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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

goshthi

मुख पुस्तक गोष्ठी 
कवि गोष्ठियों और मुशायरों में कविता के माध्यम से तथा खेतों में लोकगीतों के माध्यम से काव्यात्मक प्रश्न उत्तर अब कम ही सुनने मिलते हैं. आज फेस बुक पर ऐसा एक प्रसंग अनायास ही बन गया. आभार लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला तथा पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी का. इस रोचक प्रसंग का आनंद आप भी लें. यह प्रसंग मेरे पूर्व प्रस्तुत दोहों पर प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी के रूप में सामने आया.   
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला वाह ! बहुत सुंदर आदरणीय -
पगले पग ले बढ़ जरा, ले मन्जिल को जीत,

कहे न पगला फिर तुम्हें, यही जगत की रीत ।
Sanjiv Verma 'salil' 'पा लागू' कर ले 'सलिल', मिलता तभी प्रसाद 
पंडितैन जिस पर सदय, वही रहे आबाद
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी गंगा उल्टी कब बही, कब दिन में हो रात।
बड़े जहाँ 
आशीष दें, बने वहीं पर बात।।
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला वाह ! 
'पा लागू' कहती बहूँ, करे सलिल का मान,
शुभाशीष उसको मिले, जीना हो आसान ।
Sanjiv Verma 'salil' इन्द्रप्रस्थ पर कर रहे, देखें राज्य नरेंद्र 
यह उलटी गंगा बही, बेघर हुए सुरेन्द्र
Sanjiv Verma 'salil' आशा के पग छुए तो, बनते बिगड़े काम 
नमन लक्ष्मण को करो, तुरत सदय हों राम
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी- लाख नेह बहु से मिले, नहीं सुता सा मान
बात बने संजीव सर, बेटी लो अब जान
Sanjiv Verma 'salil' माँ भगिनी भाभी सखी, सुता सभी तव रूप 
जिसके सर पर हाथ हो, वह हो जाता भूप
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दोहों में बतियाय है, दोहों में ही खाय।
दोहा दोहा डग भरे, दोहों में मुस्काय
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला नमन हमेशा राम को, लक्ष्मण तो लघु भ्रात
लक्ष्मण तो सेवक सदा, कहे सभी सम्भ्रान्त ।
Sanjiv Verma 'salil' बड़ा राम से भी अधिक, रहा राम का दास 
कहा आप श्री राम ने, लछमन सबसे ख़ास 
Sanjiv Verma 'salil' दोहा नैना-दृष्टि हैं, दोहा घूंघट आड़ 
दोहा बगिया भाव की, दोहा काँटा-बाड़ 
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दुर्लभ दर्शन संग हैं,राम लखन का जोड़,
लगता है अब आ रहा छंदों में नव मोड़।
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दोहा धड़कन है हिया दोहा ही है देह।
दोहा सर की छाँव है, दोहा ही है गेह।
Sanjiv Verma 'salil' दोहा आशा-रूप है, दोहा भाषा-भाव 
दोहा बिम्ब प्रतीक है, मेटे सकल अभाव 
Sanjiv Verma 'salil' बेंदा नथ करधन नवल, बिछिया पायल हार 
दोहा चूड़ी मुद्रिका, काव्य कामिनी धार
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी मरते छंदों के लिये, दोहा है संजीव।
जहाँ अँधेरा ज्ञान का, बालो दोहा दीव
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दोहा बरखा, या हवा, दोहा जल या रेत।
दोहा फसलें प्रीत की, दोहा हरिया खेत।
Sanjiv Verma 'salil' जीते हिंदी के लिए, मरें छंद पर नित्य 
सुषमा सौरभ छटाएँ, अगणित अमर अनित्य 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला सलिल रचे दोहा यहाँ, जिनसे ज्ञान प्रसार
दोहा मारक छ्न्द है, करते शब्द प्रहार ।
Sanjiv Verma 'salil' जीते हिंदी के लिए, मरें छंद पर नित्य 
सुषमा सौरभ छटाएँ, अगणित अमर अनित्य 
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी दोहा है हथियार ज्यों, दोहा ज्यों तलवार
छोटा है दोहा मगर, तेज बहुत है धार।
Sanjiv Verma 'salil' धारक-तारक छंद है, दोहा अमृत धार 
है अनंत इसकी छटा, 'सलिल' न पारावार 
Sanjiv Verma 'salil' दोहा कोमल कली है, शुभ्र ज्योत्सना पांति 
छंद पखेरू अन्य यह, राजहंस की भांति 
Sanjiv Verma 'salil' जूही चमेली मोगरा, चम्पा हरसिंगार 
तेइस दोहा-बाग़ है, गंधों का संसार 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला दोहा नावक तीर सा, काट सके जो नीर
गागर में सागर भरे, चले शब्द के तीर ।
Sanjiv Verma 'salil' हिन्दुस्तानी सुरभि है, भारतीय परिधान 
दोहा नव आशा 'सलिल', आन-बान सह शान
पंडिताईन आशा हिंदुस्तानी कविता के श्रृंगार का शीश फूल है छंद।
इसके फूलों की महक, भरती मन आनंद
Sanjiv Verma 'salil' दोहा दुनियादार है, दोहा है दिलदार 
घाट नाव पतवार है, दोहा ही मझधार 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला दोहे से सजते यहाँ, आज बहुत से छ्न्द,
दोहा सरसी छ्न्द में, श्रृंगारी मकरन्द ।
Sanjiv Verma 'salil' ज्यों भोजन में जल रहे, दोहा छंदों बीच 
भेद-भाव करता नहीं, स्नेह-सलिल दे सींच 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला आभार हम आपके, लगते 'सलिल' सुजान
छन्दों के ज्ञाता मिले, उनका है सम्मान ।
Sanjiv Verma 'salil' छंदों की महिमा अमित, मनुज न सकता जान, 
'सलिल' अँजुरी-घूँट ले, नित्य करे रस-पान 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला छ्न्द प्रभावी सन्त के, देते आँखे खोल,
दिखा सके जो आइना, सुने उन्ही के बोल ।
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला लाजवाब दोहे रचे,जिनका नहीं जवाब
ज्ञान मिले पढ़कर जिन्हें, खिलता हृदय गुलाब ।
Sanjiv Verma 'salil' रामानुज सम लक्ष को, जो लेता है साध
रामा-राम भजे वही, लक्ष्मण सम निर्बाध 
Usha Saxena बात बात में बात बढ़ गई बातन होगई रार
Sanjiv Verma 'salil' पौ फट ऊषा आ गई, हरने तम अंधियार 
जहाँ स्नेह सलिला बहे, कैसे हो तकरार?
Sanjiv Verma 'salil' शक-सेना संहार कर, दे अनंत विश्वास 
श्री वास्तव में लिए है, खरे मूल्य सह हास 
दिनेश चन्द्र गुप्ता रविकर कांटे छिपाए/ कलरव करेंगे / उगेगा के प्रयोग पर असमंजस है आदरणीय
अवनीश तिवारी सुंदर । एक शंका है  पहला दोहा कुछ खटका अंत मे गुरु लघु नही है ?
Sanjiv Verma 'salil' पहले दोहे के सम चरणों के अंत में गुरु लघु ही है. मात्रा गणना के नियम ठीक से समझें।
Ghanshyam Maithil Amrit मात्रा "भार" से मुक्त एक विचार
ग्राम "ग्राम" अब न रहे,हुए शहर सब सेर,
जंगल में जंगल नहीं, कहां जाएँ अब शेर
Sanjiv Verma 'salil' ग्राम नहीं अब आम हैं, शहर नहीं हैं ख़ास 
सवा सेर हैं स्यार अब, शेर खा रहे घास 
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला आदरणीय -
बात बात से निकलती/ बात निकलती बात से
Sanjiv Verma 'salil' लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला 
बात बात से निकलती, बात न करती बात 
sanjiv 
प्रात रात से निकलता, रात न बनती प्रात
दोहा प्रश्नोत्तर 
घनश्याम मैथिल 'अमृत' 
ग्राम नहीं अब "ग्राम" हैं, हुए शहर सब सेर,
जंगल में जंगल नहीं, कहां जाएँ अब शेर??
*
संजीव  
ग्राम नहीं अब आम हैं, शहर नहीं हैं ख़ास 
सवा सेर हैं स्यार अब, शेर खा रहे घास 
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