। किन्तु पौधरोपण की जगह 'प्लांटेशन' का प्रयोग भाषिक प्रदूषण ही है। 
साहित्य में भाषा 
लोक साहित्य के माध्यम से भाषा को संस्कारित करता है। साहित्य की भाषा लक्ष्य पाठक के अनुरूप होती है। हिंदी साहित्य के स्नातक को जिस भाषा में पढ़ाया जायेगा वह चिकित्सा के स्नातक विद्यार्थी के लिए प्रयोग नहीं की जा सकती। साहित्य में भाषिक शुद्धता का आग्रह बिलकुल उचित है। हिंदी में अंग्रेजी, अरबी-फ़ारसी शब्दों के आग्रही क्या अंग्रेजी रचना कर्म में हिंदी शब्दों का प्रयोग करेंगे? प्रो. अनिल जी ने 'ऑफ़ एन्ड ऑन' या 'द सेकेण्ड थॉट' में शुद्ध अंग्रेजी नहीं लिखी क्या? इन किताबों कितने हिंदी शब्द हैं? अंग्रेजी में लिखें तो भाषा शुद्ध हो, हिंदी में लिखें तो भाषिक शुद्धता का प्रश्न गलत कैसे ?  
रचना का कथ्य और भाषा  
बाल साहित्य की भाषा तकनीकी लेख या व्यंग्य लेख की तरह नहीं होगी। कबीर और तुलसी की भाषा में भिन्नता स्वाभाविक है और दोनों में से किसी को अशुद्ध नहीं कहा जाता। क्या रामचरित मानस ग़ालिब की भाषा में लिखा जा सकता है? सपना जी! बहुत विनम्रता से महान है कि उर्दू का तो कोई शब्द ही नहीं है। उर्दू शब्द कोष में सम्मिलित सब और हर शब्द किसी अन्य भाषा से लिया गया है। उर्दू हिंदी की एक शैली है जिसमें कुछ विदेशी  (अरबी, फ़ारसी) और कुछ भारतीय भाषाओँ के शब्दों का संकलन है। इसी तरह जबलपुर के निकट पचेली बोली जाती है जिसमें ५ भारतीय भाषाओँ के शब्द सम्मिलित हैं। 
भाषिक सहजता जरूरी  
अनिल जी! यह सही है कि अनावश्यक क्लिष्टता नहीं होना चाहिए, पर यह लेखक की शैली से जुड़ा बिंदु है। मैथिलीशरण गुप्त और हजारी प्रसाद द्विवेदी दोनों की भाषा और शब्द चयन भिन्न हों तो दोनों में से किसी को निरस्त नहीं किया जा सकता जबकि एक की भाषा सरल दूसरे की क्लिष्ट है। 
देवकांत जी से सहमत हूँ कि जहाँ भाषा में उपयुक्त शब्द हों वहाँ अनावश्यक अन्य भाषा के शब्दों का प्रयोग नहीं चाहिए। 
सारांश जी की बात सही है। मिलमा दाल, सब्जी तो खाई जा सकती है पर खीर और कढ़ी को मिलाकर नहीं खाया जा सकता। 
भाषा की नदी में सहायक नदियों क पानी मिले तो आपत्ति नहीं है किन्तु रासायनिक कारखाने का दूषित जल मिले तो आपत्ति करनी ही होगी। 
पाखी जी हिंदी में शोध निरंतर हो रहा है। हमें अंग्रेजी से स्नेह रखते हुए अंग्रेजियत से दूरी बनानी होगी। अंग्रेजी के प्राध्यापक को  भी पूरी तरह भारतीय संस्कार, हिंदी भाषा और स्थानीय बोली से जुड़ा होना चाहिए। 
भाषी प्रदूषण गलत शब्द प्रयोग से भी होता है। रेल लेट है। इसे हिंदी कैसे स्वीकार करे? रेल का अर्थ पटरी होता है। ट्रेन का समानार्थी रेलगाड़ी है। जबलपुर आ रहा है। जबलपुर नहीं आता-जाता, आती-जाती रेलगाड़ी है। हमें भाषिक शुद्धता के प्रति सजग होना ही होगा। मेरी एक द्विपदी का आनंद लें- 
क्या पूछते हो, राह यह जाती कहाँ है? 
आदमी जाते हैं नादां रास्ते जाते नहीं हैं। 
पौधरोपण का प्रयोग न कर वृक्षारोपण का प्रत्योग करने के पक्षधर क्या प्लांटेशन की जगह ट्री टेशन कहेंगे? हम हिंदी के प्रति स्वस्थ्य दृष्टिकोण अपनाएं और भाषिक शुद्धता, सरलता तथा सहजता को अपनाएँ यह आवश्यक है। 
अभी कल ही मिजोरम विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी में अनुवाद कार्य पर अन्तर्राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी थी। उसमें बुगरिया और अन्य देशों के विदेशी प्राध्यापक शुद्ध हिंदी पूरी तरह भारतीय लहजे में बोल रहे थे किन्तु कुलपति महोदय पूरे समय अंग्रेजी बोलते रहे। विदेशी प्राध्यापक द्वारा अंग्रेजी समझने में कठिनाई व्यक्त करने पर भी उन्हें अंग्रेजी बोलने में शर्म नहीं आई। अंत में भारतेन्दु के दोहे के साथ अपने बात समाप्त करता हूँ -
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिठे न हिय को सूल 
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