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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

hindi doot dr. usha shukl

विश्व फलक पर हिंदी  

प्रो. उषा शुक्ल (दक्षिण अफ्रीका)
                                 हिंदी तनया प्रो. उषा शुक्ल (पी.एच.डी.)                                                                                                           

                              प्रोफेसर :- क्वाज़ुलु-विश्वविद्यालय, नाटाल 
                             उपाध्यक्ष-हिंदी शिक्षा संघ, दक्षिण अफ्रीका 
                                       shuklau@ukzn.ac.za
                                                                                                 
  विश्व में भारत की पहचान हिंदी से है । दुनिया के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन–अध्यापन होता है ।   विदेशों में अनेक लोग ऐसे हैं जो ’हिंदी के विश्वदूत’ बनकर हिंदी और हिन्दुस्तान का परचम फहरा रहे हैं। दुनिया के कोने-     कोने में बसे ऐसे हिंदी-सेवियों के योगदान को रेखांकित करने और उन्हें परस्पर एकजुट करते हुए हिंदी के प्रयोग व प्रसार को आगे बढ़ाने के लिए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ द्वारा ‘हिंदी के विश्वदूत’ नामक शृंखला प्रारंभ की जा रही है।

विदेशों में हिंदी के विद्यार्थियों व विदेशी विद्वानों के अतिरिक्त ऐसे भारतीयों ने भी विदेशों में हिंदी का प्रसार किया जो व्यापार – रोजगार आदि के चलते विदेशों में जा बसे। दुनिया में हिंदी के प्रसार में एक बहुत बड़ी भूमिका उन लोगों की है जिनके पूर्वज डेढ़-दो सौ साल पहले अंग्रेजों द्वारा मजदूरी के लिए अपने वतन से बहुत दूर दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, फिजी, सुरीनाम, वेस्टइंडीज आदि देशों में लाए गए थे और जो गिरमिटिया मजदूर कहलाए । ये वे लोग थे जो अंग्रेजों के जाल में फंसकर अपने वतन से बहुत दूर पहुंच गए थे और फिर उनके लिए वहाँ से लौटना नामुमकिन था। एक अनजानी सी धरती पर अपनी मातृभूमि से मिलने की कसक, अपनों से मिलने की चाह और अपनी मिट्टी की गंध उनके सीने में थी। उसी कसक को सीने में बसाए उन गिरमिटियों के वंशज आज भी पूरे गर्व और गौरव के साथ ‘हिंदी के विश्वदूत’ बनकर खड़े हैं।

दक्षिण अफ्रीका का डरबन शहर जो कि ऐसे ही भारतवंशियों का शहर है। इनके चेहरे-मोहरे से यहाँ इन्हें अलग से पहचाना जा सकता है। इस शहर के कण-कण में भारतीयता बसती है । हिंदी के भजनों और भक्ति संगीत में इनकी श्रद्धा पलती है और हिंदी फिल्मी गीतों में इनका दिल धड़कता है। आज सुबह ही वहाँ की बहन सुरीटा, जो बहुत अच्छी हिंदी नहीं जानती उसने सुबह-सुबह व्हाट्सऐप पर एक ऑडियो संदेश भेजा, सुना तो उसमें रामचरित मानस की संगीतमय चौपाइयाँ थीं। आज तक किसी भारतीय से मुझे ऐसा संदेश नहीं मिला। यहाँ का ‘हिंदी शिक्षा संघ’ इन लोगों के लिए हिंदी और हिंदुस्तान का मंदिर है। हिंदवाणी रेडियो स्टेशन के जरिए यहीं से ये हिंद और हिंदी को अपनी श्रद्धा के और अपनी वाणी के पुष्प अर्पित करते हैं।

‘हिंदी के विश्वदूत’ के अंतर्गत सर्वप्रथम आज हम इसी शहर की रहनेवाली प्रो० उषा शुक्ल के हिंदी के प्रति योगदान की चर्चा करेंगे। प्रो० उषा शुक्ल दक्षिण अफ़्रीका में एक कुशल, समर्पित एवं लोकप्रिय हिन्दी प्रचारक हैं। उनकी मान्यता है कि हिन्दी जीवन में उत्कर्ष लाती है। हिन्दी भाषा, साहित्य तथा गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस इनके हिन्दी-प्रेम के अभिन्न अंग हैं। उषा शुक्ल की हिन्दी सेवा यात्रा तीन मुख्य भागों में विभाजित की जा सकती है। बचपन से हिन्दी अध्ययन, हिन्दी का अध्यापन एवं विश्वविद्यालय में हिंदी की प्राध्यापिका और राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी तथा रामचरितमानस पर शोध, गोष्ठियों/सम्मेलनों में सहभागिता और योगदान (विशेषत: हिन्दी डायस्पोरा में) इस यात्रा के प्रमुख अंग हैं।

प्रो.उषा शुक्ल जब छोटी थी तब वहाँ हिन्दी शिक्षा संघ द्वारा हिंदी की कक्षाएँ चलाई जाती थीँ और उन कक्षाओं में हिंदी प्रचार सभा वर्धा(भारत) का पाठ्यक्रम चलाया जाता था। बचपन में यहीं से उनके हृदय में हिन्दी प्रेम का जन्म हुआ । हिन्दी सीखने और सिखाने की ललक उस समय से आज तक अनवरत विद्यमान है।


वैश्विक हिंदी सम्मेलन में प्रो. उषा शुक्ल का संबोधन धन 
वैश्विक हिंदी सम्मेलन में प्रो. उषा शुक्ल का संबोधन
 प्रो. उषा शुक्ल ने डरबन विश्वविद्यालय- वेस्टविले, नाटाल, दक्षिण अफ्रीका से हिन्दी में स्नातक तथा स्नातकोत्तर    स्तर पर अध्ययन किया । अपनी प्रतिभा के  चलते इन्हें जल्द ही डरबन विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक का पद  मिला और इनकी इच्छा के अनुसार इन्हें हिन्दी की प्रगति में योगदान देने के लिए स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। इनका  हिंदी प्रेम व हिंदी सेवा केवल कॉलेज की चारदीवारी तक सीमित नहीं थी, विश्वविद्यालय के बाहर भी वे हिन्दी सेवा में  लगी रहीं।  विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक होने के कारण प्रो० शुक्ल को स्नातकोत्तर शोध कार्य करने का अवसर  मिला और साथ ही अन्य हिन्दी विद्यार्थियों के स्नातकोत्तर  शोध कार्य में निर्देशन करने का मौका भी मिला। प्रो० शुक्ल  ने (एम.ए. तथा पीएच.डी. के लिए) रामचरितमानस संबंधी शोध से यह तथ्य प्रतिपादित किया कि हिन्दी  और  रामचरितमानस में परस्पर गहरा संबंध है। रामचरितमानस को पढ़ने और समझने के लिए बड़ी संख्या में हिन्दी–भाषी  हिन्दू हिन्दी सीखने के इच्छुक हैं। प्रो०  शुक्ल ने दो स्तरों पर महत्वपूर्ण सफलता पायी, पहली यह यह कि  रामचरितमानस के प्रति लोगों की रुचि बढ़ाई और दूसरी यह कि रामचरितमानस और हिन्दी  साहित्य के विशाल भंडार  के रत्नों से परिचय प्राप्त करने की प्रेरणा दी।

 जब अपने देश में हम अपनी भाषाओं को उचित स्थान नहीं दे रहे और इन्हें अवांछित सा बना दिया है तो इसका प्रभाव विदेशों तक भी पहुंच रहा है। डरबन  विश्वविद्यालय जिसका नाम अब क्वाज़ुलु- नाटाल विश्वविद्यालय (University of KwaZulu-Natal) है, वहाँ से अब भारतीय भाषाओं को हटा दिया गया और  स्कूलों में भारतीय भाषाओं के अध्ययन/अध्यापन में भी अनिश्चितता की स्थिति है। अत: प्रो० शुक्ल अब क्वाज़ुलु- नाटाल विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाने के साथ  प्रशासनिक कार्यों में हाथ बंटाती हैं । लेकिन वहाँ के भारतीयों के मन में हिंदी-प्रेम बरकरार है। इसके परिणामस्वरूप स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गयी है। प्रो. उषा शुक्ल अब हिन्दी शिक्षा संघ, दक्षिण अफ़्रीका और उसके रेडियो स्टेशन “हिन्दवाणी” के सान्निध्य में हिन्दी, रामचरितमानस तथा भारतीय संस्कृति को जनता तक पहुँचाने में लगी हुई है। ‘हिन्दी शिक्षा संघ’ की उपाध्यक्ष तथा शैक्षणिक समिति (Academic Committee) की अध्यक्ष के रूप में वे संघ के मूल उद्देश्यों की पूर्ति में प्रयासरत होने के साथ-साथ वे वहाँ ऊँची कक्षाओं में पढ़ाती हैं और अपने पड़ोस में वयस्कों तथा बच्चों के लिए हिन्दी पाठशाला भी चलाती हैं।

देश–विदेश में हिन्दी, रामचरितमानस तथा भारतीय संस्कृति के प्रसंग में संपर्क स्थापित करके प्रो० शुक्ल दक्षिण अफ़्रीका में हिन्दी सीखने/ सिखाने की नवीन उद्भावनाएँ एवं प्रेरणाएँ प्रदान कर रही हैं।


  हिंदी-प्रेम और हिदी के प्रसार को लेकर भारतीय मूल की ये दक्षिण अफ्रीकी विदूषी, प्रो. उषा शुक्ल भारत सहित अनेक     देशों की यात्राएँ करती रही हैं। दुनिया के कोने-कोने में और भारत की धरती पर आकर भी ये हिंदी का बिगुल बजाती      रही   हैं।10 सितंबर 2014 को जब ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’, द्वारा मुंबई में “वैश्विक हिंदी सम्मेलन- 2014” आयोजित   किया तो दक्षिण अफ्रीका हिंदी शिक्षा संघ के प्रतिनिधिमंडल में प्रो.उषा शुक्ल ने सक्रिय भागीदारी की और सम्मेलन    को  संबोधित करते हुए अपने ज्ञान व प्रयासों की एक छाप भी छोड़ी।

  एक शोधार्थी, एक प्रोफेसर और एक रचनाकार के रूप में उन्होंने हिंदी भाषा व साहित्य को बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान  दिया है। प्रो.उषा शुक्ल के हिंदी और हिंदी साहित्य संबंधी शोध प्रकाशनों का विवरण निम्नानुसार है।

पुस्तकें:-

• "Ramcharitmanas in South Africa" - BOOK - Motlial Banarsidass - Delhi, 2002.
• “Ramcharitmanas in the Diaspora: Trinidad, Mauritius and South Africa”, BOOK, Star Publications Pvt, Ltd.,  New Delhi-11.


शोध-पत्रिकाओं में हाल ही में छपे महत्वपूर्ण लेख/ Most Resent Journal Articles:-
• “दक्षिण अफ्रीका में रामचरित मानस की भूमिका” सृजन समिति, वाराणसी द्वारा प्रकाशित अनुकृति (एक बहु-विषयी अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान पत्रिका) भाग-2-स.6,जुलाई-सितंबर 2012 में पृष्ठ 1-4. पर प्रकाशित
• “Ramayana as the Gateway to Hindu Religious Expression among South African Hindi Speakers”, in Journal of Sociology and Social Anthropology, Special Volume, Vol. 4, No. 1-2, January & April 2013, Kamla-Raj Enterprises, Delhi, India, pp. 83-91.
• “Pilgrimage to India: Experiences of South African Hindi Speaking Hindus” in Nidan, Vol. 25, No.1. December 2013, pp 1-20.
• “Issues in the Rama Story: Genesis, Impact and Resolution” in Nidan, Vol. 21, December 2009, pp 69-91.
• “दक्षिण अफ्रीका में हिंदी की संघर्ष गाथा” ” विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरिशस की विश्व हिंदी पत्रिका- 2009 में प्रकाशित
• “हिंदी शिक्षा संघ: दक्षिण अफ्रीका” विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरिशस का ‘विश्व हिंदी समाचार , सितंबर – 2009
• “Empowerment of Women in the Ramayana: Focus on Sita” in Nidan, Vol. 22, December 2010, pp 22-39.

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