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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

muktak

एक मुक्तक:
संजीव 
*
चलो गुनगुनायें सुहाने तराने 
सुनें कुछ सुनायें, मिलो तो फ़साने 
बहुत हो गये अब न हो दूर यारब 
उठो! मत बनाओ बहाने पुराने  
*

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