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शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

alankar charcha: latanupras alankar

:अलंकार चर्चा  ०७ : 

लाटानुप्रास  अलंकार
एक शब्द बहुबार हो, किन्तु अर्थ हो एक 
अन्वय लाट अनुप्रास में,  रहे भिन्न सविवेक 
जब कोई शब्द दो या अधिक बार एक ही अर्थ में प्रयुक्त हो किन्तु अन्वय भिन्न हो तो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है. भिन्न अन्वय से आशय भिन्न शब्द के साथ अथवा समान शब्द के साथ भिन्न प्रकार के प्रयोग से है. 
किसी काव्य पद में समान शब्द एकाधिक बार प्रयुक्त हो किन्तु अन्वय करने से भिन्नार्थ की प्रतीति हो तो लाटानुप्रास अलंकार होता है.  
उदाहरण: 
१. राम ह्रदय, जाके नहीं विपति, सुमंगल ताहि 
    राम ह्रदय जाके नहीं, विपति सुमंगल ताहि 
   जिसके ह्रदय में राम हैं, उसे विपत्ति नहीं होती, सदा शुभ होता है. 
   जिसके ह्रदय में राम नहीं हैं, उसके लिए शुभ भी विपत्ति बन जाता है. 
  अन्वय अल्पविराम चिन्ह से इंगित किया गया है.
२. पूत सपूत तो क्यों धन संचै?
    पूत कपूत तो क्यों धन संचै??
    यहाँ पूत, तो, क्यों, धन तथा संचै शब्दों की एकाधिक आवृत्ति पहली बार सपूत के साथ है तो दूसरी बार कपूत के साथ. 
३. सलिल प्रवाहित हो विमल, सलिल निनादित छंद 
     सलिल पूर्वज चाहते, सलिल तृप्ति आनंद 
    यहाँ सलिल शब्द का प्रयोग चार भिन्न अन्वयों  में द्रष्टव्य है.
४. मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अवतारी थी 
    यहाँ पहले दोनों तेज शब्दों का अन्वय मिला क्रिया के साथ है किन्तु पहला तेज करण करक में है जबकि दूसरा तेज कर्ता कारक में है. तीसरे तेज का अन्वय अधिकारी शब्द से है.
५. उत्त्तरा के धन रहो तुम उत्त्तरा के पास ही 
    उत्तरा शब्द का अर्थ दोनों बार समान होने पर भी उसका अन्वय धन और पास के साथ हुआ है. 
६. पहनो कान्त! तुम्हीं यह मेरी जयमाला सी वरमाला 
   यहाँ माला शब्द दो बार समान अर्थ में है,किन्तु अन्वय जय तथा वार के साथ भिन्नार्थ में हुआ है. 
७. आदमी हूँ, आदमी से प्यार करता हूँ 
    चित्रपटीय गीत की इस पंक्ति में आदमी शब्द का दो बार समानार्थ में प्रयोग हुआ है किन्तु अन्वय हूँ तथा से के साथ होने से भिन्नार्थ की प्रतीति कराता है. 
८. अदरक में बंदर इधर, ढूँढ रहे हैं स्वाद 
    स्वाद-स्वाद में हो रहा, उधर मुल्क बर्बाद 
   अभियंता देवकीनन्दन 'शांत' की दोहा ग़ज़ल के इस शे'र में स्वाद का प्रयोग भिन्न अन्वय में हुआ है. 
९. सब का सब से हो भला 
    सब सदैव निर्भय रहें 
    सब का मन शतदल खिले. 
    मेरे इस जनक छंद (तेरह मात्रक त्रिपदी) में  सब का ४ बार प्रयोग समान अर्थ तथा भिन्न अन्वय में हुआ है. 
***
टिप्पणी: तुझ पे कुर्बान मेरी जान, मेरी जान!
              चित्रपटीय गीत के इस अंश में मेरी जान शब्द युग्म का दो बार प्रयोग हुआ है किन्तु भिन्नार्थ में होने पर भी अन्वय भिन्न न होने के कारण यहाँ लाटानुप्रास अलंकार नहीं है. 'मेरी जान'  के दो अर्थ मेरे प्राण, तथा मेरी प्रेमिका होने से यहाँ यमक अलंकार है. 
गणेश चतुर्थी / विश्वकर्मा जयंती -२०१५ 
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