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गुरुवार, 13 मई 2021

नवगीत

नवगीत:
संजीव
.
खून-पसीने की कमाई
कर में देते जो
उससे छपते विज्ञापन में
चहरे क्यों हों?
.
जिन्हें रात-दिन
काटा करता
सत्ता और कमाई कीड़ा
आँखें रहते
जिन्हें न दिखती
आम जनों को होती पीड़ा
सेवा भाव बिना
मेवा जी भर लेते हैं
जन के मन में ऐसे
लोलुप-बहरे क्यों हों?
.
देश प्रेम का सलिल
न चुल्लू भर
जो पीते
मतदाता को
भूल स्वार्थ दुनिया
में जीते
जन-जीवन है
बहती 'सलिला'
धार रोकते बाधा-पत्थर
तोड़ी-फेंको, ठहरे क्यों हों?
*
१३-५-२०१५ 

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