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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

तकनीकी आलेख कागनेटिव रेडियो शोभित वर्मा

तकनीकी आलेख 
कागनेटिव रेडियो
शोभित वर्मा 
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आज के इस आधुनिक युग में दूरसंचार के उपकरणों का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इन उपकरणों के द्वारा सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने के लिये वायरलैस माध्यमों द्वारा उपयोग किया जाता है। कई विकसित तकनीकें जैसे वाय-फाय, बलूटूथ आदि इस क्षेत्र में उपयोग की जा रही हैं।
इन सभी वायरलैस तकनीकों को साथ में उपयोग में लाने के कारण स्पेकट्रम की अनउपलब्धता एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। वास्तव में स्पेकट्रम को लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही उपयोग करता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि स्पेक्ट्रम का उपयोग केवल लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता ही कर सके। इस कारण स्पेकट्रम का एक बहुत बड़ा हिस्सा अनुपयोगी ही रह जाता है। स्पेकट्रम का आवंटन सरकार की नीतियों के अनुसार किया जाता
है।
इस समस्या के निराकरण हेतु 1999 में जे. मितोला ने कागनेटिव रेडियो का सिंद्धात प्रस्तुत किया। कागनेटिव रेडियो सिंद्धात के अनुसार जब भी लाइसेंस्ड उपयोगकर्तो स्पेकट्रम का उपयोग न कर रहा ही ऐसे समय में अनलाइसेंस्ड उपभोक्र्ता उस स्पेकट्रम का उपयोग कर सकता है और जैसे ही लाइसेंस्ड उपयोगकर्ता की वापसी होगी, अनलाइसेंस्ड उपयोगकर्ता किसी दूसरे खाली स्पेकट्रम की सहायता से अपना कार्य करने लगेगा। यह प्रक्रिया इस तरह चलती रहेगी जब तक सूचना का आदान-प्रदान नहीं हो जाता।
कागनेटिव रेडियो के बहुत से आयाम हैं जैसे कि स्पेकट्रम सेंसिग, स्पेकट्रम शेयरिंग, स्पेकट्रम मोबीलिटी आदि । हर आयाम अपने आप में शोध का विषय है। कागनेटिव रेडियो पर बहुत से शोध कार्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं । अभी भी इस तकनीक को जमीनी स्तर पर लागू कर पाने में बहुत सी समस्याओं का सामाना करना पड़ रहा है। प्रयास यह भी हो रहे है कि कागनेटिव वायरलैस सेंसर नेटवर्क का विकास किया जाये ताकि वायरलैस संचार के क्षेत्र में प्रगति की जा सके।
भारत में भी इस विषय पर काफी कार्य हो रहा है। यहाँ तक कि इंजीनियरिंग पाठयक्रमों में भी इस विषय को पढ़ाया जा रहा है । यह एक सरहानीय प्रयास है युवा अभियंताओं में इस विषय पर रूचि जगाने का ताकि वह आगे चल कर इस तकनीक को और विकसित करने हेतु प्रयास कर सकें ।

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