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सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

doha salila:

दोहा:



सकल सृष्टि का मूल है, ॐ अनाहद नाद
गूंगे के गुण सा मधुर, राम-सुन जानें स्वाद

आभा आत्मानंद की, अनुपम है रसखान
जो डूबे सुन उबरता, उबरे डूब जहान



नयनों से करते नयन, मिल झुक उठ मिल बात
बात बनाता जमाना, काहे को बेबात

नयन नयन में झाँककर, लेते मन की टोह
मोह मिले वैराग में, वैरागी में मोह

भू-नभ नयनों बीच है, शशि-रवि रक्तिम गोल
क्षितिज भौंह हिल-डुल रुके, नाक तराजू तोल
*

जो जीता उसकी करें, जब भी जय-जयकार
मत भूलें दीपक तले, होता है अंधियार

जो हारा उसको नहीं, आप जाइए भूल
घूरे के भी दिन फिरें, खिलें उसी में फूल

लोकनीति से लोकहित, साधे रहे अभीत
राजनीति सच्ची व्ही, सध्या जिसे हो नीत

जनता जो निर्णय करे, करें उसे स्वीकार
लोकतंत्र में लोक ही, सेवक औ' सरकार

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