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सोमवार, 3 अप्रैल 2017

vedokta ratri sukta


।। अथ वेदोक्त रात्रि सूक्तं ।।

।। वेदोक्त रात्रि सूक्त।।
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ॐ रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्यक्षभि:। विश्र्वा अधिश्रियोधित ।१।

। ॐ रात्रि! विश्रांतिदायिनी जगत आश्रित। सब कर्मों को देखें, फल दें।१।
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ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्युद्वत:। ज्योतिषा बाधते तम:।२।

।। देवी अमरा व्याप विश्व में, नष्ट करें अज्ञान तिमिर को ज्ञान ज्योति से ।२।
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निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्येति। अपेदु हासते तम: ।३।

। पराशक्ति रूपा रजनी प्रगटा दें ऊषा, नष्ट अविद्या तिमिर स्वत्: हो। ३।
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सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नाविक्ष्महि। वृक्षे न वसतिं वय:।४।

।रात्रि देवी पधारें हों मुदित , सो सकें हम खग सदृश निज घोंसले में।४।
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नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिण:। नि श्येना सश्चिदर्थिन:।५।

। सोते सुख से ग्राम्य जन, पशु, जीव-जंतु,खग, रात्रि अंक में।५।
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यावया वृक्यं वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये। अथा न: सुतरा भव। ६।
।रात्रि देवी! पाप वृक वासना वृकी को, दूर कर सुखदायिनी हो।६।
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उप मा पेपिशत्तम: कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव् यातय। ७।

।घेरे अज्ञान तिमिर ज्ञान दे कर दूर, उषा! उऋण करतीं मुझे दे धन। ७।
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उप ते गा इवाकरं वृणीष्व दुहितर्दिव:। रात्रि स्तोमं न जिग्युषे। ८।
। पयप्रदा गौ सदृश रजनी!, व्योमकन्या!! हविष्य ले लो।३।
२९.३.२०२०
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