विमर्श: शामियाना
गीत:
धरा की शैया सुखद है
अमित नभ का शामियाना
मनुज लेकिन संग तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना
जोड़ता तू फिर रहा है
मोह-तम में घिर रहा है
पुत्र है तू ब्रम्ह का पर
वासना में घिर रहा है
पंक में पंकज सदृश रह
सीख पगले मुस्कुराना
उग रहा है सूर्य नित प्रति
सांझ खुद ही ढल रहा है
पालता है जो किसी को
वह किसी से पल रहा है
उसको उतना ही मिलेगा
जितना जिसका आबो-दाना
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या??
कौन जाता संग किसके?
संग जग आनंद में हो
पीर आपद देख खिसके
औपचारिक भावनाएं
अधर पर मीठा बहाना
रहे जिसमें ढाई आखर
खुशनुमा है वही बाखर
सुन रहा खन-खन सतत जो
कौन है उससे बड़ा खर?
छोड़ पद-मद धन सियासत
ओढ़ भगवा-पीत बाना
कब भरी है बोल गागर?
रीतता क्या कभी सागर??
पाई जैसी त्याग वैसी
कर्म की हँस 'सलिल' चादर
हंस उड़ चल बस वहीं तू
है जहाँ अंतिम ठिकाना
*****
गीत:
धरा की शैया सुखद है
अमित नभ का शामियाना
मनुज लेकिन संग तेरे
कभी भी कुछ भी न जाना
जोड़ता तू फिर रहा है
मोह-तम में घिर रहा है
पुत्र है तू ब्रम्ह का पर
वासना में घिर रहा है
पंक में पंकज सदृश रह
सीख पगले मुस्कुराना
उग रहा है सूर्य नित प्रति
सांझ खुद ही ढल रहा है
पालता है जो किसी को
वह किसी से पल रहा है
उसको उतना ही मिलेगा
जितना जिसका आबो-दाना
लाये क्या?, ले जायेंगे क्या??
कौन जाता संग किसके?
संग जग आनंद में हो
पीर आपद देख खिसके
औपचारिक भावनाएं
अधर पर मीठा बहाना
रहे जिसमें ढाई आखर
खुशनुमा है वही बाखर
सुन रहा खन-खन सतत जो
कौन है उससे बड़ा खर?
छोड़ पद-मद धन सियासत
ओढ़ भगवा-पीत बाना
कब भरी है बोल गागर?
रीतता क्या कभी सागर??
पाई जैसी त्याग वैसी
कर्म की हँस 'सलिल' चादर
हंस उड़ चल बस वहीं तू
है जहाँ अंतिम ठिकाना
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व्यवसाय बहुत से लोग करते हैं किन्तु श्री अशोक खुराना सबसे अलग हैं.
कैसे?
ऐसे कि वे अपने व्यवसाय से रोजी-रोटी कमाने के साथ-साथ व्यवसाय के हर पहलू पर सोचते हैं और औरों को सोचने-कहने के लिए प्रेरित करते हैं.
कैसे?
ऐसे की वे हर वर्ष अपने व्यवसाय पर केंद्रित कवितायेँ कवियों से लिखवाते-बुलवाते, उनका संकलन निजी खर्च छपवाते और कवियों को निशुल्क भिजवाते हैं.
'शामियाना ३' इस श्रंखला की तीसरी कड़ी है. २४० पृष्ठ के इस सजिल्द संकलन में १८८ रचनाएँ हैं. निरंकारी अब्बा हरदेव सिंह, बालकवि बैरागी तथा कुंवर बेचैन के आशीर्वचनों से समृद्ध इस संकलन में गीत, ग़ज़ल, कवितायेँ और शेर आदि सम्मिलित हैं. परम्परानुसार शुभारम्भ आचार्य भगवत दुबे रचित गणेश-सरस्वती वंदना से हुआ है. शामियाना (टेंट हाउस) व्यवसाय से आजीविका अर्जित कर अपने पुत्र को आई.पी. एस. अधिकारी बनानेवाले अशोक जी से प्रेरणा लेकर अन्य व्यवसायी भी अपने व्यवसाय के विविध पहलुओं पर चिंतन के साथ सारस्वत रचनाकर्म को प्रोत्साहित कर सकते हैं.
इस शारदेय अनुष्ठान में मेरी समिधा से आप ऊपर आनंदित हो ही चुके हैं. जो रचनाकार बंधू शामियाना के अगले अंक में रचनात्मक भागीदारी करना चाहें वे अपना नाम, पता, ईमेल आई. डी., चलभाष / दूरभाष कंमांक तथा एक रचना यहाँ लगा दें. रचनाएँ यथा समय श्री अशोक खुराना तक पहुंचा दी जाएंगी.
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