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शनिवार, 6 जून 2009

बाल गीत: तोता और कैरी - कृष्णवल्लभ पौराणिक, इंदौर



तोता कैरी खाता है
कुतर -कुतर रह जाता है।

टें-टें करता रहे सदा

बच्चों के मन भाता है।

नहीं अकेला आता है।

मित्र साथ में लाता है।

टहनी पर बैठा होता जब

ताजी कैरी खाता है।

झूम-झूम लहराता है

खा-खाकर इठलाता है।

छोड़ अधूरी कैरी को

दूजी पर ललचाता है।


कभी न गाना गाता है

आम वृक्ष से नाता है।

काट कभी कैरी डंठल को
वह दाता बन जाता है।

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3 टिप्‍पणियां:

महावीर ने कहा…

सुन्दर बाल-गीत है.

छोड़ अधूरी कैरी को
दूजी पर ललचाता है
कभी न गाना गता है
आप वृक्ष से नाता है.
बहुत सुन्दर!
महावीर शर्मा

तुहिना ने कहा…

सरस बाल गीत.

m.m.chatterji ने कहा…

nice one