कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

यौन और ध्यान : ऊर्जा संतुलन

यौन  ऊर्जा को सामान्य व्यक्ति बिल्कुल नहीं समझता। कोई समझाने का प्रयत्न करता है, तो उसको 'यौन गुरु' कह दिया जाता है। व्यापारिक यौन गुरु इसे व्यवसाय बनाकर ठगते हैं। प्रत्यक्ष और सहज रूप में अध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझकर इस दुविधा से  मुक्त होना आवश्यक है। धर्म और सामाजिक मान्यताएँ कहती हैं सेक्स से बचो,‌  दूसरी ओर हमारा शरीर और मन को यौन की भूख निरंतर सताती है। इंसान सेक्स करे तो अपराध भाव से पीड़ित है और ना करे तो प्रकृति पागल कर देती है और फिर इस पागलपन से कई अपराध उत्पन्न होते हैं। इंसान की हालत एक  प्रेशर कुकर जैसी है - एक ऐसा प्रेशर कुकर जिसके नीचे आग सुलगाकर ऊपर सीटी लगा दी गई है और उस सीटी को एक अत्यंत वजनदार वस्तु से दबा दिया गया है। प्रकृति की आग है और सांसारिक और धार्मिक मान्यताएँ वजनदार वस्तुएँ ऊर्जा को बहने से रोकती हैं। इस दबाव के कारण जो ऊर्जा प्रकृति अनुसार सेक्स सेंटर से बहनी थी, वह क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, हिंसा आदि के रूप में बाहर आती है।
यौन इच्छाओं से ऊपर उठने की बात इसलिए की गई थी कि इंसान स्वत: शांत और उल्लास पूर्ण हो सके परंतु जो हो रहा है वह उसका बिल्कुल उल्टा है। कुछ तो गलती हुई है इस यौन को समझने में। अगर यौन पाप है तो इस पूरी दुनिया का जन्म पाप से ही है और पूरी दुनिया तो परमात्मा का ही रूप है। तो परमात्मा को भी हमने पापी बना दिया। यौन शब्द इंसान के मन पर हावी है। मैं यह नहीं कहता कि इंसान सेक्स की तरफ अग्रसर है। मैं यह कहता हूं कि या तो इंसान बहुत ही कामोत्तेजक है या फिर यौन का अत्यंत दमित है। दोनों  अवस्थाओं में इंसान बहुत ऊर्जा व्यर्थ करता है। बहुत अजीब है कि यौन के दमन अथवा काम उत्तेजना में जितनी ऊर्जा व्यर्थ जाती है, उसके सामने सेक्स कर लेने में बहुत ही नाममात्र ऊर्जा इस्तेमाल होती है। यौन एक ऊर्जा है जो कि आपके मूलाधार पर केंद्रित है। यह आटे की तरह है जिससे आप पूरी, रोटी,‌ परांठे  बहुत कुछ बना सकते हैं, जिसमें आटा मूल तत्व है और उससे उत्पन्न होने वाली वस्तु एक सुंदर रूपांतरण है। इस उत्तर को सही अर्थों में समझने के लिए यौन को पाप की तरह नहीं, एक ऊर्जा की तरह देखना होगा। धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं से ऊपर उठकर धर्म सत्य में क्या कहना चाहता है, उसे समझना होगा। जान लीजिए कि अध्यात्म यौन के विरुद्ध नहीं है।  
यौन इच्छाओं पर काबू पाना ही क्यों है? एक ओर तो धर्म प्रचारक यौन न करने की बात करते हैं और दूसरी ओर पूरा विश्व यौन करता चला जाता है। समाज यौन को समझने में असमर्थ रहा है। बचपन से ही आपको यह सिखा दिया गया कि यौन बुरा है, उससे बचना है क्योंकि वह पाप अथवा अशुद्ध है। अत्यंत ही दुख की बात है कि जिस क्रीड़ा से जीवन इस पृथ्वी पर बहता है, उसी को पाप कह दिया गया। ऐसी भूल अज्ञानता वश की जा रही है। यह बात एक बच्चे के कोमल मन में इतनी गहराई से उतार दी जाती है कि वह युवावस्था में पहुँचने के बाद अपराध भाव से ग्रस्त रहता है।सही समझ ना मिलने के कारण यह दुख जीवन भर बना रहता है, बुढ़ापे में भी।मान्यताओं उन पर प्रश्न करनेसे आपको ऊर्जा के विज्ञान को समझने में सहायता मिलेगी।
दूसरी बात यह समझनी होगी कि यौन इच्छाओं को काबू करने का सिलसिला कैसे हुआ। हमारे कई महान् ऋषि-मुनियों ने जाना कि ऊर्जा का स्रोत हमारे मूलाधार चक्र पर ही है जिसे कुंडलिनी भी कहते हैं। अगर इसको जगा कर रूपांतरित किया जा सके या इसको ऊपर की ओर निर्देशित किया जा सके तो यही ऊर्जा प्रेम शांति और आनंद हो जाती है। तो बात इतनी सरल है। किसी भी महर्षि ने यौन शक्ति के दमन की बात नहीं की। केवल और केवल ऊर्जा रूपांतरण और ऊर्जा प्रवाह को निर्देशित करने की बात की है। धर्म के शिक्षक इस स्तर पर नहीं है कि इस ऊर्जा को पूर्णतया जान सके, इसके बारे में बहुत भ्रांतियाँ फैला दी गई। वह ऊर्जा जो जीवन का स्रोत है, वह तो जीवन का एक उपहार है। यह जान लेने के बाद कि सेक्स तो केवल एक ऊर्जा है, न्यूट्रल है, उसको रूपांतरण करने करने की जिम्मेदारी हम पर है। बहुत लोग हैं जो कह देते हैं कि ध्यान कहीं और लगाओ, स्वयं को कार्य में व्यस्त रखो अथवा कुछ। यह उपाय कुछ ही दिनों में खंड-खंड हो जाते हैं क्योंकि उद्देश्य सेक्स के दमन का है।
सबसे जरूरी और तीसरी बात - अगर सेक्स के प्रति अपराध भाव है, तो सेक्स इच्छाओं से मुक्ति नहीं पाई जा सकती, केवल दमन हो सकता है जो अक्सर विनाशकारी होता है। अगर इच्छाओं पर काबू पाना चाहते हो, तो पहले सेक्स के प्रति अपराध भाव को त्यागना होगा। उसको एक ऊर्जा की भांति देखना होगा, समझना होगा। केवल और केवल ऊर्जा के विज्ञान को समझ कर इस ऊर्जा का श्रेष्ठ इस्तेमाल किया जा सकता है। सेक्स की इच्छा की उत्पत्ति इतनी तीव्र है ही इसलिए क्योंकि हमने सेक्स का बहुत दमन कर दिया। इसको इस तरह समझिए- जब भूख लगती है तो क्या आप यह कहते हुए फिरते हैं कि कुछ खाने की इच्छा है, मैं इसे किस तरह काबू करूं? लेकिन सेक्स के लिए आप यह कहते फिरते हैं जबकि शारीरिक स्तर पर यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। गौर कीजिए, ऐसा क्यों है और सेक्स के साथ ही क्यों, भोजन के साथ क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं जिन्हें खुद ही ज्ञान नहीं, उन्होंने आपको बहुत कुछ सिखा दिया? 
शक्ति तो जीवनदायिनी है - केवल भीतर शक्ति का रूपांतरण कर शिव तक पहुंचा जा सकता है, शक्ति का निरादर कर नहीं। अब शक्ति के रूपांतरण की बात करते हैं। जैसा मैंने पहले कहा, रूपांतरण पूर्णत: तभी संभव है जब सेक्स के प्रति अपराध भाव से व्यक्ति मुक्त है। शुरुआत की जा सकती है अपराध भाव होते हुए भी लेकिन अंत तभी हो पाएगा या यूं कह लीजिए की रूपांतरण तभी पूर्ण हो पाएगा जब सेक्स के प्रति अपराध भाव पूरा समाप्त हो जाए। इस उत्तर में मैं जो भी विद्या लिख रहा हूं वह एक आम व्यक्ति के लिए है। हो सकता है कि कोई साधक किसी ऐसे सत्यगुरु के पास हो जो सेक्स ना करने को कहता हूं और वह उसके लिए अपने शिष्य को कुछ विधियाँ बताए। लेकिन ऐसी विद्या केवल बहुत ही कम लोगों के लिए होती है और यह संसार से दूर रहकर अर्जित की जाती है। संसारी को अगर संसार में रहते हुए ही योग करना है, तो उसमें उचित है कि सरल मार्ग से चला जाए।
तो इस विद्या का पहला मुख्य उपाय है यह समझना कि सेक्स शरीर से संबंधित है। उसे मन पर हावी नहीं होने देना। सेक्स मन पर तब हावी होता है या तीव्र इच्छाओं के रूप में तब प्रकट होता है जब शरीर को सेक्स ना मिले अथवा मिले परंतु साथ ही अपराध भाव भी मिले, जिससे संतुष्टि हो नहीं पाती। तो पहली बात, अगर सेक्स कर ही रहे हो,‌ तो पूर्णतया करो। उसमें अपराध भाव मत लाओ। जितनी ऊर्जा सेक्स पर लगाओगे उससे कई गुना अधिक ऊर्जा सेक्स की इच्छाओं में व्यर्थ करोगे, अगर शरीर के स्तर पर तृप्ति नहीं है तो।
एक संसारी के लिए यह वह आधार है जिस पर खड़े हो ऊर्जा का रूपांतरण सही अर्थों में शुरू किया जा सकता है। बात को समझिए - सेक्स के दमन से आप मन के स्तर पर सेक्स ऊर्जा से इतनी दूर हो गए हैं की ऊर्जा पर काम ही नहीं हो पाता। जब आप खाना बनाते हैं तो क्या दूर से रहकर ही खाना बन जाएगा? नहीं, सब्जियाँ काटनी होंगी, पकानी होंगी। खाना बनाने के लिए मूल वस्तुओं पर काम करना ही पड़ेगा और वह दूर रहकर हो नहीं सकता। इसी प्रकार सेक्स ऊर्जा के रूपांतरण के लिए सेक्स उर्जा को समझ कर उस पर काम करना होगा। जिसे रूपांतरण करना चाहते हो, उसे प्रेम से अपनाना होगा। अगर यह मूल समझ में आ गया तो अब रूपांतरण की बात की जा सकती है। रूपांतरण के लिए बहुत सी क्रियाएँ और साधन उपलब्ध है। मैं एक सरल मार्ग की बात करूँगा जो कि एक आम व्यक्ति जीवन में अपना सकता है।
इस मार्ग के दो स्तंभ समझिए- हृदय विकास और ध्यान। हमें सेक्स के दमन या उसकी ओर काम करने की जरूरत कम और ध्यान और हृदय विकास की तरफ काम करने की जरूरत ज्यादा है। कहने की कोशिश यह है की उल्टी उंगली से कान पकड़ा जाएगा। अत्याधिक दमन के कारण सेक्स ऊर्जा के ऊपर सीधा सीधा काम करना एक आम व्यक्ति के लिए बहुत मुश्किल है। इसलिए सेक्स जैसा चलता है ठीक है, पर्याप्त है - वह इस प्रक्रिया का केंद्र है ही नहीं। हमारा केंद्र है ह्रदय विकास और ध्यान। इस प्रकार सेक्स की इच्छाएँ धीरे-धीरे स्वयं से ही गिरनी शुरू हो जाती हैं। क्योंकि वही उर्जा जो सेक्स में जानी थी अब ह्रदय और ध्यान पर जाने लगे हैं। जितना हृदय का विकास होगा उतनी ही ऊर्जा मूलाधार से ह्रदय की ओर प्रस्थान करने लगेगी।  हृदय और ध्यान की प्रक्रिया के लिए यह उपाय हैं:
१) जो भी काम रचनात्मक या सेवाभाव युक्त होता है वह हृदय से संबंधित होता है। तो एक बच्चे की तरह अगर किसी को गाना, बजाना, खेलना, नृत्य, संगीत,‌चित्रकारी, काव्य रचना, सेवा भाव जैसे खाना पकाना, अन्न बाँटना या इस तरह के कार्य अच्छे लगे उसमें पूर्ण रुचि से शामिल हों। पशु पक्षियों और प्रकृति के साथ रहने में भी हृदय का विकास होता है और ध्यान में भी सहायता मिलती है। जितना रचनात्मक कार्य बढ़ेगा, उतनी ही उर्जा स्वयं से ही हृदय की तरफ आकर्षित होती चली जाएगी इसमें कुछ वक्त लग सकता है परंतु होगा यही।
२) जीवन में ध्यान को स्थान दीजिए ।बहुत ही सुंदर ध्यान विधियाँ आजकल यूट्यूब और कई जगह पर उपलब्ध है। इसमें भी वह विधि जो हृदय का विकास करे ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो सकती है -जैसे हार्टफुलनेस। सुंदर होगा अगर आप किसी ऐसे संगठन या सत्संगति में जाते हैं जहाँ ध्यान पर जोर हो सेक्स के दमन पर नहीं। सेक्स तो मन से निकाल ही दीजिए जैसा चल रहा है ठीक है- हम इस प्रक्रिया में सेक्स के दमन या सेक्स को खत्म करने पर जोर दे ही नहीं रहे। पूरे का पूरा काम ऊर्जा को ह्रदय और ध्यान की ओर प्रेरित करने के लिए है। फल स्वरूप, जो सेक्स के साथ होना है वह स्वयं से होता रहेगा।
३) यह आवश्यक है की एक गुरु जीवन में हो जो आपको ऊर्जा के रहस्य से अवगत करा सके। एक सही समझ दे सके जो कि आपके जीवन के अनुसार हो। जिस समझ का अनुसरण कर आप अपने जीवन को खूबसूरत बना सकें।
बस इतना सा ही है - अगर यह उपाय उत्तम जीवन में पूर्ण रूप से उतार लिए गए तो सेक्स पर काम स्वयं से ही हो जाएगा। ना ही अपराध भाव की जरूरत है, ना ही प्रताड़ित होने की। यह एक आम व्यक्ति के लिए अति सुंदर व सरल मार्ग है। जिस तरह जीवन में कक्षा को पास करने के लिए समय लगता है उसी तरह इसमें भी कुछ समय लगेगा।

कोई टिप्पणी नहीं: