"विश्व गौरैया दिवस" पर विशेष:
चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया
प्रस्तुति: संजीव
कुछ वर्ष पूर्व तक पहले हमारे घर-आँगन में फुदकनेवाली नन्हीं गौरैया आज विलुप्ति के कगार
पर है। इस नन्हें परिंदे को बचाने हेतु २०१० से हर वर्ष 20 मार्च "विश्व गौरैया दिवस" के रूप में मनाया जा रहा है ताकि आम जन गुरैया के संरक्षण के प्रति जागरूक हों। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। महानगरों में गौरैया के दर्शन दुर्लभ हैं. वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया है।
भारतीय डाक विभाग द्वारा 9 जुलाई, 2010 को गौरैया पर जारी किये गये डाक टिकट का चित्र :-
गौरैया के विनाश के जिम्मेदार हम मानव ही है। इस नन्हें पक्षी की सुरक्षा की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अब हमें गौरैया को बचाने के लिये हर दिन जतन करना होगा । गौरैया महज एक पक्षी नहीं, हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। इनकी संगत पाने के लिए छत पर किसी खुली छायादार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में चावल और साफ़ पानी रखें फिर देखिये हमारा रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।
गौरैया के विनाश के जिम्मेदार हम मानव ही है। इस नन्हें पक्षी की सुरक्षा की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। अब हमें गौरैया को बचाने के लिये हर दिन जतन करना होगा । गौरैया महज एक पक्षी नहीं, हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी है। इनकी संगत पाने के लिए छत पर किसी खुली छायादार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में चावल और साफ़ पानी रखें फिर देखिये हमारा रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।
उत्तर भारत में गौरैया को गौरा, चटक, उर्दू में चिड़िया, सिंधी भाषा में झिरकी, भोजपुरी में चिरई तथा बुन्देली में चिरैया कहते हैं। इसे जम्मू-कश्मीर में चेर, पंजाब में चिड़ी, पश्चिम बंगाल में चरूई, ओडिशा (उड़ीसा) में घरचटिया, गुजरात में चकली, महाराष्ट्र में चिमानी, कर्नाटक में गुब्बाच्ची, आन्ध्र प्रदेश में पिच्चूका तथा केरल-तमिलनाडु में कूरूवी कहा जाता है.
रेडिएशन का कुप्रभाव:
विश्व में तेज़ी से दुर्लभ हो रही गौरेया आज संकट ग्रस्त पक्षी है। खुद को परिस्थितियों के अनुकूल ढाल सकनेवाली गौरैया भारत, यूरोप, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी और चेक गणराज्य आदि देशों में भी तेज़ी से लापता हो रही है, नीदरलैंड में गौरैया को "दुर्लभ प्रजाति" वर्ग में रखा गया है।
पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक मोबाइल टावर के रेडिएशन से पक्षियों और
मधुमक्खियों पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए इस मंत्रालय ने टेलिकॉम
मिनिस्ट्री को एक सुझाव भेजा है। जिसमे एक किमी के दायरे में दूसरा टावर
ना लगाने की अनुमति देने को कहा गया है और साथ ही साथ टावरों की लोकेशन व
इससे निकलने वाले रेडिएशन की जानकारी सार्वजनिक करने को भी कहा गया
है जिससे इनका रिकॉर्ड रखा जा सके। इन पक्षियों की प्रजातियों पर है सबसे अधिक खतरा गौरेया, मैना, तोता, कौआ, उच्च हिमालयी प्रवासी पक्षी आदि। मोबाइल टावर के रेडिएशन से मधु- मक्खियों में कॉलोनी कोलेप्स
डिसऑर्डर पैदा हो जाता है।
इस डिसऑर्डर में मधुमक्खियाँ छत्तों का रास्ता भूल जाती है।
रेडिएशन से वन्य जीवों के हार्मोनल बैलेंस पर हानिकारक असर होता है जिन पक्षियों में मैग्नेटिक सेंस होता है और जब ये पक्षी विद्युत मैग्नेटिक तरंगों के इलाक़े में आते
हैं तो इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। रंगों की ओवरलेपिंग के कारण पक्षी अपने प्रवास का रास्ता भटक जाते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक मोबाइल टावर के आसपास पक्षी बहुत ही कम मिलते हैं। वैज्ञानिको के अनुसार रेडिएशन से पशु-पक्षियों की प्रजनन शक्ति के साथ-साथ नर्वस सिस्टम पर विपरीत असर होता है।
भारत में ४.४ लाख से ज्यादा मोबाइल टावर तथा पक्षियों की १३०१ प्रजातियाँ हैं जिनमें से ४२ लुफ्त होने की कगार पर हैं। भारत में १00 से ज्यादा प्रवासी पक्षी आते हैं। गौरेया(SPARROW) है! आजकल गौरैया महानगरों ही नहीं कस्बों और गाँवों में बिजली के तारों, घास के मैदानोंघर के आँगन में और खिड़कियों पर कम ही दिखती है! भारत सरकार तथा राज्य सरकारों को बाघों(Tigers) और शेरो(Lions) की तरह इन्हें बचाने के लिये आगे आना होगा, आम लोग आँगन, छत या छज्जे पर छायादार स्थान में मध्यम आकार के दीये में चावल के छोटे--छोटे दाने तथा मिटटी के एक बर्तन में पीने योग्य पानी रख दे! गौरैया की घटती संख्या का मुख्य कारण भोजन और जल की कमी, घोसलों के लिये उचित स्थानों की कमी तथा तेज़ी से कटते पेड़-पौधे हैं।
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार पीपल, बरगद, आँवला, बेल, तुलसी, जासौन, धतूरा आदि अनेक पेड़-पौधे देवता तुल्य है।
हमारे पर्यावरण में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पीपल-बरगद कभी सीधे अपने बीजो से नही लगते, इनके बीजों को गौरैया
खाती है और उसके पाचन तंत्र से होकर बीट (मल) में निकलने पर ही उनका
अंकुरण होता है। इसीलिए ये वृक्ष
मंदिरों और खंडहरों के नजदीक अधिक उगते है चूँकि इनके आसपास गौरैया का
जमावडा होता है। मोरिशस और मेडागास्कर
में पाया जानेवाला पेड़ सी० मेजर लुप्त होने कगार पर है क्योंकि उसे
खाकर अपने पाचनतंत्र से गुजरने वाला पक्षी डोडो विलुप्त हो चुका है.
यही स्थिति गौरैया और पीपल की हो रही है।
गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह
दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते हैं लेकिन आजकल हम लोग खेतों से लेकर
अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते है
जिससे पौधों में कीड़े नहीं लगते तथा अपने भोजन से वंचित हो जाती है. इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हजारों पक्षी लगभग विलुप्त हो चुके है या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे
गिन रहे हैं। हम सबको मिलकर गौरैया का संरक्षण करना ही होगा वरना यह भी
मॉरीशस के डोडो पक्षी और गिद्ध की तरह पूरी तरह से विलुप्त हो जायेंगे।
इसलिए जागिए और बचाइये गौरैया को ताकि बच्चे गा सकें: 'राम जी की चिड़िया, राम जी का खेत. खाओ री चिड़ियों भर-भर पेट' तथा 'चूँ-चूँ करती आयी चिड़िया, दाल का दाना लायी चिड़िया।'
बाल गीत:
"कितने अच्छे लगते हो तुम "
संजीव वर्मा 'सलिल'
*
कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम |
***************************
"कितने अच्छे लगते हो तुम "
संजीव वर्मा 'सलिल'
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कितने अच्छे लगते हो तुम |
बिना जगाये जगते हो तुम ||
नहीं किसी को ठगते हो तुम |
सदा प्रेम में पगते हो तुम ||
दाना-चुग्गा मंगते हो तुम |
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ चुगते हो तुम ||
आलस कैसे तजते हो तुम?
क्या प्रभु को भी भजते हो तुम?
चिड़िया माँ पा नचते हो तुम |
बिल्ली से डर बचते हो तुम ||
क्या माला भी जपते हो तुम?
शीत लगे तो कँपते हो तुम?
सुना न मैंने हँसते हो तुम |
चूजे भाई! रुचते हो तुम |
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