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बुधवार, 8 जुलाई 2015

एक प्रश्न : प्रेम, विवाह और सृजन

एक प्रश्न:
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लिखता नहीं हूँ, 
लिखाता है कोई
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वियोगी होगा पहला कवि 
आह से उपजा होगा गान 
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शब्द तो शोर हैं तमाशा हैं 
भावना के सिंधु में बताशा हैं 
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है
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हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं,
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अवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोज विच टेल ऑफ़ सैडेस्ट थॉट.
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जितने मुँह उतनी बातें के समान जितने कवि उतनी अभिव्यक्तियाँ

प्रश्न यह कि क्या मनुष्य का सृजन उसकी विवाह अथवा प्रणय संबंधों से प्रभावित होता है? क्या अविवाहित, एकतरफा प्रणय, परस्पर प्रणय, वाग्दत्त (सम्बन्ध तय), सहजीवी (लिव इन), प्रेम में असफल, विवाहित, परित्यक्त, तलाकदाता, तलाकगृहीता, विधवा/विधुर, पुनर्विवाहित, बहुविवाहित, एक ही व्यक्ति से दोबारा विवाहित, निस्संतान, संतानवान जैसी स्थिति सृजन को प्रभावित करती है? 

आपके विचारों का स्वागत और प्रतीक्षा है.      


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