दोहा सलिला:
होली हो अबकी बरस
संजीव 'सलिल'
*
होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.
होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.
होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.
होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.
होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.
होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.
होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.
होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.
होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.
होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.
होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.
************
होली हो अबकी बरस
संजीव 'सलिल'
*
होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.
होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.
होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.
होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.
होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.
होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.
होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.
होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.
होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.
होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.
होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.
************
5 टिप्पणियां:
रंग भरी सुन्दर रचना... आभार
- mstsagar@gmail.com
गुझियों में स्वाद आये चाहे न आये ,
दोहे मनभावन है -इस टिप्पणी के साथ ,
'चित्रगुप्त चतुर सुजान ,नरसिंह कछु जानत नैयाँ,
चित्रगुप्त के द्वै कान ,नरसिंह के कान ही नैयाँ ' |
( बुन्देली की एक पहेली पर आधारित )
महिपाल,१/३/१२,ग्वालियर
santosh kumar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
वाह! सलिल जी, होली के दोहों मे घुले रँगों ने मन को सराबोर कर दिया। एक नये तेवर लिए दोहे बहुत भाए। बधाइयाँ।
सन्तोष कुमार सिंह
dks poet ✆ekavita
आदरणीय सलिल जी,
हास्य के रंग से रंगीन दोहों के लिए साधुवाद
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
kusum sinha ✆ ekavita
priy sanjiv ji
bahut sundar ati sundar badhai
kusum
एक टिप्पणी भेजें