दोहा मुक्तक
लता-लता पर छा रहा, नव वासंती रंग।
ताल ताल में दे रहीं, मछली सहित तरंग।।
नेह-नर्मदा में नहा, भ्रमर-तितलियाँ मौन-
कली-फूल पी मस्त हैं, मानो मद की भंग।।
५.५.२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
दोहा मुक्तक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें