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शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

navgeet

नवगीत:
अविनाश ब्योहार
*
दरख्त हमारे साथी
सहचर  होते हैं!

देवदार की बाहों में
हवा रही झूल!
गंध उलीचें मौलसिरी
के खिलते फूल!!

खाना है आम तो
बबूल क्यों बोते हैं!

कश्मीर में चार चाँद
लगाते चिनार!
आँखों में खड़ी है
स्वप्न की मीनार!!

मन में विचारों को
हर समय बिलोते हैं!
*
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर

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