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गुरुवार, 20 मई 2021

दोहा सलिला

दोहा सलिला  
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भज न अगर मन से सतत, तो भजना है व्यर्थ। 
मन न अगर केंद्रित हुआ, नहीं मनन का अर्थ।।
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चिंता तज चिंतन करे, प्रभु-छवि निरखें मीत। 
रूप-गुण अनगिन अमित, पाल चिरंतन प्रीत।।
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मन मनीष संतोष पा, सरला मति दे नाथ।
हो अशोक शशि भूमि रवि, रेखा विभा सनाथ।।
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छाया मिले बसंत की, खिले मंजरी दैव।
ललिता मति हो निरुपमा, सद आनंद सदैव।।
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हरि सहाय हों नित सलिल, आकांक्षा हो पूर्ण।
कर आनंद विनोद मन, सुख पा-दे संपूर्ण।।
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कृपा किरण पा दे सकें, यही अपेक्षा ईश।
गीता गुंजन सुन तरें, सदय रहें जगदीश।।
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भीम सदृश संकल्प हो, मन कोमल नवनीत।
पा आशीष-विवेक हम, निज मन पाएँ जीत।।
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