नवगीत :
संजीव
.
खिल-खिलकर
गुल झरे
पलाशों के
.
ऊषा के
रंग में
नहाये से.
संध्या को
अंग से
लगाये से.
खिलखिलकर
हँस पड़े
अलावों से
.
लजा रहे
गाल हुए
रतनारे.
बुला रहे
नैन लिये
कजरारे.
मिट-मिटकर
बन रहे
नवाबों से
*
संजीव
.
खिल-खिलकर
गुल झरे
पलाशों के
.
ऊषा के
रंग में
नहाये से.
संध्या को
अंग से
लगाये से.
खिलखिलकर
हँस पड़े
अलावों से
.
लजा रहे
गाल हुए
रतनारे.
बुला रहे
नैन लिये
कजरारे.
मिट-मिटकर
बन रहे
नवाबों से
*
1 टिप्पणी:
Excellent Line, Thanks for sharing with us
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