मुक्तक:
संजीव
आशा की कंदील झूलती मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा खुश हो खुद को राख कर
नींव न हो तो कलश चमकते कहिए कैसे टिक पायें-
भोजन है स्वादिष्ट परखते 'salil' नॉन को चाख कर
संजीव
आशा की कंदील झूलती मिली समय की शाख पर
जलकर भी देती उजियारा खुश हो खुद को राख कर
नींव न हो तो कलश चमकते कहिए कैसे टिक पायें-
भोजन है स्वादिष्ट परखते 'salil' नॉन को चाख कर
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