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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

सॉनेट, गीत, नया साल

आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
धूप
*
धूप है उपहार दिनकर का
धूप पाकर दमकता है रूप
धूप है श्रृंगार जीवन का।
धूप से ही सूर्य दिन का भूप।

धूप तम हरती, न लेती दाम
धूप को कोई न अपना गैर
धूप करती काम नित निष्काम
धूप सबकी चाहती है खैर।

धूप सचमुच है अनूप महान
धूप आती है सभी के काम
धूप जैसा बन जरा इंसान 
धूप चाहे यश न वंदन-नाम।

धूप बिन जीवन लगे निस्सार
धूप से लें सीख करना प्यार।
संजीव
२७-१२-२०२२,७•२९
जबलपुर 
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[28/12, 07:54] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
प्रकाश 
जन्म तिमिर के गर्भ से मिला
देते देते उमर बिताई
फिर भी किया न तनिक गिला
सकल सृष्टि ने की पहुनाई 

आसमान से भू तक आया
हर ज़र्रे को किया प्रकाशित 
सारी दुनिया के मन भाया
नहीं किसी को किया विभाजित 

नहीं किसी ने मोल चुकाया
खाली हाथों मरे जोड़ जो
अंधकार ही उनने पाया
नाहक कर कर होड़ मरे वो

नन्हा जुगनू बाँट रौशनी
कहता मैं वारिस प्रकाश का
संजीव 
२८-१२-२०२२, ७•५४
जबलपुर 
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[28/12, 14:16] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": एक दोहा
सलिल नीर बादलज जल, मेघज कमलद तोय।
अंबु आब पानी विमल, दे तृषारि हर मोय।।
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[29/12, 07:13] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
जागेश्वर 
हे जागेश्वर नाथ! जगाओ
सोते-सोते उमर बिताई
अंत समय में मति पछताई
हे गुप्तेश्वर! दरश दिखाओ।।

हे महेश त्रिपुरारि महेश्वर
हे नटराज महाकालेश्वर
हे उमेश शिव, हे रामेश्वर
चरण शरण दो हे घुश्मेश्वर।।

काम क्रोध माया रिपोर्ट घेरे
व्याकुल आत्मा तुमको टेरे
दया दृष्टि कर केदारेश्वर।।

भोले भय हर निर्भय कर दो
सलिल करे अभिषेक हमेशा
कंकर शंकर हो नर्मदेश्वर।।
संजीव
२९-१२-२०२२,७•१३
जबलपुर 
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[29/12, 08:42] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट
कुछ करिए 
कुछ करिए, मत डरिए जी।
मिलकर आगे बढ़िए जी।
गिर उठ सीढ़ी चढ़िए जी।।
मन में धीरज धरिए जी।।

मैं-तू से हम बनिए जी।
बात न कड़वी कहिए जी।
मीठी यादें तहिए जी।।
झुकें,  न नाहक तनिए जी।

कुछ औरों की सुनिए जी।
जगकर सपने बुनिए जी।
व्यर्थ नहीं सिर धुनिए जी।।

जोड़ न नाहक रखिए जी।
मीठा-कड़वा चखिए जी।
खुद को कभी परखिए जी।।
संजीव
२९-१२-२०२२,८•४२
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[29/12, 18:34] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": सॉनेट 
रश्मि
रश्मि को ले साथ बढ़िए
कीजिए जय हँस तिमिर को।
ज़िंदगी-सोपान चढ़िए।।
जीतिए जीवन समर को।।

रश्मि-रथ ले सूर्य वंदित।
करे श्रम नित बिना नागा।
रश्मि-पथ पर चंद्र अर्चित।।
कहें कब विश्राम माँगा?

रश्मि का मत हाथ छोड़ें।
अँधेरे से लड़ें पल-पल।
कोशिशों से राह मोड़ें।।
उजाले जाएँ नहीं ढल।।

रश्मि से कर मित्रता हँस। 
रश्मि के बन मीत रहिए।।
संजीव 
२९-१२-२०२२,१८•३४
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[30/12, 13:26] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": हाथ में हाथ लिए साथ-साथ चलना है।
ऊगना कल है अगर आज सूर्य ढलना है।।
अँधेरा चीरकर  हम फिर उजास लाएँगे-
नयन में मीत नए स्वप्न नित्य पाना है।।
[30/12, 13:33] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": भोजपुरी दोहे:
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
नेह-छोह रखाब सदा
*
नेह-छोह राखब सदा, आपन मन के जोश.
सत्ता का बल पाइ त, 'सलिल; न छाँड़ब होश..
*
कइसे बिसरब नियति के, मन में लगल कचोट.
खरे-खरे पीछे रहल, आगे आइल खोट..
*
जीए के सहरा गइल, आरच्छन के हाथ.
अनदेखी काबलियत कs, लख-हरि पीटल माथ..
*
आस बन गइल सांस के, हाथ न पड़ल नकेल.
खाली बतिय जरत बा, बाकी बचल न तेल..
*
दामन दोस्तन से बचा, दुसमन से मत भाग.
नहीं पराया आपना, मुला लगावल आग..
*
प्रेम बाग़ लहलहा के, क्षेम सबहिं के माँग.
सुरज सबहिं बर धूप दे, मुर्गा सब के बाँग..
*
शीशा के जेकर मकां, ऊहै पाथर फेंक.
अपने घर खुद बार के, हाथ काय बर सेंक?
*
९४२५१८३२४४
[31/12, 06:54] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": अंक माहात्म्य  (०-९)
*
शून्य जन्म दे सृष्टि को, सकल सृष्टि है शून्य। 
जुड़-घट अंतर शून्य हो, गुणा-भाग फल शून्य।।
*
एक ईश रवि शशि गगन, भू मैं तू सिर एक।
गुणा-भाग धड़-नासिका, है अनेक में एक।।
*
दो जड़-चेतन नार-नर, कृष्ण-शुक्ल दो पक्ष।
आँख कान कर पैर दो, अधर-गाल समकक्ष।। 
*
तीन देव व्रत राम त्रय, लोक काल ऋण तीन।
अग्नि दोष-गुण ताप ऋतु, धारा मामा तीन।।
*
चार धाम युग वेद रिपु, पीठ दिशाएँ चार।
वर्ण आयु पुरुषार्थ चौ, चौका चौक अचार।। 
*
पाँच देव नद अंग तिथि, तत्व अमिय शर पाँच। 
शील सुगंधक इन्द्रियाँ, कन्या नाड़ी साँच।।
*
छह दर्शन वेदांग ऋतु, शास्त्र पर्व रस कर्म।  
षडाननी षड राग है, षड अरि-यंत्र न धर्म।।
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सात चक्र ऋषि द्वीप स्वर, सागर पर्वत रंग।
लोक धातु उपधातु दिन, अश्व अग्नि शुभ अंग।। 
*
अष्ट लक्ष्मी सिद्धि वसु, योग कंठ के दोष।
योग-राग के अंग अठ,  आत्मोन्नति जयघोष।
*
नौ दुर्गा ग्रह भक्ति निधि, हवन कुंड नौ तंत्र।
साड़ी मोहे नौगजी, हार नौलखा मंत्र।। 
संजीव
[31/12, 16:42] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": गीत 
बिदा दो
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
*
भूमिका जो मिली थी मैंने निभाई 
करी तुमने अदेखी, नजरें चुराई
गिर रही है यवनिका अंतिम नमन लो
नहीं अपनी, श्वास भी होती पराई
छाँव थोड़ी धूप हमने साथ झेली
हर्ष गम से रह न पाया दूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
*
जब मिले थे किए थे संकल्प 
लक्ष्य पाएँ तज सभी विकल्प 
चल गिरे उठ बढ़े मिल साथ
साध्य ऊँचा भले साधन स्वल्प
धूल से ले फूल का नव नूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
*
तीन सौं पैंसठ दिवस थे साथ
हाथ में ले हाथ, उन्नत माथ
प्रयासों ने हुलासों के गीत 
गाए, शासन दास जनगण नाथ
लोक से हो तंत्र अब मत दूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
*
जा रहा बाईस का यह साल
आ रहा तेईस करे कमाल
जमीं पर पग जमा छू आकाश 
हिंद-हिंदी करे खूब धमाल 
बजाओ मिल नव प्रगति का तूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
*
अभियान आगे बढ़ाएँ हम-आप
छुएँ मंज़िल नित्य, हर पथ माप
सत्य-शिव-सुंदर बने पाथेय
नव सृजन का हो निरंतर जाप
शत्रु-बाधा को करो झट चूर
बिदा दो, जाना मुझे है दूर
चिर विरह नव मिलन का संतूर 
संजीव 
३१-१२-२०२२
१६•३६, जबलपुर 
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[31/12, 22:31] आचार्य संजीव वर्मा "सलिल": महाकाल ने
महाग्रंथ का 
पृष्ठ पूर्ण कर, 
नए पृष्ठ पर लिखना 
फिर आरंभ किया है।
रामभक्त ने 
राम-चरित की चर्चा करके
आत्मसात सत-शिव करना
प्रारंभ किया है।
चरण रामकिंकर के गहकर
बहे भक्ति मंदाकिनी कलकल।
हो आराम हराम हमें अब
छू ले लक्ष्य,
नया झट मधुकर।
कृष्ण-कांत की
वेणु मधुर सुन।
नर सुरेश हों,
सुर भू उतरें।
इला वरद,
संजीव जीव हो।
शंभुनाथ योगेंद्र जगद्गुरु 
चंद्रभूषण अमरेंद्र सत्य निधि।
अंजुरी मुकुल सरोज लिए हो
करे नमन कैलाश शिखर को।
सरला तरला, अमला विमला
नेह नर्मदा-पवन प्रवाहित।
अग्नि अनिल वसुधा सलिलांबर
राम नाम की छाया पाएँ।
नए साल में,
नए हाल में,
बढ़े राष्ट्र-अस्मिता विश्व में।
रानी हो सब जग की हिंदी 
हिंद रश्मि की विभा निरुपमा।
श्वास बसंती हो संगीता, 
आकांक्षा हर दिव्य पुनीता।
निशि आलोक अरुण हँस झूमे
श्रीधर दे संतोष-मंजरी।
श्यामल शोभित हरि सहाय हो,  
जय प्रकाश की 
हो जीवन में।
मानवता की 
जय जय गाएँ।
राम नाम हर पल गुंजाएँ।।
३१-१२-२०२२
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