परमादरणीय रमण शांडिल्य के प्रति भावांजलि
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
रमण करें नित सृजन संग, शारद माँ के पूत।
परिवर्तन के पक्षधर, राष्ट्रप्रेम के दूत।।
*
मधुसूदन-तारा तनय, वसुंधरा के नाथ।
रख गोत्र शांडिल्य का, उन्नत प्रियवर माथ।।
*
अनुकंपा चाहे अरुण, बन तव तनय हमेश।
करें अर्चना विमल सिंह, मान तुम्हें शब्देश।।
*
जीवन है आलोकमय, पा खुशियाँ अनमोल।
भोजपुरी का बजाय, दसों दिशा में ढोल।।
*
काव्य कहानी रच मिला, जो अक्षय आनंद।
नाटक यात्रावृत्त लिख, बाँट दिया मकरंद।।
*
शब्दकोष निर्माण कर, पाया सुयश अपार।
रहा बज्जिका से तुम्हें, हार्दिक स्नेह उदार।।
*
असमी एवं बांग्ला, में - से कर अनुवाद।
संस्मरण रोचक रचे, मिली लोक से दाद।।
*
जनभाषा साहित्य रच, हुए देश विख्यात।
ग्रंथ खेमका पर लिखा, जीवन मूल्य उदात।।
*
'पूर्व भारती', 'सांगपो', 'अरुण नागरी' छाप।
छोड़ी 'जनपद' पर सतत, मित्र आपने छाप।।
*
बहुआयामी कार्य कर, आप बने युग दूत।
भारत माता चाहती, ऐसे अनगिन पूत।।
*
हिंद और हिंदी ऋणी, सदा रहेंगे मीत।
शारद आशीषित करें, सुधिजन पालन प्रीत।।
*
अक्षत चंदन समर्पित, रोली टीका माथ।
शब्द उतारें आरती, सर पर रखिए हाथ।।
*
कलमवीर तुम अहर्निश, करते रचना कर्म।
कर्मयोग का ज्ञात है, प्रियवर तुमको मर्म।।
*
काम सदा निष्काम कर, राखी नहीं फल-चाह।
मिली लोक से निरंतर, भैया, तुमको वाह।।
*
शतवर्षी जीवन मिले, रच दो ग्रंथ अनेक।
समय कहे तुम सा नहीं, ज्ञानी लिए विवेक
***
संयोजक विश्ववाणी हिंसी संस्थान अभियान
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
salil.sanjiv@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें