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मंगलवार, 7 जुलाई 2015

मुक्तक

मुक्तक:
संजीव 
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राम देव जी हों विभोर तो रचना-लाल तराशें शत-शत
हो समृद्ध साहित्य कोष शारद-सुत पायें रचना-अमृत
सुमन पद्म मधु रूद्र सलिल रह निर्भय दें आनंद पथिक को 
मुरलीधर हँस नज़र उतारें गह पुनीत नीरज सारस्वत
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सद्भावों की रेखा खीचें, सद्प्रयास दें वास्तव में श्री
पैर जमीं पर रखें जमाकर, हाथ लगेगा आसमान भी
ममता-समता के परिपथ में, श्वास-आस गृह परिक्रमित हों
नवरस रास रचाये पल-पल, राह पकड़कर नवल सृजन की
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