नवगीत:
स्वर-सरगम
जीवन का लक्ष
दीनानाथ
लुटा आशीष
कहें: लता रख
ऊँचा शीश
आशा-ऊषा
जय बोलें
कोई न हो
सकता समकक्ष
सप्त सुरों का
सुखद निवास
कंठ, शारदा
करें प्रवास
हृदयनाथ
अधरों का हास
कोई न तुम सा
गायन-दक्ष
राज-सिंह
वंदना करे
सुर-लय-धुन
साधना वरे
थकन-पीर
स्वर मधुर हरे
तुमसे बेहतर
कोई न पक्ष
*
स्वर-सरगम
जीवन का लक्ष
दीनानाथ
लुटा आशीष
कहें: लता रख
ऊँचा शीश
आशा-ऊषा
जय बोलें
कोई न हो
सकता समकक्ष
सप्त सुरों का
सुखद निवास
कंठ, शारदा
करें प्रवास
हृदयनाथ
अधरों का हास
कोई न तुम सा
गायन-दक्ष
राज-सिंह
वंदना करे
सुर-लय-धुन
साधना वरे
थकन-पीर
स्वर मधुर हरे
तुमसे बेहतर
कोई न पक्ष
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें