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रविवार, 2 जून 2013

geet yaad aaee aaj sanjiv

गीत:
याद आई आज
संजीव
*
याद आई आज…
फिर-फिर याद आई आज…
*
कर-कर कोशिश हिम्मत हारी,
मंद श्वास की है अग्यारी।
आस-प्यास सब तुम पर वारी-
अपनों ने भी याद बिसारी।
तुम्हीं हो जिससे न किंचित लाज
याद आई आज…
*
था नहीं सुख में तुम्हारा साथ,
आज गुम जो कह रहे थे नाथ!
अब न सूझे हाथ को ही हाथ-
झुक रहा अब तक तना था माथ।
जब न सिर पर शेष कोई ताज
याद आई आज…
*
बिसारा सब लेन-देन अशेष,
आम हैं सब, कौन खास-विशेष?
छाँह आँगन में नहीं है शेष-
जाऊं कम कर भार, विहँसें शेष।
ना किसी को, ना किसीसे काज
याद आई आज…
*
कुछ न सार्थक या निरर्थक मीत,
गाये कब किसने किसीके गीत?
प्रीत अविनश्वर हुई प्रतीत -
रीत सुख-दुःख-साक्षी संगीत।
शब्द होते गीत कब-किस व्याज?
याद आई आज...
*
अनिल से मिल तजूँ रूपाकार,
अनल हो, सच को सकूँ स्वीकार।
गगन होकर पाऊँ-दूँ विस्तार-
धरा जग-आधार प्राणाधार-
'सलिल' देकर तृप्ति, वर ले गाज
याद आई आज…
*

9 टिप्‍पणियां:

kusum sinha ने कहा…

kusum sinha

priy sanjiv jee
kitni sundar kavitayein aap likh lete hain ki padhane par bahut khushi hoti hai
koi kitna bhi chahe etni sundar kavitayein likhna mere jaise log ke vash me nahi hai bas swasth rahiye
aur khub likhiye

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

बहुत भावपूर्ण रचना आचार्य जी,
सादर,
कुसुम वीर

indira pratap ने कहा…

Indira Pratap via yahoogroups.com

संजीव भाई,
गीत की क्या क्या विशेषताएं होनी चाहिएँ, क्या मन में आप अपने गीतोंकी कोई लय बना कर लिखते हैं या गीत भी कविता की तरह लिखे जा सकते है| मुझे गीत किसे कहें यह समझना है, गीत क्या भावों का उद्वेलन मात्र ही होते हैं या इस की कुछ और शर्तें भी होती हैं| जानने की उत्सुकता है| दिद्दा

sanjiv ने कहा…

दिद्दा
नमन
गीत वह जो गया जा सके। गाने के लिए आवश्यक है 'लय', लय के लिए आवश्यक है शब्दों का उतार-चढ़ाव नियमित अन्तराल के बाद... इसे 'गति' (शब्द-प्रवाह) और 'यति' (नियमित अन्तराल पर अल्प / अर्ध विराम) कहते हैं।
गति-यति के विविध सामंजस्यों से विविध छंद बनते हैं।
गीत में प्रारंभिक पंक्तियाँ 'मुखड़ा' या 'स्थाई' कहलाती हैं, इनसे गीत के विषय की जानकारी होती है, इन्हें बार-बार दोहराया जाता है। स्थाई एक, दो या चार पंक्तियों का होता है। पदभार सभी पंक्तियों का एक समान अथवा आधी का एक सा शेष आधी का भिन्न हो सकता है।
स्थाई के बाद की पंक्तियाँ 'अन्तरा' कही जाती हैं। अन्तरा में पंक्ति संख्या आवश्यकतानुसार होती हैं किन्तु उनका पदभार प्रायः समान होता है। पंक्तियों को विविध समूहों में अलग-अलग पदभार भी दिया जा सकता है। पारंपरिक गीतों में स्थाई और अंतरा की पक्तियां समान पदभार की होती हैं जबकि नवगीत में भिन्न। हर अन्तरा के बाद स्थाई दोहराया जाता है।
बहुधा रचनाकार धुन गुनगुनाकर गीत रचते हैं। गीत की एक पंक्ति को बार-बार दोहराकर अगली पंक्तियाँ उसी उतार-चढ़ाव के साथ हों तो संतुलन अपने आप आ जाता है मात्रा या अक्षर गिनने की आवश्यकता नहीं होती।
किसी पूर्व निर्धारित विषय पर केन्द्रित गीत रचना अपेक्षाकृत कठिन होता है जबकि बिना विषय के गीत रचते समय बिम्ब, प्रतीक आदि चुनने की स्वतंत्रता होती है।
गीत का शिल्प-विधान निर्धारित है। यह भावों का उद्वेलन मात्र नहीं है।
गीत भाव को लय में ढाल कर बिम्ब-प्रतीकों से सज्जित कर लालित्य सहित प्रस्तुति करना है। किसी कन्या को वधु के रूप में जाते समय जैसे अलंकृत किया जाता है वैसे ही गीत को भी सुरुचिपूर्ण तरीके से सजा-संवारकर प्रस्तुत किया जाता है।
गीत में रस, छंद और अलंकारों का सम्यक सामनजस्य होता है। अत्यधिक तडक-भड़क का श्रृंगार शालीन नहीं लगता, वैसे ही गीत में किसी एक तत्व का भाव या आधिक्य उसे विरूपित करता है।
आजकल मुझे जितनी मात्रा में और जितनी विधाओं में प्रतिदिन घंटों टंकन करना होता है, उसमें पहले से विषय का ज्ञान नहीं होता, न ही धुन बनाने के लिए समय होता है। प्रयोगात्मक प्रवृत्ति के कारण बनी बनाई लीक से हटकर या लीक को तोड़कर भी कई रचनाएँ होती हैं। माँ शारदा जो चाहती हैं रचवा लेती हैं और आप जैसे उदारचेता विद्वद्जन आशीष देकर उत्साहवर्धन करते हैं। मुझे अपना कोई विशेष पुरुषार्थ प्रतीत नहीं होता।
आशा है इतना पर्याप्त होगा।

indira pratap ने कहा…

thankyou sanjiiv bhai .

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

लय ताल में बंधी , संगीतमय चर्चा के लिए बधाई और सराहना !

सादर,
दीप्ति

shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

shishirsarabhai@yahoo.com

वाह, संजीव जी !

सादर नमन ..
शिशिर

Santosh Bhauwala ने कहा…

Santosh Bhauwala via yahoogroups.com

आदरणीय संजीव जी,
बहुत खूब!! साधुवाद
संतोष

sajjan dharmendra ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
अच्छा गीत है। दाद कुबूलें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’