साहित्य जगत के विलक्षण साधक –संजीव वर्मा 'सलिल'
डॉ. पुष्पा जोशी
*
मंडला( मध्य प्रदेश ) में जन्मे संजीव वर्मा ‘सलिल” जी, आधुनिक मीरा महादेवी वर्मा के भतीजे हैं। संजीव जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर ट्रू मीडिया राष्ट्रीय पत्रिका में जब विशेषाँक निकालने की बात चली तो मुझे लगा कि बेशक संजीव जी के महादेवी वर्मा जी से रक्त सम्बंध हैं परंतु हमसे भी उनके शब्द सम्बंध तो हैं ही । इसी सम्बंध के चलते लगा उनके विषय में कुछ लिखूँ । संजीव जी की शिक्षा: त्रिवर्षीय डिप्लोमा सिविलअभियांत्रिकी, बी.ई., एम. आई. ई., विशारद, एम. ए. (अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र), एल.एल. बी., डिप्लोमा पत्रकारिता, डी. सी. ए.न के साथ-साथ न जाने कितनी ही भारी भरकम डिग्रियाँ उनके पास हैं।
मुझे याद आ रहा 11 जनवरी 2018 का वह दिन जब विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर ऋत फाउंडेशन एवं युवा उत्कर्ष साहित्य्क मंच के तत्वाधान में पुस्तक लोकार्पण एवं साहित्यिक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के आसन पर संजीव जी विराजमान थे । मैं सभी के समक्ष लेखक मंच से साहित्य और राज्याश्रय परिचर्चा विषय पर बोल रही थी। मंच से क्रमश: जब सलिल जी का बोलने का समय आया तो उन्होंने सबसे पहले मंच से बोलने वालों पर छोटी-छोटी कविताएं सुना डाली। बस तभी उनकी काव्य क्षमता का अनुमान लग गया था.......भला भात तैयार हो गया यह जानने केलिए एक दो चावल के दाने ही तो पतीली से निकाल कर दबाकर तसल्ली कर ली जाती है । बस वो ही अभी तक की मुलाकात है हमारी ।
यहाँ पर आपकी भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
बना मंदिर नया,दे दिया तीर्थ है ,
नया जिसे कहें सभी गौरव कथा ।
महामानव तुम्हीं, प्रेरणा स्त्रोत हो ,
हमें उजास दो गढें किस्मत नयी।
खडे हैं सुर सभी , देवतालोक में
प्रशस्ति गा रहे , करें स्वागत सभी।
मुझे याद आ रहा 11 जनवरी 2018 का वह दिन जब विश्व पुस्तक मेले में लेखक मंच पर ऋत फाउंडेशन एवं युवा उत्कर्ष साहित्य्क मंच के तत्वाधान में पुस्तक लोकार्पण एवं साहित्यिक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के आसन पर संजीव जी विराजमान थे । मैं सभी के समक्ष लेखक मंच से साहित्य और राज्याश्रय परिचर्चा विषय पर बोल रही थी। मंच से क्रमश: जब सलिल जी का बोलने का समय आया तो उन्होंने सबसे पहले मंच से बोलने वालों पर छोटी-छोटी कविताएं सुना डाली। बस तभी उनकी काव्य क्षमता का अनुमान लग गया था.......भला भात तैयार हो गया यह जानने केलिए एक दो चावल के दाने ही तो पतीली से निकाल कर दबाकर तसल्ली कर ली जाती है । बस वो ही अभी तक की मुलाकात है हमारी ।
यहाँ पर आपकी भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
बना मंदिर नया,दे दिया तीर्थ है ,
नया जिसे कहें सभी गौरव कथा ।
महामानव तुम्हीं, प्रेरणा स्त्रोत हो ,
हमें उजास दो गढें किस्मत नयी।
खडे हैं सुर सभी , देवतालोक में
प्रशस्ति गा रहे , करें स्वागत सभी।
संजीव जी आजकल सवैया छंद पर काम कर रहे हैं। मुझे लगता है नवान्वेषित सवैये उन्हें साहित्याकाश की ऊँचाईयों पर ले जाएंगे। आईये ! देखते हैं एक सवैया –
तलाशते रहे कमी, न खूबियाँ
निहारते , प्रसन्नता कहाँ मिले ?
विरासते रहें हमीं, न और को
पुकारते, हँसी – खुशी कहाँ मिले?
बटोरने रहे सदा , न रंक बंधु हो
सके, न आसमां – जमें मिले ।
निहारते रहे छिपे , न मीत प्रीत पा
सके , मिले – कभी नही मिले।
समसामयिक रचनाओं में भी आपका कोई सानी नही ।
सांत्वना है ‘ सलिल ‘ इतनी लोग
सच सुन समझते
मुखौटा हर एक नेता है चुनावी
मास का
माँ नर्मदा के भक्तिरस में डूबे साहित्य सागर संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ से साहित्य की कोई विधा इनसे अछूती नही है जिस प्रकार सागर में गोते लगाकर रत्न हाथ लगते हैं उसी प्रकार् इनके साहित्य साग्र में गोता लगाने पर कोई न कोई विधा हाथ लग जाती है।
कवि हृदय लेकर कल्पना के सप्तरंगी आकाश में आसन जमाकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया है, वह घर-घर पहुँचे। अपनी अन्तर्मुखी मनोवृत्ति एवं साहित्य सुलभ गहरे अनुभवों के कारण आपके द्वारा रचित काव्य में वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल भाव मुखरित हुए हैं। आपके काव्य में संगीतात्मकता एवं भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
साहित्य के विलक्षण साधक आप निरंतर साहित्य –पथ पर अग्रसर रहें, युगों-युगों तक आपका यश गान हो। शुभकामनाओं सहित मैं …………….
डॉ. पुष्पा जोशी
सह- संपादक ट्रू मीडिया
नोएडा एक्सटैंशन यू.पी.
तलाशते रहे कमी, न खूबियाँ
निहारते , प्रसन्नता कहाँ मिले ?
विरासते रहें हमीं, न और को
पुकारते, हँसी – खुशी कहाँ मिले?
बटोरने रहे सदा , न रंक बंधु हो
सके, न आसमां – जमें मिले ।
निहारते रहे छिपे , न मीत प्रीत पा
सके , मिले – कभी नही मिले।
समसामयिक रचनाओं में भी आपका कोई सानी नही ।
सांत्वना है ‘ सलिल ‘ इतनी लोग
सच सुन समझते
मुखौटा हर एक नेता है चुनावी
मास का
माँ नर्मदा के भक्तिरस में डूबे साहित्य सागर संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ से साहित्य की कोई विधा इनसे अछूती नही है जिस प्रकार सागर में गोते लगाकर रत्न हाथ लगते हैं उसी प्रकार् इनके साहित्य साग्र में गोता लगाने पर कोई न कोई विधा हाथ लग जाती है।
कवि हृदय लेकर कल्पना के सप्तरंगी आकाश में आसन जमाकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया है, वह घर-घर पहुँचे। अपनी अन्तर्मुखी मनोवृत्ति एवं साहित्य सुलभ गहरे अनुभवों के कारण आपके द्वारा रचित काव्य में वेदना एवं सूक्ष्म अनुभूतियों के कोमल भाव मुखरित हुए हैं। आपके काव्य में संगीतात्मकता एवं भाव-तीव्रता का सहज स्वाभाविक समावेश हुआ है।
साहित्य के विलक्षण साधक आप निरंतर साहित्य –पथ पर अग्रसर रहें, युगों-युगों तक आपका यश गान हो। शुभकामनाओं सहित मैं …………….
डॉ. पुष्पा जोशी
सह- संपादक ट्रू मीडिया
नोएडा एक्सटैंशन यू.पी.
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