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बुधवार, 14 दिसंबर 2022

सॉनेट नर्मदा, Poem, मुक्तिका, श्री राधे, नव गीत, दोहा, हाइकु, व्यंग्य गीत,

सॉनेट 
नर्मदा
नर्मदा सलिला सनातन,
करोड़ों वर्षों पुरानी,
हर लहर कहती कहानी।
रहो बनकर पतित पावन।।

शिशु सदृश यह खूब मचले,
बालिका चंचल-चपल है,
किशोरी रूपा नवल है।
युवा दौड़े कूद फिसले।।

सलिल अमृत पिलाती है,
शिवांगी मोहे जगत को।
भीति भव की मिटाती है।।

स्वाभिमानी अब्याहा है,
जगज्जननी सुमाता है।
शीश सुर-नर नवाता है।।
संजीव
१४-१२-२०२२
जबलपुर,७•४७
●●●
*** 
Poem:Again and again
Sanjiv
*
Why do I wish to swim
Against the river flow?
I know well
I will have to struggle
More and more.
I know that
Flowing downstream
Is an easy task
As compared to upstream.
I also know that
Well wishers standing
On both the banks
Will clap and laugh.
If I win,
They will say:
Their encouragement
Is responsible for the success.
If unfortunately
I lose,
They will not wait a second
To say that
They tried their best
To stop me
By laughing at me.
In both the cases
I will lose and
They will win.
Even then
I will swim
Against the river flow
Again and again.
***

अभिनव प्रयोग
मुक्तिका
श्री राधे
*
अनहद-अक्षर अजर-अमर हो श्री राधे
आत्मा आकारित आखर हो श्री राधे
इला इडा इसरार इजा हो श्री राधे
ईक्षवाकु ईश्वर ईक्षित हो श्री राधे

उदधि उबार उठा उन्नत हो श्री राधे
ऊब न ऊसर उपजाऊ हो श्री राधे

एक एक मिल एक रंग हो श्री राधे
ऐंचातानी जग में क्यों हो श्री राधे?

और न औसर और लुभाओ श्री राधे
थके खोजकर क्यों ओझल हो श्री राधे

अंत न अंतिम 'सलिल' कंत हो श्री राधे
अ: अ: आहा छवि अब हो श्री राधे
(प्रथमाक्षर स्वर)
१४-१२-२०१९
***
नव गीत :
क्यों करे?
*
चर्चा में
चर्चित होने की चाह बहुत
कुछ करें?
क्यों करे?
*
तुम्हें कठघरे में आरोपों के
बेड़ा हमने।
हमें अगर तुम घेरो तो
भू-धरा लगे फटने।
तुमसे मुक्त कराना भारत
ठान लिया हमने।
'गले लगे' तुम,
'गले पड़े' कह वार किया हमने।
हम हैं
नफरत के सौदागर, डाह बहुत
कम करें?
क्यों करे?
*
हम चुनाव लड़ बने बड़े दल
तुम सत्ता झपटो।
नहीं मिले तो धमकाते हो
सड़कों पर निबटो।
अंग हमारे, छल से छीने
बतलाते अपने।
वादों को जुमला कहते हो
नकली हैं नपने।
माँगो अगर बताओ खुद भी,
जाँच कमेटी गठित
मिल करें?
क्यों करे?
*
चोर-चोर मौसेरे भाई
संगा-मित्ती है।
धूल आँख में झोंक रहे मिल
यारी पक्की है।
नूराकुश्ती कर, भत्ते तो
बढ़वा लेते हो।
भूखा कृषक, अँगूठी सुख की
गढ़वा लेते हो।
नोटा नहीं, तुम्हें प्रतिनिधि
निज करे।
क्यों करे?
***
संजीव
१४-१२-२०१८
***
जो बूझे सो ज्ञानी
छन्नी से छानने पर जो पदार्थ ऊपर रह जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो नीचे गिर जाता है उसे क्या कहते हैं?, जो उपयोगी पदार्थ हो उसे क्या कहते हैं?, जो निरुपयोगी परार्थ हो उसे क्या कहते हैं?
छानन का क्या मतलब है?
*
***
एक दोहा-
चीका, बळी, फेदड़ी, तेली, खिजरा, खाओ खूब
भारत की हर भाषा बोलो, अपनेपन में डूब
***
उत्तर प्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ की स्मारिका १९८८ में प्रकाशित मेरे हाइकु
१.
ईंट रेट का
मन्दिर मनहर
देव लापता
*
२.
क्या दूँ मीता?
भौतिक सारा जग
क्षणभंगुर
*
गोली या तीर
सी चुभन गंभीर
लिए हाइकु
*
स्वेद-गंग है
पावन सचमुच
गंगा जल से
*
पर पीड़ा से
अगर न पिघला
तो मानव क्या?
*
मैले मन को
उजला तन क्यों
देते हो प्रभु?
*
चाह नहीं है
सुख की दुःख
साथी हैं सच्चे
*
मद-मदिरा
मत मुझे पिला, दे
नम्र भावना
*
इंजीनियर
लगा रहा है चूना
क्यों खुद को ही?
***
नवगीत
*
शब्दों की भी मर्यादा है
*
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा
क्यों उल्लास-ख़ुशी हुडदंगा?
शब्दों का मत दुरूपयोग कर.
शब्द चाहता यह वादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
शब्द नाद है, शब्द ताल है.
गत-अब-आगत, यही काल है
पल-पल का हँस सदुपयोग कर
उत्तम वह है जो सादा है
शब्दों की भी मर्यादा है
*
सुर, सरगम, धुन, लय, गति-यति है
समझ-साध सदबुद्धि-सुमति है
कर उपयोग न किन्तु भोग कर
बोझ अहं का नयों लादा है?
शब्दों की भी मर्यादा है
१४-१२-२०१६
***
व्यंग्य गीत
*
बंदर मामा
चीन्ह -चीन्ह कर
न्याय करे
*
जो सियार वह भोगे दण्ड
शेर हुआ है अति उद्दण्ड
अपना & तेरा मनमानी
ओह निष्पक्ष रचे पाखण्ड
जय जय जय
करता समर्थ की
वाह करे
*
जो दुर्बल वह पिटना है
सच न तनिक भी पचना है
पाटों बीच फँसे घुन को
गेहूं के सँग पिसना है
सत्य पिट रहा
सुने न कोई
हाय करे
*
निर्धन का धन राम हुआ
अँधा गिरता खोद कुँआ
दोष छिपा लेता है धन
सच पिंजरे में कैद सुआ
करते आप
गुनाह रहे, भरता कोई
विवश मरे
१२.१२. १५
***
नवगीत:
नवगीतात्मक खंडकाव्य रच
महाकाव्य की ओर चला मैं
.
कैसा मुखड़ा?
लगता दुखड़ा
कवि-नेता ज्यों
असफल उखड़ा
दीर्घ अंतरा क्लिष्ट शब्द रच
अपनी जय खुद कह जाता बच
बहुत हुआ सम्भाव्य मित्रवर!
असम्भाव्य की ओर चला मैं
.
मिथक-बिम्ब दूँ
कई विरलतम
निकल समझने
में जाए दम
कई-कई पृष्ठों की नवता
भारी भरकम संग्रह बनता
लिखूं नहीं परिभाष्य अन्य सा
अपरिभाष्य की ओर चला मैं
.
नवगीतों का
मठाधीश हूँ
अपने मुँह मिट्ठू
कपीश हूँ
वहं अहं का पाल लिया है
दोष थोपना जान लिया है
मानक मान्य न जँचते मुझको
तज अमान्य की ओर चला मैं
***
नवगीत:
निज छवि हेरूँ
तुझको पाऊँ
.
मन मंदिर में कौन छिपा है?
गहन तिमिर में कौन दिपा है?
मौन बैठकर
किसको गाऊँ?
.
हुई अभिन्न कहाँ कब किससे?
गूँज रहे हैं किसके किस्से??
कौन जानता
किसको ध्याऊँ?
.
कौन बसा मन में अनजाने?
बरबस पड़ते नयन चुराने?
उसका भी मन
चैन चुराऊँ?
***
दोहा
हहर हहर कर हर रही, लहर-लहर सुख-चैन
सिहर-कहर चुप प्राण-मन, आप्लावित हैं नैन
१४-१२-२०१४
***

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