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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

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:अलंकार चर्चा  ०९ :   

शब्दावृत्तिमूलक अलंकार 

शब्दों की आवृत्ति से, हो प्रभाव जब खास 
शब्दालंकृत काव्य से, हो अधरों पर हास 

जब शब्दों के बार-बार दुहराव से काव्य में चमत्कार उत्पन्न हो तब शब्दावृत्तिमूलक अलंकार होता है. प्रमुख शब्दावृत्ति मूलक अलंकार [ अ] पुनरुक्तप्रकाश, [आ] पुनरुक्तवदाभास, [इ] वीप्सा तथा [ई]  यमक हैं. चित्र काव्य अलंकार में शब्दावृत्ति जन्य चमत्कार के साथ-साथ चित्र को देखने से उत्पन्न प्रभाव भी चमत्कार उत्पन्न करता है, इसलिए मूलत: शब्दावृत्तिमूलक होते हुए भी वह विशिष्ट हो जाता है. 
पुनरुक्तप्रकाश अलंकार
शब्दों की आवृत्ति हो, निश्चयता के संग 
तब पुनरुक्तप्रकाश का, 'सलिल' जम सके रंग  
पुनरुक्तप्रकाश अलंकार की विशेषता शब्द की समान अर्थ में एकाधिक आवृत्ति के साथ- की मुखर-प्रबल अभिव्यक्ति है. इसमें शब्द के दोहराव के साथ निश्चयात्मकता का होना अनिवार्य है. 
उदाहरण :
१. मधुमास में दास जू बीस बसे, मनमोहन आइहैं, आइहैं, आइहैं  
   उजरे इन भौननि को सजनी, सुख पुंजन छाइहैं, छाइहैं, छाइहैं
   अब तेरी सौं ऐ री! न संक एकंक, विथा सब जाइहैं, जाइहैं, जाइहैं
   घनश्याम प्रभा लखि  सखियाँ, अँखियाँ सुख पाइहैं, पाइहैं, पाइहैं 
   यहाँ शब्दों की समान अर्थ में आवृत्ति के साथ कथन की निश्चयात्मकता विशिष्ट है.
२. मधुर-मधुर मेरे दीपक जल   
   यहाँ 'जल' क्रिया का क्रिया-विशेषण 'मधुर' दो बार आकर क्रिया पर बल देता है. 
३. गाँव-गाँव अस होइ अनंदा 
४. आतंकवाद को कुचलेंगे,  मिलकर कुचलेंगे, सच मानो 
    हम गद्दारों को पकड़ेंगे, मिलकर पकड़ेंगे, प्रण ठानो 
    रिश्वतखोरों को जकड़ेंगे, मिलकर जकड़ेंगे, तय जानो 
    भारत माँ की जय बोलेंगे, जय बोलेंगे, मुट्ठी तानो      
५. जय एकलिंग, जय एकलिंग, जय एकलिंग कह टूट पड़े 
    मानों शिवगण शिव- आज्ञा पा असुरों के दल पर टूट पड़े 
६. पानी-पानी कह पौधा-पौधा मुरझा-मुरझा रोता है 
   बरसो-बरसो मेघा-मेघा धरती का धीरज खोता है 
७. मयूंरी मधुबन-मधुबन नाच 
८. घुमड़ रहे घन काले-काले, ठंडी-ठंडी चली 
९. नारी के प्राणों में ममता बहती रहती, बहती रहती 
१०. विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात 
११. हम डूब रहे दुःख-सागर में, 
    अब बाँह  प्रभो!धरिए, धरिए!
१२. गुरुदेव जाता है समय रक्षा करो, 
१३. बनि बनि बनि बनिता चली, गनि गनि गनि  डग देत
१४. आया आया आया,  भाँति  आया 
१५. फिर सूनी-सूनी साँझ हुई 
गणेश चतुर्थी / विश्वकर्मा जयंती
१७-९--२०१५
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