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गुरुवार, 2 जुलाई 2015

rachna-prati rachna : fauji - sanjiv

कविता-प्रतिकविता 
* रामराज फ़ौज़दार 'फौजी' 
जाने नहिं पीर न अधीरता को मान करे
अइसी बे-पीर से लगन लगि अपनी 
अपने ही चाव में, मगन मन निशि-दिनि 
तनिक न सुध करे दूसरे की कामिनी
कठिन मिताई के सताये गये 'फौजी' भाई
समय न जाने, गाँठे रोब बड़े मानिनी
जीत बने न बने मरत कहैं भी कहा
जाने कौन जन्मों की भाँज रही दुश्मनी
*
संजीव
राम राज सा, न फौजदार वन भेज सके 
काम-काज छोड़ के नचाये नाच भामिनि 
कामिनी न कोई आँखों में समा सके कभी
इसीलिये घूम-घूम घेरे गजगामिनी 
माननी हो कामिनी तो फ़ौजी कर जोड़े रहें 
रूठ जाए 'मावस हो, पूनम की यामिनी 
जामिनि न कोई मिले कैद सात जनमों की 
दे के, धमका रही है बेलन से नामनी
(जामनी = जमानत लेनेवाला, नामनी = नामवाला, कीर्तिवान) 
*

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