एक मुक्तक:
संजीव
*
चलो गुनगुनायें सुहाने तराने
सुनें कुछ सुनायें, मिलो तो फ़साने
बहुत हो गये अब न हो दूर यारब
उठो! मत बनाओ बहाने पुराने
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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