मुक्तिका:
क्या बताएं?…
संजीव
.
फैसले नज़दीकियों के दरमियाँ हैं
क्या बतायें हम जी क्या मजबूरियाँ हैं
फूल तनहा शूल के घर महफ़िलें हैं
तितलियाँ हैं या हसीं मग़रूरियाँ
नुमाइंदे बोटियाँ खा-खा परेशां
वोटरों को चाँद जैसी रोटियाँ हैं
फास्ट रोज़ा व्रत करो कब कहा उसने?
छलावा करते रहे पंडित-मियाँ हैं
खेल मैदां पर न होता खेल जैसा
खिलाडी छिप चला करते गोटियाँ हैं
'सलिल' गर्मी प्यास है पानी नहीं है
प्रशासन मुस्तैद मँहगी टोटियाँ हैं
***
क्या बताएं?…
संजीव
.
फैसले नज़दीकियों के दरमियाँ हैं
क्या बतायें हम जी क्या मजबूरियाँ हैं
फूल तनहा शूल के घर महफ़िलें हैं
तितलियाँ हैं या हसीं मग़रूरियाँ
नुमाइंदे बोटियाँ खा-खा परेशां
वोटरों को चाँद जैसी रोटियाँ हैं
फास्ट रोज़ा व्रत करो कब कहा उसने?
छलावा करते रहे पंडित-मियाँ हैं
खेल मैदां पर न होता खेल जैसा
खिलाडी छिप चला करते गोटियाँ हैं
'सलिल' गर्मी प्यास है पानी नहीं है
प्रशासन मुस्तैद मँहगी टोटियाँ हैं
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