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सोमवार, 6 जुलाई 2015

muktika:

मुक्तिका:
संजीव
*
खुलकर कहिये मन की बात
सुने जमाना भले न तात
*
सघन तिमिर के बाद सदा
उगती भोर विदा हो रात
*
धन-बल पा जो नम्र रहे
जयी वही, हो कभी न मात
*
बजे चना वह जो थोथा
सह न सके किंचित आघात
*
परिवर्तन ही जीवन है
रहे एक सा कभी न गात
*
अब न नयन से होने दे
बदल ही कर दे बरसात
*
ऐसा भी दिन दिखा हमें
एक साथ हो कीर्तन-नात
*  

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