ज्योतिष: विवाह और नाड़ी मानव जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संस्कार विवाह में बँधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलाने की परिपाटी है। गुण मिलान न होने पर सर्वगुण संपन्न कन्या भी अच्छी जीवनसाथी सिद्ध नहीं होती।गुण मिलाने हेतु अष्टकूटों वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री,गण, राशि व नाड़ी का मिलान किया जाता है। गुण मिलान अष्ट कूट के अंतर्गत नदी ८, भकूट ७, गण मैत्री ६ गृह मैत्री ५, योनि ४, तारा ३, वषय २ तथा वर्ण १ कुल ३६ गुण मान्य हैं। ३२ से अधिक गुण मिलान श्रेष्ठ, २४ से ३१ अच्छा, १८ से २४ माध्यम तथा १८ से कम निषिद्ध माना जाता है। नाड़ी अष्टकूटों में नाड़ी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। नाड़ी व्यक्ति के मन एवं मानसिक ऊर्जा की सूचक होती है। व्यक्ति के निजी संबंध उसके मन एवं भावना से नियंत्रित होते हैं।भावनात्मक समानता या प्रतिद्वंदिता के स्थिति में संबंधों में टकराव होता है। आदि, मध्य तथा अंत्य नाड़ियाँ क्रमश: वात / आवेग, पित्त / उद्वेग एवं कफ / संवेग की सूचक हैं, जिनसे कि संकल्प, विकल्प एवं प्रतिक्रिया जन्म लेती है। नाड़ी के माध्यम से भावी दंपति की मानसिकता, मनोदशा का मूल्यांकन किया जाता है। समान नाड़ी होने पर उस तत्व अधिकता के कारन सामंजस्य तथा संतान की संभावना नगण्य हो जाती है। वर-वधु की समान नाड़ी हो तो विवाह वर्जित तथा विषम नाड़ी हो तो शुभ माना जाता है। ।
आदि नाड़ी- अश्विनी, आर्द्रा पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, हस्ता, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र। मध्य नाड़ी- भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पुर्वाफाल्गुनी,चित्रा, अनुराधा, पुर्वाषाढा, धनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र।अन्त्य नाड़ी- कृतिका, रोहिणी, अश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा, श्रवण, रेवती नक्षत्र। चर्तुनाड़ी एवं पंचनाड़ी चक्र सामान्यत: प्रचलित नहीं हैं। नाड़ी दोष परिहार- क. वर कन्या की समान राशि, भिन्न जन्म नक्षत्र हों या जन्म नक्षत्र समान हों किंतु राशियाँ भिन्न हों। जन्म नक्षत्र समान होने पर चरण भेद हो तो आवश्यक होने पर विवाह किया जा सकता है। ख. विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवति, हस्त, स्वाति, आर्द्रा, पूर्वाभद्रपद इन ८ नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र में वर कन्या का जन्म हो तो नाड़ी दोष नहीं रहता। उत्तराभाद्रपद, रेवती, रोहिणी, विषाख, आद्र्रा, श्रवण, पुष्य, मघा, इन नक्षत्र में भी वर कन्या का जन्म नक्षत्र पड़े तो नाड़ी दोष न मानें। यह मत कालिदास का है। घ. वर एवं कन्या के राशिपति बुध, गुरू या शुक्र में से कोई एक अथवा दोनों के राशिपति एक ही हों तो नाड़ी दोष नहीं रहता है। ङ. ज्योतिष के अनुसार-नाड़ी दोष विप्र वर्ण पर प्रभावी माना जाता है। वर-कन्या दोनों जन्म से विप्र हों तो उनमें नाड़ी दोष प्रबल माना जाता है। अन्य वर्णो पर नाड़ी दोष पूर्ण प्रभावी नहीं रहता। च. सप्तमेश स्वगृही होकर शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो एवं वर-कन्या के जन्म नक्षत्र चरण में भिन्नता हो तो नाड़ी दोष नहीं रहता। विवाह वर्जित- यदि वर-कन्या की नाड़ी एक हो एवं निम्न में से कोई युग्म वर कन्या का जन्म नक्षत्र हो तो विवाह न करें।अ. आदि नाड़ी- अश्विनी-ज्येष्ठा, हस्त-शतभिषा, उ.फा.-पू.भा. अर्थात् यदि वर का नक्षत्र अश्विनी हो तो कन्या नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार कन्या नक्षत्र अश्विनी हो तो वर का नक्षत्र ज्येष्ठा होने पर भी प्रबल नाड़ी दोष होगा। इसी प्रकार आगे के युग्मों से भी अभिप्राय समझें। आ. मध्य नाड़ी- भरणी-अनुराधा, पूर्वाफाल्गुनी-उतराफाल्गुनी, पुष्य-पूर्वाषाढा, मृगशिरा-चित्रा,चित्रा-धनिष्ठा, मृगशिरा-धनिष्ठा। इ. अन्त्य नाड़ी - कृतिका-विशाखा, रोहिणी-स्वाति, मघा-रेवती। नाड़ी दोष उपाय १. वर-कन्या दोनों मध्य नाड़ी में हों तो पुरुष को प्राण भय रहता है। पुरुष महामृत्यंजय जाप करे। वर-कन्या दोनों की नाड़ी आदि या अन्त्य हो तो स्त्री प्राण रक्षा हेतु महामृत्युजय जाप करे। ३. नाड़ी दोष होने पर संकल्प लेकर किसी ब्राह्यण को गोदान या स्वर्णदान करें ४. अपनी सालगिरह पर अपने वजन के बराबर अन्न दान कर ब्राह्मण भोजन कराकर वस्त्र दान करें। ५. अनुकूल आहार (आयुर्वेद के मतानुसार जो दोष हो उसे दोष को दूर करनेवाले आहार) का सेवन व दान करें। ६. वर एवं कन्या में से जिसे मारकेश की दशा हो उसका उपाय दशाकाल तक अवश्य करें।
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