कुल पेज दृश्य

रविवार, 28 सितंबर 2014

nvgeet:

नवगीत:

गायब बेर, बेल,
सीताफल

जंगली हम
काटते जंगल
करें अपना
आप अमंगल
भा रहा है
स्वार्थ का दंगल

भूला कल
पर है हावी कल

रौंद डाले
हैं सुकोमल फूल
बच न पाये
नीम जाम बबूल
खोद डाले
हैं नदी के कूल

वहशी हम
फिर भी रहे मचल

गायब
गिद्ध काग गौरैया
दादी-
बब्बा बापू-मैया
नहीं चेतते
तनकऊ दैया!

ईश्वर! दे मति
सकें सम्हल

*
  

कोई टिप्पणी नहीं: