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मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

kavita:

कविता:
सफाई 

मैंने देखा सपना एक 
उठा तुरत आलस को फेंक 
बीजेपी ने कांग्रेस के 
दरवाज़े पर करी सफाई 
नीतीश ने भगवा कपड़ों का 
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए 
मुलायम की राहों से बीनें काँटे 
और मुलायम ममतामय हो 
लगा रहे फतवों को चाँटे 
जयललिता की देख दुर्दशा 
करुणा-भर करूणानिधि रोयें 
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की  
अवध पहुँच कर खेती बोयें 
गज़ब! सोनिया ने 
मनमोहन को 
मन मंदिर में बैठाया 
जन्म अष्टमी पर 
गिरिधर का सोहर 
सबको झूम सुनाया 
स्वामी जी को गिरिजाघर में 
प्रेयर करते हमने देखा 
और शंकराचार्य मिले 
मस्जिद में करते सबकी सेवा 
मिले सिक्ख भाई कृपाण से 
खापों के फैसले मिटाते 
बम्बइया निर्देशक देखे 
यौवन को कपडे पहनाते 
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस 
काम जल्दी निबटाते 
न्यायाधीश एक पेशी में 
केसों का फैसला सुनाते 
थानेदार सड़क पर  मंत्री जी का 
था चालान कर रहा 
बिना जेब के कपड़े पहने 
टी. सी.बर्थें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा 
बिना दलाल के सच्ची मानो
अगर देखना ऐसा सपना 
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो 
***  

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