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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

ग़ज़ल नवीन चतुर्वेदी

कर्मवीरों के प्रयासों को डिगा सकते नहीं।
शब्द-सन्धानी 1 कोई बदलाव ला सकते नहीं।।

गुप्त-गाथाएँ पढ़ीं तो दग्ध-अन्तस ने कहा।
“एक धोका खा चुके हैं और खा सकते नहीं”।

अब कहाँ वे लोग जो कहते थे सीना तान कर। 
“सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं”।।

अस्मिता का अर्थ बस उपलब्धि हो जिनके लिए।
इस तरह के झुण्ड निज-गौरव बचा सकते नहीं।।

जो भी कुछ करना है तुमको अब तो कर ही डालिये।
इस तरह हर रोज़ हम लाशें उठा सकते नहीं।।

1 लफ़्फ़ाज़, बकलोल

नवीन सी. चतुर्वेदी

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