इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ेंगे विविध दोहाकारों के प्रतिनिधि दोहे:
प्रतिनिधि दोहा कोष : १
नवीन सी. चतुर्वदी, मुंबई के दोहे :
सजल दृगों से कह रहा, विकल हृदय का
ताप।
मैं जल-जल कर त्रस्त हूँ, बरस रहे हैं
आप।१।
झरनों से जब जा मिला, शीतल मंद समीर।
झरनों से जब जा मिला, शीतल मंद समीर।
कहीं लुटाईं मस्तियाँ, कहीं बढ़ाईं
पीर।२।
निखर गईं तनहाइयाँ, बिखर गये हालात।
तरु को तनहा कर गये, झर-झर झरते
पात।३।
अपनी मरज़ी से भला, हुई कभी बरसात?
नाहक उस से बोल दी, अपने दिल की
बात।४।
झगड़े का मुद्दा बनी, बस इतनी सी
बात।
हमने माँगी थी मदद, उस ने दी
ख़ैरात।५।
जिन के तलुवों ने कभी, छुई न
गीली घास।
वो क्या समझेंगे भला, माटी
की सौंधास।६।
बित्ते भर की बात है, लेकिन
बड़ी महान।
मानव के संवाद ही, मानव की पहिचान।७।
मानव के संवाद ही, मानव की पहिचान।७।
भरे पड़े हैं हर सू यहाँ, ऐसे भी इन्सान।
फुस्सी बम जैसा जिगर, रोकिट
से अरमान।८।
बुधिया को सुधि आ गयी,अम्मा
की वह बात।
मन में रहे उमंग तो, दीवाली
दिन रात।९।
मातु-पिता, भाई-बहन,
सजनी – बच्चे – यार।
जब-जब ये सब साथ हों, तब-तब
है त्यौहार।१०।
चायनीज़ बनते नहीं, चायनीज़
जब खाएँ।
फिर इंगलिश के मोह में, क्यूँ फ़िरंग बन जाएँ।११।
द्वै पस्से भर चून अरु, बस चुल्लू भर आब।
फिर भी आटा गुंथ गया, पूछे
कौन हिसाब।१२।
अब तक है उस दौर की, आँखों
में तस्वीर।
बचपन बीता चैन से,
कालिन्दी के तीर।१३।
तमस तलाशें तामसी,
ख़ुशियाँ खोजें ख़्वाब।
दरे दर्द दिलदार ही, सही
कहा ना साब?१४।
सजनी सजना से कहे, सजन
सजाओ साज।
शब्दों में ही ढूँढते,
दीप-अवलि सुख-दैन।१६।
कल-कल कहते कट गया, कितना
काल-कराल।
जीवन में इक बार तो, कर मुझ
को ख़ुशहाल।१७।
अनुभव, ज्ञान,
उपाधियाँ, रिश्ते, नफ़रत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही
सदा की रीत।१८।
जीते जी पूछें नहीं, चलें
निगाहें फेर।
आँख मूँदते ही मगर,
तारीफ़ों के ढेर।१९।
उन्नत धारा प्रेम की, बहे
अगर दिन-रैन।
तो मानव-मन को मिले,
मन-माफ़िक सुख-चैन।२०।
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक।
जो करते विप्लव, उन्हें, 'हरि' का है आतंक।२१।
घी घटता ही जाय ज्यों, बाती जलती जाय।
नव यौवन सी झूमती, दीपाशिखा बल खाय।२२।
डग, मग महिं डगमग करत, मन बिसरत निज करम।
तन तरसत, झुरसत हृदय, इतिक बिरह कर मरम।२३।
अचल, अटल, अनुपम, अमित, अजगुत, अगम, अपार।
शुचिकर सुखद सुफल सरस;
दियनि-अवलि त्यौहार।२४।
अक्सर ऐसे भी दिखें, कुछ
मोड्रन परिवार।
मिल-जुल कर ज्यों चल रही, गठबंधन सरकार।२५।
अब ताईं है मोहि, वा –
भोजन सों अनुराग।
फुलका मिस्से चून के,
करकल्ले कौ साग।२६।
सचिन सचिन सच्चिन सचिन, सचिन सचिन सच्चिन्न।
दुनिया की किरकेट का, तुम हो
भाग अभिन्न।२७।
चल फिर हम तुम प्रेम से, करें प्रेम की बात।
प्रेम सगाई विश्व में,
सर्वोत्तम सौगात ।२८।
ताव भूल कर भाव जब, सहज पूछता
क्षेम।
अनुभावों की कोख से,पुलक
जन्मता प्रेम ।२९।
लाला लाला लालला, लाला
लाला लाल।
दोहा लिखने के लिये, उत्तम
यही मिसाल।३०।
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