पुरोवाक्
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गीत संग्रह
हरीतिमा चहुँ ओर
विषय सूची
1. वन्दना गीत
2. सब धर्मों का होता मान
3. सबका मन मोहे
4. बोलो कैसे खुशी मनाएं
5. दिल से होता वह धनवान
6. प्रेम हृदय में पलने दो
7. जन कल्पित होते प्रतिमान
8. हरीतिमा चहुँ ओर
9. हृदय उजाला लाये
10. कविवर तब रचना गढ़ते
11. बनता वही सुजान
12. स्वप्न किया साकार
13. जश्न मने हर गाँव में
14. उनका ही होता उत्थान
15. गंगा नहायेंगे
16. उनका स्वर सुनते पल-पल
17. करता क्यों अभिमान
18. अनुपम ये सौगात है
19. प्रथम नमन स्वीकार करो माँ
20. सद्कर्मों से
सुगम प्रभात
21. स्वर्ण मुखरता जब तपता
22. स्वप्निल दीप जलाए
23. रावण की यह भान था
24. शीघ्र सजा का बने विधान
25. बंधन ये अनमोल
26. जग में करूँ प्रसार
27. रखती हृदय सुवास
28. जीवन जीते बंजारे
29. पवन बसंती बहती
30. रावण ने संज्ञान लिया
31. रखना हमें जुनून
32. मिले रश्मि सौगात
33. सप्त सुरों में होती बात
34. कूकते निकले सवेरा
35. बढा जगत में अत्याचार
36. मधुर प्रेम की बहती गन्ध
37. जीवन की सच्चाई
38. मानवता की होती हार
39. मिलकर करे ठिठोली
40. छोड़े अब सब सभी विवाद
41. अपना धर्म निभाते
42. रीत रहे निश्ते-नाते
43. आस जगाता रहता दीप
44. शांत चित्त हो करते ध्यान
45. कर्म बन्ध ही जायेगा
46. जग ने छलते देखा है
47. कुदरत की सौगात
48. समझ न पाते कुछ राही
49. जीव जगत है आभारी
50. एक पंथ दो काज
51. सन्देशा कुछ दे जाते
52. जब तक लेती स्वास जिंदगी
53. उसकी ताकत जानले
54. झरे हृदय की चादर में
55. बनता वही विवेकानंद
56. मिलकर फसल उगातें
57. जाते वे ही मधुशाला
58. करे नित्य हम योग
59. अमृत उत्स्त्व सभी मनाएं
60. बना देश की शान तिरंगा
61. बाढ़ निगोड़ी आई
62. सुरक्षा देश की करते
63. सच्चे दिल इन्सान
64. नेह की दरिया दिली
65. जग को गीता
गयं कराया
66. धन वर्षा को
आतुर सारे
67. बसा रहा क्यो जंगल राज
68. वही ताप को
सहता देही
69. खुशी मिले व्यवहार में
70. अहो भाग्य लेकर आयी
71. श्रम करते भरपूर
72. कुदरत से नाता
भारी
73. धैर्य से डिगते नहीं
74. दिल मे ज्योति जलाना है ।
75. चरणों शीश झुकाता
76. कहे उन्हीं को जगत सुजान
77. हिंदी से भारत का मङ्गल
78. माने उसको जगत सुजान
79. कभी न भूले कृत्य
80. असुरों का संहार किया
81. हुई विकसित कहानी है
82. विजय पताका फहरें
गीत संग्रह
हरीतिमा चहुँ ओर
सरस्वती वंदना!
=============
हे ज्ञान दायिनी सरस्वती!, ज्ञान हृदय में भर दो माँ ।
हे धवल सुहासिनी शारदे!, मन उजियारा कर दो माँ ।।
हे स्वर निवासिनी वाणी माँ!, स्वर में आकर बस जाओ ।
हे मात मिनर्वा, वागीशा!, आकर मन को सरसाओ ।।
हे विश्वतारिणी जग माता!, मेरी विनती सुन लीजे ।
हे ज्ञानेश्वरी! कृपा कर के, अब कृपा दास पर कीजे ।।
विनती इतनी है माँ! तुमसे, कर मस्तक पर धर दो माँ ।
हे ज्ञानदायिनी सरस्वती!, ज्ञान हृदय में भर दो माँ
।।(१)
हे वर प्रदायिनी विद्या माँ!, मुझको मोहक वाणी दो
ज्ञानोदय माता हो जाये , चिंतन वीणापाणी दो ।।
हे पद्मासना भगवती माँ, है मेरा यही निवेदन ।
मैं अबोध अज्ञानी हूँ माँ, चैतन्य करो मम चेतन ।।
हे कमललोचने दृष्टि करो, व्यक्तित्व मनोहर दो माँ ।
हे ज्ञान दायिनी सरस्वती, ज्ञान हृदय में भर दो माँ
।।(२)
हे सलिला स्वच्छ हृदय कर दो, सबको शुभ सम्बोधन हो ।
उत्तम भावों का अर्चन हो, जन हित में उद्बोधन हो ।।
सन्देश भरे हों काव्य सभी, उर निर्मल भाव जगाना ।
पथ से यदि भटक रहे हों पग, तब मुझको राह दिखाना ।।
हे प्रबुद्ध शुद्ध भारती माँ , भक्ति भाव का वर दो माँ ।
हे ज्ञान दायिनी सरस्वती, ज्ञान हृदय में भर दो माँ
।।(३)
2. सब धर्मों का होता मान
राम-कृष्ण के
इसी देश में, सब धर्मों का होता मान ।
भारत माता मात
हमारी, सभी करें इसका सम्मान ।।
शिष्य सीखते
हैं गुरुवर से, रखकर दिल में आदर भाव ।
मान करें सब
योग्य जनों का, जिनके मन में नहीं दुराव ।।
मर्यादा रख
शीश झुकाते, रहे हृदय में जिनको भान ।
राम-कृष्ण के
इसी देश में, सब धर्मों का होता मान ।।
स्नेह-मिलन
सद्भाव हृदय में,मन की बगिया भरे हिलोर ।
जब मिलते दो
छोर नदी के, विश्वासों की बढ़ती डोर ।।
हाथ मदद के
बढ़ते जिनके, प्रभु उनको देते प्रतिदान ।
राम-कृष्ण के
इसी देश में, सब धर्मों का होता मान ।।
सर्व-धर्म
सद्भाव जहाँ हो, हृदय रहें सबका गुलजार ।
ईद-दिवाली सभी
मनाते, सबका ही करते सत्कार ।।
बिना स्वार्थ
के इमदादी की, मदद करे सच्चा इन्सान ।
राम-कृष्ण के
इसी देश में, सब धर्मों का होता मान ।।
3. सबका मन मोहे
धरा गगन के बीच
घटा भी, कभी डराती है ।
छटा बिखेरे
कभी चाँदनी, शान बढ़ाती है ।।
बरसाती मौसम
में पर्वत, आच्छादित सोहे ।
चहुँ ओर ही
बाग-बगीचे, सबका मन मोहे ।।
गूँजें जब भी
मेघ घनागन, वर्षा आती है ।
छटा बिखेरे
कभी चाँदनी, शान बढ़ाती है ।।
भ्रमर गूँजते
कली फूल पर, उपवन महकाएँ ।
चमक रही मोती
सी बून्दें, पेड़ों पर छाएँ ।।
वन उपवन में
कभी मोरनी, रास रचाती है ।
छटा बिखेरे
कभी चाँदनी, शान बढ़ाती है ।।
सुधर प्रदूषण
हवा सुवासित, सदा लुभाती है ।
मौसम से जीवन
की श्वासें, सुहास लाती है ।।
सीली मिट्टी
की खुशबू तब, मन हर्षाती है ।
छटा बिखेरे
कभी चाँदनी, शान बढ़ाती है ।
4. बोलो कैसे खुशी मनाएँ
लील रहा
कोरोना नित उठ, बोलो कैसे खुशी मनाएँ ।
हृदय बसी अपनो
की यादें, उत्कर्षो के स्वप्न सजाएँ ।।
क्रंदन की
आवाजें सुनते, छा जाती घनघोर घटाएँ ।
बादल गरजे
बिजुरी चमके, रात अँधेरी हमें डराएँ ।।
देर रात तक
जागा करते, आखिर किसने नींद चुराई।
दो गज की दूरी
से बोलो, कैसे खुश हो गले लगाएँ ।।
शीतल मस्त
हवाओं में अब, नही उमड़ती प्रेम कहानी ।
कलियों के
अधरों पर कैसे, भँवरों की होगी मनमानी ।।
साँसों की गति
तेज हुई हैं, अनहोनी से डरता प्राणी ।
संक्रामक हो
हँसे जवानी, छोड़ चले सारी चिंताएँ ।।
खुशियों का
मेला है जीवन, लेकिन दुख भी सहने होंगे ।
यक्ष प्रश्न
जीवन के जितने, चिंतन कर सुलझाने होंगे ।।
क्षण भंगुर ये
जीवन अपना, सम्बन्धों के बीच तना है ।
त्योहारों की
शाम सजाकर, हर्षित मन मे दीप जलाएँ ।।
5. दिल से होता वह धनवान
करे सहायता
सदा दीन की, दिल से होता वह धनवान ।
इमदादी की मदद
स्वार्थ बिन, करता वह सच्चा इन्सान ।।
सेवा करके उसे
गिनाते, होता उनमें खूब घमण्ड ।
प्रतिफल में
सेवा जो लेते, वही वसूले उनसे दण्ड ।।
लेन-देन का
सौदा करते, करते रहते वे अभिमान ।
इमदादी की मदद
स्वार्थ बिन, करता वह सच्चा इन्सान ।।
तरुवर खाता नहीं
स्वयं फल, सरवर करे न जल का पान ।
परहित में ही
मदद करे जो, नहीं चाहते वे प्रतिदान ।।
कौन मदद करता
है किसकी, इसका अब लेना संज्ञान।
इमदादी की मदद
स्वार्थ बिन, करता वह सच्चा इन्सान ।।
हावी होती गई
फर्ज पर, संस्कारों पर जमती धूल ।
डूब गए सब
सुविधाओं में, कर्त्तव्यों को बिल्कुल भूल।।
बने सहायक सभी
सबल के, निर्बल के केवल भगवान ।
इमदादी की मदद
स्वार्थ बिन, करता वह सच्चा इन्सान ।।
6. प्रेम हृदय में पलने दो
चाहे जितनी
दूर रहो पर, मुझे राधिका बनने दो ।
बनकर राधा
मुझे तुम्हारे, कृष्ण हृदय में बसने दो ।।
आस-पास रहकर
भी तुम क्यों, करते कोई बात नहीं ।
प्यार किया है
केवल तुमसे, क्या इतना भी ज्ञात नहीं ।।
मन प्रांगण
बेला महकाती, हृदय सँजोती जब यादें ।
अपने मन में
आशाओं के, दीप सदा ही जलने दो ।।
जिसकी कोई भोर
न होगी, ऐसी कोई रात नहीं ।
तुम्हीं बसे
हो मेरे दिल में, और दूसरी बात नहीं ।।
जीवन की गीता
को पढ़ते, हम कितने निष्काम हुए ।
आस-पास तुम
भले नहीं हो, प्रेम हृदय में पलने दो ।।
लिखा तुम्हीं
पर प्रेम गीत फिर, हर अक्षर से प्रेम किया ।
ढलके आँसू नयन
मेघ से, उन्हें अधर से चूम लिया ।।
इच्छाओं के इस
उपवन में, स्वप्न तुम्हारे नाम हुए ।
आस-पास हो इन
गीतों से, अनुभव मुझको करने दो ।।
7. जन-कल्पित होते प्रतिमान
श्रद्धा बिन
किसको मिलता है, यहाँ भक्ति का बोलो ज्ञान ।
भक्ति-भाव से
देखे उनको, कण-कण में दिखते भगवान।।
नत मस्तक हो
झुकते प्राणी, जिनके मन में नहीं गुमान ।
अंतस से आवाज
निकलती, करें उन्हीं का हम सम्मान ।।
आत्म-रूप में
बसा हृदय में, छुपा हुआ माया की ओट ।
संशय मन के
छोड़ सदा ही, बने रहें हम श्रद्धावान ।।
मन्दिर मस्जिद
गिरिजाघर में, ढूंढें जाकर प्रभु को रोज ।
मन मन्दिर में
ईश अंश की, करे न ध्यान मग्न हो खोज ।।
आत्म-तत्व को
शुध्द करें तो, बनते ईसा नानक बुद्ध ।
पञ्च-तत्व से
बने भवन में, मन मन्दिर हो आलीशान ।।
कहे विधाता एक
ईश है, सृजित उसी के रूप अनेक ।
भले पुकारो
भिन्न नाम से, ईश्वर तो है जग में एक ।।
सत्य एक है
नाम ईश का, मिथ्या बाकी जग-व्यवहार ।
जाति धर्म या
पंथ सभी तो, जन-कल्पित होते प्रतिमान ।।
8. हरीतिमा चहुँ ओर
लगे सुहानी
धरती प्यारी, हरीतिमा चहुँ ओर ।
हर्षित हो जब
हृदय हमारा, होते भाव विभोर ।।
मोती सी बूंदें वर्षा की, मन में भरे उमंग ।
बरसातों में
ही दिखते हैं, इंद्र-धनुष के रंग ।।
अंतर्मन की
ज्वाला करती, नेह बूंद ही शांत ।
हरे-भरे आँगन
में खुश हो, नाचे मन का मोर ।।
मधुर-मिलन की
आस जगाए, मन की मीठी प्यास।
मखमल सी
हरियाली मन में, खूब जगाए आस ।।
साजन को
आमंत्रण देते, सजनी मन के गीत ।
करे प्रतीक्षा
सजनी जब भी, भीगे दृग के कोर ।।
प्राण-पगे रस
रूप गन्ध ये, ले आती बरसात ।
आशा प्रतिपल
द्वार निहारे, ढले न जल्दी रात ।।
बारिश में
हरियाली जब हो, धरती गाए गान ।
मखमल जैसी धरा
देखकर, मन में उठे हिलोर ।
9. हृदय उजाला लाये
बात करो कितनी
भी मिथ्या, कभी नहीं टिक पाए ।
तथ्य सामने जब
भी आये, शर्म उन्हें तब आए ।।
भाव भंगिमा
हाव-भाव से, सत्य उजागर होता ।
छटे कुहासा जब
मिथ्या का, सारे दुखड़े रोता ।।
क्षणिक लाभ के
लिए आदमी, बात यथार्थ छुपाए।
तथ्य सामने जब
भी आये, शर्म उन्हें तब आए ।।
जीवन की आपा
धापी में, झूठ बोल क्यों अकड़े ।
छल प्रपंच के
झंझावाती, मानव मन को जकड़े ।।
लोभ मोह को
छोड़ सके तो, मन से तमस हटाए
तथ्य सामने जब
भी आये, शर्म उन्हें तब आए ।।
स्वार्थ लोभ
में झूठ बोलकर, व्यर्थ विवाद बढाते ।
बार बार के
श्वेत झूठ से, सदा सत्य झुठलाते ।।
किन्तु अंत
में सत्य जीतता, हृदय उजाला लाए ।
तथ्य सामने जब
भी आये, शर्म उन्हें तब आए ।।
10. कविवर तब रचना गढ़ते
अपने अंतस के
भावों से, करते हम सत्कार सभी ।
मात-शारदे
लिखवा देती, हृदय भरे उद्गार सभी ।।
दीन-दुखी को
जब भी देखे, तभी लेखनी व्यथा लिखे ।
आखर आखर भाव
पिरोते, कभी लेखनी कथा लिखे ।।
छंद शिल्प में
कविवर लिखते, अपने भाव-विचार सभी ।
मात-शारदे
लिखवा देती, हृदय भरे उद्गार सभी ।।
कलमकार की चले
लेखनी, कविवर तब रचना गढ़ते ।
लेखन के बल पर
ही सारे, बच्चे सब पुस्तक पढ़ते ।।
खत से ही अपने
भावों से, जता सके आभार सभी।।
मात-शारदे
लिखवा देती, हृदय भरे उद्गार सभी ।।
गीत लिखा जब
कवि ने लय में, गायक तब ही गा पाया ।
जिसके उर लय
ताल बसी हो,लय की समझे वह माया ।।
उसको क्या कोई
समझाए, छन्दों का संसार कभी ।
मात-शारदे
लिखवा देती, हृदय भरे उद्गार सभी ।।
11. स्वप्न किया साकार
देश समूचा सदा
मानता, जिनका ये आभार ।
हुआ न बल्लभ
भाई जैसा,लौह पुरुष सरदार ।।
भारत में थी कई
रियासत, राजा हुए अनेक ।
राज-पाट
त्यागें सब राजा, देश बने तब एक ।।
विलय कराने
सभी राज्य को,सबसे किया करार।
हुआ न बल्लभ
भाई जैसा, लौह पुरुष सरदार।।
प्रजातंत्र के
संवाहक ने, लिया हृदय संकल्प ।
करें समर्पण
राजा सारे, दूजा नही विकल्प ।।
पूर्ण समेकित
कर भारत को, दिया ठोस आधार ।
हुआ न बल्लभ
भाई जैसा, लौह पुरुष सरदार ।
राज्य समर्पण
कौन कराये, डाले कौन नकेल ।
लौह पुरुष ने
किया काम ये, कहते उन्हें पटेल ।।
प्रजातन्त्र
लाने भारत में, स्वप्न किया साकार ।
हुआ न बल्लभ
भाई जैसा, लौह पुरुष सरदार।।
12. बनता वही सुजान
छात्र प्रथम
मैं मेरी माँ का, दे मुझको संज्ञान ।
उठना चलना
बोल-चाल का, वही कराती भान ।।
सदा कराती माँ ही
शिशु को, सब रिश्तों का बोध ।
वही सिखाती
कैसे मुश्किल, पार करे अवरोध ।।
स्वयं शारदे
माता बनकर, दे प्रारम्भिक ज्ञान ।
तब जाकर शाला
जा पाता, बनने को गुणवान ।।
रामकृष्ण सा
गुरु जो पाता, बने विवेकानंद ।
सरस्वती
जिह्वा पर बैठे, पाता वह मकरंद ।।
कठिन परीक्षा
देता जो भी, भरता वही उड़ान ।
अखिल विश्व
में मिले उसे ही,प्यार भरा सम्मान।।
बुद्धि लगाकर
करे पढाई, पाये आशातीत ।
कृपा शारदे की
होती तब, मिलते भाव पुनीत ।।
हृदय निखारे
मात शारदे, बनता वही सुजान ।
जगमग रोशन करे
वही फिर,देकर विद्या दान ।।
13. जश्न मने हर गाँव में
नये वर्ष के
स्वागत में अब, जश्न मने हर गाँव में ।
चौपालों पर
चिंतन करते, तापें हाथ अलाव में ।।
विगत वर्ष में कदम
हटे क्यों,पथ पर बिछते शूल से ।
क्या खोया
क्या पाया हमने, सीखे अपनी भूल से ।।
रुके नहीं पथ
पर बढ़ने से, आकर किसी प्रभाव में ।
नये वर्ष के
स्वागत में अब, जश्न मने हर गाँव में ।।
प्रेम-भावना
बढ़े दिलों में, कदम बढ़ाएँ साथ में ।
बढ़े हौसला दीन-हीन
का, दीप जले हर पाथ में ।।
नहीं दिलों से
नफरत झलके, दीनों से बर्ताव में ।
नये वर्ष के
स्वागत में अब, जश्न मने हर गाँव में ।।
जोश दिलाएँ
नव-युवको को, गुरुवर भाव पुनीत से ।
मन से स्वच्छ बनाएँ
उनको, सत्य सनातन रीत से ।।
घर का गौरव
बढ़ा सकें सब, फँसे न किसी दुराव में ।
नये वर्ष के
स्वागत में अब, जश्न मने हर गाँव में ।।
14. उनका ही होता उत्थान
मात-पिता गुरु
ज्येष्ठ सभी का, करते जो आदर सम्मान ।
नहीं स्वप्न
तक में करते वे, कभी किसी का भी अपमान ।।
गुरु चरणों मे शीश नवाएँ, उनको मिलता
बौद्धिक ज्ञान ।
मात-पिता का
आदर करते, बनकर संस्कारी गुणवान ।।
भक्ति भावना
प्रबल उसी की, हृदय रहे परहित के भाव।
आशीषों से
झोली भरते, कहते हैं ये सभी सुजान ।।
हाथ थामकर मदद
करे जो, पग-पग पर मिलती मुस्कान ।
जिंदा-दिल
इंसान वही जो, सब प्राणी का करते मान ।।
कल जो बीती
रात दुखद थी, भूले हम सारे अवसाद ।
सफल बनायें
जीवन अपना, ज्ञानामृत का करके पान ।।
कभी-कभी होता
है रोदन, कभी ख़ुशी का होता गान ।
जहाँ कभी
निंदा सहते है, वही हमें मिलता संज्ञान ।।
दुख-सुख तो
जीवन के साथी, दुख में करना नहीं मलाल ।
खेल-भावना रखते
मन में, उनका ही होता उत्थान ।।
15. गंगा नहायेंगे
कृष्ण राधा
बोल प्यारे,
श्याम
आयेंगे ।
भक्ति की
गंगा बहाते,
पार
जायेंगे । ।
राधिका का
नाम लेते,
गीत गाये
जा ।
राम जी के
नाम से ही,
प्रीति
पाये जा ।
नाम सीता
राम बोले,
धाम
पायेंगे ।
भक्ति की
गंगा बहाते,
पार
जायेंगे ।।
छन्द राधा
में सजा ले,
गीत ये
न्यारा ।
गीत गाए
प्रेम से ये,
भाव हो
प्यारा ।।
प्रीत से
संसार सारा,
जीत
लायेंगे ।
भक्ति की
गंगा बहाते,
पार
जायेंगे ।।
बाँसुरी की
तान में है,
शक्ति राधा
की ।
तान से ही
जागती है,भावना साकी ।।
भावना से
जीत ले गंगा नहायेंगे ।
भक्ति की
गंगा बहाते,
पार
जायेंगे ।।
16. उनका स्वर सुनते पल-पल
कर्कश स्वर
जिनका भी सुनते,बन्द कान करते हर-पल।।
कोमल स्वर में
बातें करते, उनका स्वर सुनते हर-पल ।।
कर्कश स्वर को
जो भी सुनते, सुनकर होते सभी विकल ।
कोमल स्वर में
बातें करते, उनका स्वर सुनते पल-पल ।।
धक-धक की
आवाजें सुनते, शेर देख घबराने पर ।
राम नाम ही
मुख से निकले,तन घिग्घी बँध जाने पर ।।
राह गुजरते
अँधियारे में, अश्क निकलते हैं छलछल ।
हिचकी आने पर
अस्फुट से, कुछ स्वर भी साथ उभरते ।
मानों जैसे
अटक रहा हो, कुछ मध्य श्वास के चलते ।।
संकट में जो
भी भजते हैं, याद उन्हें आती रब की ।
खर्राटे जो भरते रहते, नींद उड़ा देते सबकी ।।
भाव सिसकते
किसी याद में, रहा अगर प्रेम हृदय-तल ।
हृदय वेदना को
स्वर देते, चाहे वे अपना मंगल ।।
सुर-शब्दों को
साध सके जो, बाथरूम तक में गाएँ ।
गुन-गुन करते
रहते उनके, शब्द व्योम में जा छाए ।।
जो आनन्दित हो
लहरों से, नदियों की सुनते कलकल ।
कर्कश स्वर
जिनका भी सुनते,बन्द कान करते हर-पल।।
कोमल स्वर में
बातें करते, उनका स्वर सुनते हर-पल ।।
17. क्यों करता अभिमान
व्यर्थ बात पर
जिद करने से, खुद का ही नुकसान ।
नम्र भाव से
कहता कड़वी, सच्चा दिल इंसान ।।
मस्तक झुकता
जब भी नीचा, गरिमा होती प्राप्त।
रहे सदा धनु
डोर ऐंठकर, होती लचक समाप्त ।।
स्वर्ण हिरण
पाने की हठ का, कब युग गाता गान ।
जैसे भी मानव
के होते, अपने निजी विचार ।
वही करें जो
उपजे मन में, भला बुरा व्यवहार।।
नश्वर जीवन
में मानव मन, क्यों करता अभिमान।।
संवेदना रहे
जीवन में, नहीं करें उपहास ।
संवेदना जहाँ
दम तोड़े, हम बँधवाएँ आस ।।
लक्ष्य साध कर
चढ़ता मानव,नित नूतन सोपान ।।
18. अनूपम ये सौगात है
शुभ बेला में
जन्मी बिटियाँ, अनुपम ये सौगात है ।
पूर्व जन्म के
सद्कर्मो से, खिलता नवल प्रभात है ।।
कुदरत ने ही
भरी कोख तब,पुष्प खिला था प्यार में ।
रही ईश से यही
कामना, बिटिया दे उपहार में ।।
पुरखों के ही
किसी पुण्य से, मिले सुगंधित प्रात है ।
निभा सके
दायित्व हमेशा, हार नही स्वीकार हो ।
वरद हस्त हो
माँ वाणी का, शब्द शब्द में सार हो ।।
भाव प्रणव
संरचना करता, होता वह विख्यात है ।
जन्म दिवस पर
देते तुमको, सब मिल यह आशीष जी,
स्वस्थ सुखी
जीवन में रहने, भला करें जगदीश जी |
सूर्य किरण की
सदा भोर में, बनती सुंदर बात है ।
शुभ सरिता सा
पावन मन हो, हृदय भाव सत्संग हो ।
आँगन में सौरभ
से खिलतें, प्रेम-प्रीति के रंग हो ।।
यश-वैभव की
रहे सम्पदा, कलरव करता गात है ।
19. रिश्ते सदा निभाए
प्रथम नमन स्वीकार करो माँ, जन्म दिवस फिर आया है ।
किसी जन्म के
पुण्य कार्य से, तन-मन तुमसे पाया है ।।
पाल-पोष कर
योग्य बनाया, अपने खून पसीने से ।
पढ़ा-लिखा
संस्कार सिखाये, मुझको खूब करीने से ।।
मिले आपके
संस्कारों से, अपना धर्म निभाया है ।
प्रथम नमन
स्वीकार करो माँ,जन्म दिवस फिर आया है।।
स्नेह और
सम्मान बाँटकर, रिश्तें सदा निभाये हैं ।
दुर्गम पथ पर
हिम्मत रखकर, अपने पाँव बढ़ाये हैं ।।
वर्ष छिहत्तर
हुए पूर्ण हैं, स्नेह सभी का पाया है ।
प्रथम नमन
स्वीकार करो माँ,जन्म दिवस फिर आया है।।
खोज रहा सब
में अपनापन, यौवन चिंतन में खोया ।
जो अपने दायित्व
निभाता, उसने ही बोझा ढोया ।।
माँ वाणी के
वरद हस्त से, मान कलम ने पाया है ।
प्रथम नमन
स्वीकार करो माँ,जन्म दिवस फिर आया है ।
20. सद्कर्मों से सुगम प्रभात
अजर अमर है किसका जीवन, भौतिक तन का होता अंत।
स्वार्थ मोह के फँसे जाल में, बढ़ता रहता लोभ अनंत ।।
दिवस बिताते भाग-दौड़ में, और गँवाते सोकर रात ।
दुर्लभ जीवन में होती है, सद्कर्मों से सुगम प्रभात ।।
सार्थक श्रम से कार्य पूर्ण हो, तभी हृदय में होता हर्ष ।
वर्ष विदा पर करे परीक्षण, कार्य किया क्या वर्ष पर्यन्त।
सुख-वैभव का नहीं अंत है, लक्ष्य प्राप्ति का हो संज्ञान ।
दायित्वों को पूर्ण करें हम, यौवन का जब हो अवसान ।।
नहीं समय को व्यर्थ गँवाते, उनको ही मिलता उत्कर्ष ।
दुख में बीते सदा बुढापा, नहीं दुखी पर होते संत ।।
लौट अतीत नहीं फिर आये, हो जाता जब कालातीत ।
समय चक्र की चाल समझते, करें वक्त पर काम पुनीत ।।
हो जाती खामोश जिंदगी, रखे हृदय अपना गुलजार ।
नेक काम कर जाते जो भी, नाम रहें उनका जीवन्त ।।
21. स्वर्ण निखरता जब तपता
हृदय भरे जब
शक्ति आसुरी, मानव तब दानव बनता ।
सुविधाएँ हो
चाहे कितनी, नहीं चैन से रह सकता ।।
लोभ-मोह के आकर्षण
में, ईर्ष्या भाव बढ़ा जग में ।
स्वार्थ-पूर्ति
में झगड़े मानव, लिए शत्रुता रग रग में ।।
सुर दुर्लभ सा
हृदय चाहने, मनुज सदा रहता तकता ।
सुविधाएँ हो चाहे कितनी, नहीं चैन से
रह सकता ।।
मानव मूल्यों
को खोकर ही,मनुज रूप राक्षस धारे ।
पल दो पल के
इस जीवन में, कर्म करें अच्छे सारे ।।
रहे गुनाहों
में शामिल वह, दुष्कर्मों से कब थकता ?
सुविधाएँ हो
चाहे कितनी, नहीं चैन से रह सकता ।।
राग, द्वेष, छल, दम्भ बैर ये, असुर रूप के
गुण सारे ।
मानव मन के
दुर्गुण इनको, कर दें हम दूर किनारे ।।
महक उठेगा
जीवन जैसे, स्वर्ण निखरता जब तपता ।
सुविधाएं हो
चाहे कितनी, नहीं चैन से रह सकता ।।
22. स्वप्निल
दीप जलाये
कुसुम-शृंगार
मधुर तान से, मन मन्दिर महकायें।
मधुमय जीवन की
आशा में, स्वप्निल दीप जलायें।।
खुशियों की
बौछार सदा हो, घरभर खुशियाँ छायें ।
सजग रहें कर्तव्य
राह पर, अपना धर्म निभायें ।।
रहे सदा ही
कदम अग्रसर, नहीं जरा सकुचाये ।
कठिनाई का
करें सामना, कभी न दिल घबराये।।
अधर-हास्यमय
बोल सभी से, खुशियों दे मुस्करायें।
मधुमय जीवन की
आशा में, स्वप्निल दीप जलायें ।।
निर्मित कर
सुंदर बगिया को, खुशबू से महकाना ।
पूर्ण करें सब
हृदय कामना, दिल में आस जगाना ।।
रखे हौसला और
धैर्य से, लक्ष्य तभी मिल पायें ।
कर्म साधना से
ही अपना, जीवन सफल बनायें ।।
सद्कर्मों पर
चलते रहकर, मन को स्वच्छ बनायें ।
मधुमय जीवन की
आशा में, स्वप्निल दीप जलायें।।
सूत्रधार है
घर की लक्ष्मी, घर का मान बढ़ायें ।
सहयोगी हो
हृदय भावना, दिल में आस जगायें ।।
मधुर सम्बन्ध
बना सभी से, जीवन सुखद बनाते ।
तभी सुवासित
खुशियां सारी,जीवन में पा पाते ।।
सुखमय जीवन
यापन करते, निज कर्त्तव्य निभायें ।
मधुमय जीवन की
आशा में, स्वप्निल दीप जलायें।।
23. रावण को यह भान था
माँ सीता ही
शक्ति स्वरूपा, रावण को यह भान था ।
नित्य वाटिका
जा अंतस से, करता वह सम्मान था ।।
मस्तक अर्पण
करके रावण, भक्त बना शिव शंकर का ।
वाद्य यंत्र
के अन्वेषक ने, स्तोत्र लिखा प्रलयंकर का ।।
पूजा जाता वह
भी घर-घर, किन्तु हृदय अभिमान था ।
माँ सीता ही
शक्ति स्वरूपा, रावण को यह भान था ।।
भौतिक युग में
फँसे काम में, भले राम हो वाणी में ।
लिप्त धर्म की
चादर ओढ़े, लोभ-मोह उर प्राणी में ।।
हनुमत जैसा
भक्त चाहिए, जिसमें नहीं गुमान था ।
माँ सीता ही
शक्ति स्वरूपा, रावण को यह भान था ।।
पूजन अर्चन हो
भावों से, भले इबादत हो क्षण भर ।
करे मनुजता का
प्रणयन ही, सद्भावों की चले डगर ।।
भक्ति भावना
मार्ग एक है, ध्रुव को होना ज्ञान था ।
माँ सीता ही
शक्ति स्वरूपा, रावण को यह भान था ।।
24. शीघ्र सजा का बने विधान
दण्ड संहिता
बनी देश में, फिर भी रहता लंबित न्याय ।
किन्तु
साक्ष्य बिन न्यायालय में,निर्णय शीघ्र कहाँ हो पाय ।।
दोषी हेतु दण्ड
विधान है, दोष किया कितना संगीन ।
दोष सिद्ध में
लगे समय भी, सजा सबूतों के आधीन।।
दोषी सारे
मुक्त घूमतें, छूट जमानत पर जब जाय ।
किन्तु
साक्ष्य बिन न्यायालय में,निर्णय शीघ्र कहाँ हो पाय ।।
दण्ड संहिता
बहुत पुरानी, उसमें है कितने ही छेद ।
स्पष्ट बचाने
अपराधी को, अधिवक्ता जाने सब भेद ।।
हत्या
कन्या-भ्रूण सभी ये, घोर पाप के हैं पर्याय ।
किन्तु
साक्ष्य बिन न्यायालय में,निर्णय शीघ्र कहाँ हो पाय ।।
त्वरित न्याय
यदि करना चाहे, शीघ्र सजा का बने विधान।
नैतिक शिक्षा
करे जरूरी, कहते आये सभी सुजान ।।
तभी घटे अपराध
यहाँ पर, शास्त्र हमारें यही सुझाय ।
बिना साक्ष्य
के न्यायालय में,निर्णय शीघ्र कहाँ हो पाय।।
25. बन्धन ये अनमोल
गूंज रहे हैं
फेरों के ये, सात वचन के बोल ।
नेह-बन्ध में
बाँध रहे हैं, बन्धन ये अनमोल ।।
वर्षगाँठ दिन
करे सदा ही, सात वचन फिर याद ।
नहीं कभी फिर
रहें आपसी,मन में तनिक विवाद ।।
जीव-जगत उन्नत
करने को, ये संस्कार अमोल ।
पचपन वर्षों
रहें बहुत ही, स्नेह भरें सद्बोल ।।
फँसा प्यार का
खेल तभी से, करते रहें किलोल ।
वैवाहिक जीवन
में आयी, सौलह की किरदार ।
किया अथक
सहयोग तभी ये , सँभला घर-परिवार ।।
आत्म-भाव के
इन रिश्तों में, अपना हृदय टटोल ।
शहनाई बजती
कानों में , बजे नागाड़े ढोल ।।
प्रेम-भाव को
जागृत करने, मन की गाँठें खोल ।।
शुभ दिन था जब
माँ-बापू को, खुशियाँ मिली अकूत ।
जन्म कोख से
जब वामा ने, दिया हमें था पूत ।।
नेह लिये
जन्मी फिर बिटिया, मिला भ्रात का नेह ।
रक्षा करना
सदा बहन की, रहे न इसमें झोल ।।
प्रेम-भाव से
चले जिंदगी, धन से इन्हें न तोल ।
भाई-बहन के
कभी नेह का, टूटे ना तटबन्ध ।
कच्चा धागा
याद दिलायें, बना रहें सम्बन्ध ।।
कभी न भूले हम
संकट में,अपने जो भी खास ।
एक सूत्र में
बाँधे इसका, करना नहीं मखोल ।।
अपनी ही ये
धरती 'लक्ष्मण', बिगड़े नही भूगोल ।
26. जग में करूँ प्रसार
मुक्त हृदय से
आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार।
माँ वीणा
सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ।।
माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की
गोद ।
मिला छत्र
छाया में उनसे, जीवन का आमोद।।
स्वर्गलोक से
मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।
वर्ष छिहत्तर
पार हुए ये, हरते सब अवसाद ।।
मात-पिता से
मिले मुझे हैं, जीवन में संस्कार ।
मिला सनातन
धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।
राम-कृष्ण का
देश हमारा,इसका मुझको हर्ष ।।
वन-उपवन में
रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से वृक्ष।
जनमानस को
मिले सफलता,पूर्ण करें सब लक्ष्य।।
चुका सकूँ
क्या भारत माँ का, अंशमात्र भी भार ?
संस्कारी
परिवार जहाँ हो, खुशबू करें प्रदान।
मिला मुझे
सहयोग सभी का,प्रभु का यही विधान।।
गुरुवर को मैं
दे पाऊँ क्या, ऐसी कुछ सौगात ?
सूरज सम्मुख
कहाँ दीप की,होती है औकात ।
प्राण प्रिया
का सदा रहेगा, जीवन भर आभार।।
मुक्त हृदय से
आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार ।
माँ वीणा
सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ।।
27. रखती हृदय सुवास
पनघट पर आती
सब सखियाँ,
मन में रख
विश्वास ।
बारी आने तक
बतियाती,
बैठ वृक्ष के पास ।।
पानी भरने
सारी सखियाँ,
चले कूप की ओर
।
मटकी भरकर धरे
माथ पर,
होती भाव
विभोर ।।
परिहास सूझता
जब कान्हा को,
देखे अवसर खास
।
छुप छुप
कान्हा निरखे उनको,
मौका करे तलाश
।
भाव समझकर
पनिहारिन के,
करते नहीं
निराश ।।
कान्हा की ये
प्यारी सखियाँ,
रखती हृदय
सुवास ।
कान्हा छुपकर
कंकर मारे,
करे चुहल
परिहास ।।
फूटें मटकी
भीगे चुनरी,
होती तभी उदास
।।
ताना देती
सासू माँ तब,
उगले खूब भड़ास
।
28. जीवन जीते बंजारे
निभा रहे हैं
परम्पराएँ
बंजारे सारे ।
चकला बेलन लिए घूमते
छकड़ा गाड़ी में
रहे वेश-भूषा
में औरत,
लहँगा साड़ी
में ।
डाले डेरा वही
रात को
गिनते हैं
तारे ।
रुके वहीं पर
सिगड़ी चूल्हा
सुलगाते देखे
बात करो तो
कहें भाग्य में
लिखे यही लेखे
।
आज यहाँ कल और
कहीं पर
यायावर प्यारे
।
भौतिक युग की
चकाचौंध से,
उनको क्या
लेना ।
परम्परागत
निष्ठा को फिर,
क्यों खोने
देना ।।
नहीं और की
जैसे उनको,
महँगाई मारे ।
मर्द-औरतें
स्वेद बहाते,
कभी नहीं थकते
।
गर्मी, सर्दी और शीत
को,
झेल-झेल पकते
।।
बिन तनाव के
अपना
जीवन जीते
बंजारे ।
29. पवन बसन्ती बहती
गुन गुन गाते गीत हृदय जब,
पवन बसंती बहती ।
मधुर प्रेम का कर आलिंगन,
हवा बीज बो जाती ।
साँसों की सरगम मन भावन,
गीत सुरीले गाती ।।
चन्दन सी महके जब सौंधी,
खुश्बू कुछ-कुछ कहती ।
तूफानी झोंका जब आता,
तन मन सिहरा जाता ।
अक्सर तभी हवा का झोंका,
आँखे नम कर जाता ।।
प्रेम भावना पवन वेग सी,
विचलित करती रहती ।
नित्य भोर में हमें लुभाते,
पक्षी उड़-उड़ आते ।
मधु मलयानिल से मदमाते,
वृक्ष लता मुस्काते ।।
कभी जलन दे तपिश हवाएँ,
धरा धैर्य रख सहती ।
30. रावण ने संज्ञान लिया