कार्य शाला
राधिका छंद
*
लक्षण: बाईस मात्रिक द्विपदिक समतुकांती छंद।
विधान: १३, ९ पर यति, पदांत यगण या मगण।
*
लक्षण छंद:
तेरा पै सज नव कला, राधिका रानी।
लखि रूप अलौकिक मातु, कीर्ति हरखानी।।
कहुं बर याके अनुहार, अहै बृजबाला।
सुनि सब कहतीं व्हें मुदित, एक नंदलाला।। -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
उदाहरण-
१. हा आर्य! भारत का भाग्य, रजोमय ही है।
उर रहते उर्वी उसे, तुम्हीं ने दी है।।
उस जड़ जननी का विकृत, वचन तो पाला।
तुमने इस जन की ओर, न देखा भाला।। -मैथिलीशरण गुप्त, साकेत
२. सब सुधि-बुधि गइ क्यों भूलि, गई मति मारी।
माया को चेरो भयो, भूल असुरारी।।
कटि जैहें भव के फंद, पाप नसि जाई।
रे! सदा भजौ श्रीकृष्ण-राधिका माई।। -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
टिप्पणी-पदांत के दो या एक गुरु को लघु में बदलने से छंद बदल जाएगा।
राधिका छंद
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लक्षण: बाईस मात्रिक द्विपदिक समतुकांती छंद।
विधान: १३, ९ पर यति, पदांत यगण या मगण।
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लक्षण छंद:
तेरा पै सज नव कला, राधिका रानी।
लखि रूप अलौकिक मातु, कीर्ति हरखानी।।
कहुं बर याके अनुहार, अहै बृजबाला।
सुनि सब कहतीं व्हें मुदित, एक नंदलाला।। -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
उदाहरण-
१. हा आर्य! भारत का भाग्य, रजोमय ही है।
उर रहते उर्वी उसे, तुम्हीं ने दी है।।
उस जड़ जननी का विकृत, वचन तो पाला।
तुमने इस जन की ओर, न देखा भाला।। -मैथिलीशरण गुप्त, साकेत
२. सब सुधि-बुधि गइ क्यों भूलि, गई मति मारी।
माया को चेरो भयो, भूल असुरारी।।
कटि जैहें भव के फंद, पाप नसि जाई।
रे! सदा भजौ श्रीकृष्ण-राधिका माई।। -जगन्नाथप्रसाद 'भानु', छंद प्रभाकर
टिप्पणी-पदांत के दो या एक गुरु को लघु में बदलने से छंद बदल जाएगा।
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