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रविवार, 11 दिसंबर 2022

राम मंदिर ध्वंस और तुलसीदास

राम मंदिर ध्वंस और तुलसीदास  
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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गोस्वामी तुलसी दास रचित रामचरित मानस में राम मंदिर ध्वंस संबंधी विवरण न होने से कुछ लोग इस घटना की सत्यता में संदेह करते हैं पर वे भूल जाते हैं कि तुलसी के अन्य अन्य ग्रंथ और हैं। तुलसी ने इस घटना का उल्लेख अपनी 'दोहा शतक' नामक कृति में ९ दोहों में किया है।   

राममंदिर का ध्वंस तथा रामसमाज (राम दरबार) की मूर्तियों को बाबर के सेनापति मीर बाकी ने   १५२८ में नष्ट किया। तब तुलसीदास (जन्म १५११ - निधन १६२३) केवल १७ वर्ष के किशोर थे। वे राम मंदिर ध्वंस के बाद ९५ वर्ष जिए थे। मीरबाकी द्वारा मस्जिद (मसीत) बनाए जाने के तुलसी ने स्पष्ट उल्लेख किया है- 

राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।
तुलसी रची मसीत तहँ मीरबकी खल नीच ॥

अर्थात अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीरबकी ने मस्जिद बनवाई ।

गोस्वामी तुलसीदास जी यह विवरण रामचरित मानस में इसलिए नहीं दिया कि वह ग्रंथ राम पर केंद्रित है। ''तुलसी शतक'' नमक कृति में में इस घटना का सविस्तार विवरण है। 

मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ, बहु पुरान इतिहास।
जवन जराये रोष भरि, करि तुलसी परिहास॥

तुलसी कहते हैं कि क्रोध से भरकर मुसलमानों ने  कई मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थ, पुराण और इतिहास ग्रन्थों का उपहास करते हुए उन्हें जला दिया।

सिखा सूत्र से हीन करि, बल ते हिन्दू लोग ।
भमरि भगाये देश ते, तुलसी कठिन कुजोग ॥

तुलसी के अनुसार कठिन कुयोग है कि हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यज्ञोपवीत से रहित कर घर छीनकर उनके पैतृक देश से भगा दिया गया।

बाबर बर्बर आइके, कर लीन्हे करवाल।
हने पचारि पचारि जन, तुलसी काल कराल॥

बर्बर बाबर आया हाथ में तलवार लिए आया और ललकारकर लोगों की हत्या की। यह समय अत्यन्त भीषण था। तुलसी कहते हैं कि यह भीषण विकराल समय  है। 

सम्बत सर वसु बान नभ, ग्रीष्म ऋतू अनुमानि।
तुलसी अवधहिं जड़ जवन, अनरथ किय अनखानि॥

ज्योतिषीय काल गणना करते समय अंक दाहिने से बाईं ओर लिखे गए हैं। तदनुसार सर (शर) = ५, वसु = ८, बान (बाण) = ५, नभ = १ अर्थात विक्रम सम्वत १५८५ और विक्रम सम्वत में से ५७ वर्ष घटा देने से ईस्वी सन १५२८)। तुलसीदास कहते हैं कि सम्वत् १५८५ विक्रमी (सन १५२८ ई.) के ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों ने अवध में वर्णनातीत अनर्थ किए।

राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय।
जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी कीन्ही हाय॥

राम जन्मभूमि मन्दिर नष्ट कर उन्होंने मस्जिद बनाई। जहाँ बहुत हिन्दू थे वहाँ तुलसी है-है कर रहे हैं क्योंकि कोइ हिन्दू जिन्दा नहीं बचा। 

दल्यो मीरबाकी अवध, मंदिर राम समाज।
तुलसी रोवत ह्रदय हति, त्राहि त्राहि रघुराज॥

मीरबाकी ने मंदिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को दल दिया अर्थात तोड़कर रौंदकर नष्ट कर दिया । तुलसी का ह्रदय रो-रो कर श्री राम से त्राहि-त्राहि का रहा है।

राम जनम मन्दिर जहाँ, तसत अवध के बीच।
तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबकी खल नीच॥

राममन्दिर जहाँ अवध के मध्य में था, तुलसी कहते हैं किवहीं नीच मीरबाकी ने मस्जिद बनाई ।

रामायन घरि घट जहाँ, श्रुति पुरान उपखान।
तुलसी जवन अजान तहँ, करत कुरान अज़ान॥

जहाँ रामायण घर-घाट में सर्वत्र थी, श्रुति, वेद, पुराण के पाठ होते थे, तुलसीदास कहते हैं कि जहाँ अजान (जिसे जाना न जा सके अर्थात परमात्मा) संबंधी चर्चाएँ होती थीं वहीं अजान (श्लेष अलंकार अर्थ न जाननेवाले, अज्ञानी तथा खुदा को पुकारना) कुरआन और अज़ान करते हैं।
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