मन पाखी उड़
देखा,घबराया
बहुत धुंध है
वसुधैव कुटुम्बकं
मूलमंत्र की धरा
तो खेलरही है
खून की होली
शत्रु मारे हमको
हम मारें शत्रु को
चलता रहा यूँ ही
सिलसिला तो
विधवा, बच्चों
और असहायों
के चीत्कार से
मानवता हो
जायेगी बहरी
देख देख खून
के रंग को
आँखें हो
जायेंगीं अंधी
शाशकों की
चलती रहेगी
राजनीति
कूटनीति
मानवता
रहेगी
कराहती
जल्दी ही
बन्द होना
चाहिए ये
खूनी खेल
डॉ.(श्रीमती) सन्तोष शुक्ला
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