कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 18 जून 2013

geet: udne do... sanjiv

गीत :

उड़ने दो…
संजीव
*
पर मत कतरो
उड़ने दो मन-पाखी को।
कहो कबीरा
सीख-सिखाओ साखी को...
*
पढ़ो  पोथियाँ,
याद रखो ढाई आखर।
मन न  मलिन हो,
स्वच्छ रहे तन की बाखर।
जैसी-तैसी
छोड़ो साँसों की चादर।
ढोंग मिटाओ,
नमन करो सच को सादर।
'सलिल' न तजना
रामनाम  बैसाखी को...
*
रमो राम में,
राम-राम सब से कर लो।
राम-नाम की
ज्योति जला मन में धर लो।
श्वास  सुमरनी
आस अंगुलिया संग चले।
मन का मनका,
फेर न जब तक सांझ ढले।
माया बहिना
मोह न, बांधे राखी को…
*


12 टिप्‍पणियां:

indira pratap ने कहा…

Indira Pratap via yahoogroups.com

संजीव भाई,
रचना दिल छू गई साथ ही कबीर का चित्र दूसे लोक में ले गया, जीवन दर्शन की और आध्यात्म की और ले जाने वाले इस गीत के लिए साधुवाद |
didda

Santosh Bhauwala ने कहा…

Santosh Bhauwala via yahoogroups.com

आदरणीय संजीव जी ,

बड़ा मधुर गीत है साधुवाद !

संतोष भाऊवाला

kanu vankoti ने कहा…

Kanu Vankoti

संजीव जी,
बहुत सुकून देनेवाली अभिव्यक्ति. बहुत प्यारा गीत

ढेर बधाई के साथ,

कनु

deepti gupta ने कहा…

From: deepti gupta <drdeepti25@yahoo.clm

आदरणीय संजीव जी,

बढ़िया रचना, बढ़िया सन्देश!

''पर मत कुतरो ''.........यहाँ 'कुतरो' की जगह यदि 'पर मत कतरों' कर दें तो बेहतर लगेगा! क्योंकि 'पंख कतरे' जाते हैं- कतरना यानी काटना! कुतरता तो चूहा है! हो सकता हैं कि हम आपको गलत लगे! बता दीजिएगा- हम अपनी भ्रान्ति ठीक कर लेगें!

ढेर सराहना के साथ, सादर ......
दीप्ति

बेनामी ने कहा…

Shishir Sarabhai
shishirsarabhai@yahoo.com

पढ़ो पोथियाँ,

याद रखो ढाई आखर।

मन न मलिन हो,

स्वच्छ रहे तन की बाखर।

ये पंक्तियाँ बहुत सुन्दर हैं

ढेर दाद कुबूले

सादर,

शिशिर

Mukesh Srivastava ने कहा…

Mukesh Srivastava

संजीव जी की तारीफ़ करना भी उनकी तुलना में तुच्छ लगता है. फिर भी कहता हूँ कि बहुत मन- भावन लिखा है,

सादर,
मुकेश

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com ने कहा…

Mahesh Dewedy via yahoogroups.com

Sanjeev Ji,
Sundar neetiparak evam adhyatmik kavita hetu badhai,

Mahesh Chandra Dewedy

sanjiv ने कहा…

दिद्दा, संतोष जी, कनु जी, दीप्ति जी, शिशिर जी, मुकेश जी, महेश जी
आपकी पारखी दृष्टि को नमन.
दीप्ति जी!
टंकण त्रुटि हेतु खेद है। वैसे आजकल मनुष्य भी काँट-छाँट और संचय की मूषकी वृत्ति का पर्याय हो चुका है किन्तु मैंने 'पर कतरना' मुहावरे का प्रयोग चाहा है।
मुकेश जी!
मुझ विद्यार्थी का उत्साह बढ़ाकर आप नव लेखन की प्रेरणा देते हैं इसलिए व्यक्तिगत पुस्तक की तुलना में मुझे जीवंत संपर्क को समय देना अधिक उपयुक्त लगता है

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी,
जीवन की सीख देता अति मनभावन है आपका यह गीत l
ढेरों सराहना सहित,
सादर,
कुसुम वीर

murarkasampatdevii@yahoo.co.in ने कहा…



आ. सलिल जी, अति सुन्दर.
बधाई स्वीकारें
सादर,
संपत.


Smt. Sampat Devi Murarka
Writer Poetess Journalist
Srikrishan Murarka Palace,
# 4-2-107/110, 1st floor, Badi Chowdi, nr P. S. Sultan Bazaar,
HYDERABAD; 500095, A. P. (INDIA)
Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
Home +91 (040) 2475 1412
http://bahuwachan.blogspot.com
http://charaiweti.blogspot.in
http://kavyamandir.blogspot.in

sanjiv ने कहा…

दिद्दा जी, कनु जी, संतोष जी, दीप्ति जी, शिशिर जी, मुकेश जी, महेश जी, कुसुम वीर जी, संपत देवी जी

आप की उदार दृष्टि को नमन

deepti angrish ने कहा…

deepti angrish
sub editor, staff reporter at pearls news network

nice writing