जनक छंद
तन मन रखिये स्वच्छ अब
स्वच्छ रखें परिवेश जब
स्वच्छ बनेगा देश तब
नदियाँ जीवनदाता हैं
सच मानें वे माता हैं
जल संकट से त्राता हैं
निकट नदी के मत जाएँ
मत कपड़े धो नहाएँ
मछली-कछुए जी पाएँ
स्नानागार बनें तट पर
करिए स्नान वहीं जाकर
करें प्रणाम नदी को फिर
नदी किनारे हों जंगल
पशु-पक्षी का हो मंगल
मनुज न जा करिए दंगल
*
तन मन रखिये स्वच्छ अब
स्वच्छ रखें परिवेश जब
स्वच्छ बनेगा देश तब
नदियाँ जीवनदाता हैं
सच मानें वे माता हैं
जल संकट से त्राता हैं
निकट नदी के मत जाएँ
मत कपड़े धो नहाएँ
मछली-कछुए जी पाएँ
स्नानागार बनें तट पर
करिए स्नान वहीं जाकर
करें प्रणाम नदी को फिर
नदी किनारे हों जंगल
पशु-पक्षी का हो मंगल
मनुज न जा करिए दंगल
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें