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रविवार, 4 दिसंबर 2022

कैकेयी

कैकेयी  

कैकेयी थी कौन, जान न पाए आज तक। 

समय रह गया मौन, अपराधिन कह कर उसे।।

राजकुँवरि थी श्रेष्ठ, रूपवती वीरांगना। 

घट न सके कुछ नेष्ठ, किया त्याग अनुपम; न कह।।

धर्म संस्कृति हेतु, जीवन का बलिदान कर। 

बना सकी वह सेतु, वृद्ध व्यक्ति का कर वरण।।

गई युद्ध में साथ, पति की रक्षा कर सकी।

बनीं तीसरा हाथ, अँगुलि चक्र में लगाकर।।

पाए दो वरदान, किन्तु नहीं माँगा उन्हें। 

थी रघुकुल की आन, कैकेयी रक्षा कवच।।  

लक्ष्य मात्र था एक, रक्ष संस्कृति नष्ट हो।   

कार्य किया हर नेक, सौत डाह से मुक्त रह।।

दिया हवन का भाग, छोटी रानी को विहँस। 

अधिकारों का त्याग, कैकेयी करती रही।। 

निज सुत से भी अधिक, सौत-पुत्र को प्यार दे। 

किया सभी को चकित, प्राणाधिक अधिकार दे।।

दी-दिलवाई नित्य, शिक्षा-दीक्षा सुतों को। 

किए उचित हर कृत्य, तज विशेष अधिकार हर।।




  

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