मित्रों!
भारत सरकार के कुछ विभाग लगातार सोशल सर्कल के माध्यम से जन सामान्य से सुधर हेतु सुझाव मांग रहे हैं. हजारों की संख्या में लोग जुड़े हैं और सुझाव भेज रहे हैं. विस्मय यह है कि उनमें साहित्यकार नहीं हैं. क्या देश और समाज के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं है? क्या केवल कुछ रचनाएँ कर हमारे कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? व्यवस्था में सुधार के सुझावों और प्रयासों में सहयोगी न होने के बाद क्या हमें उनकी कमी बताने या आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए? या हम अपनी अयोग्यता-अक्षमता से भयभीत हैं कि हम कुछ अच्छा कर ही नहीं सकते और कागज काले कर अपने आप को छल रहे हैं? सोचें.....
स्वच्छ भारत अभियान: शासकीय भवनों में राष्ट्रीय स्तर पर वर्गीकरण आधारित वर्गीकरण प्रणाली
स्वच्छता के कुछ मानक सार्वभौमिक और कुछ स्थानीय होते हैं. जैसे हाथ धोकर खाना स्वच्छता का सार्वभौमिक मानक है किन्तु जमीन पर बैठकर खाना या हाथ से खाना स्वच्छता का स्थानीय मानक है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणीकरण उपयोगी हो सकता है किन्तु यह खर्चीला, दिखावटी तथा प्रचारात्मक अधिक होगा. स्वच्छता जन सामान्य के दैनंदिन क्रियाकलापों, आदतों, जीवन शैली तथा आर्थिक क्षमता पर निर्भर करती है. घर पर अस्वस्च्छ रहनेवाला नागरिक शासकीय भवन को भी अस्वच्छ करेगा. शासकीय भवन के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों को भी स्वच्छ रखना होना. अत:, स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए निम्न सुझाव प्रस्तुत हैं:
१. जन जागरण तथा जन शिक्षण: जन सामान्य को अख़बारों, दूरदर्शन, बैठकों, सभाओं, परिसंवादों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से निरंतर तथा नियमित रूप से स्वच्छता का आशय, लाभ, अस्वच्छता से हानियाँ आदि से अवगत कराया जाए.
इस दिशा में धार्मिक प्रवचनकर्ता सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. उनकी बात बहुत बड़े वर्ग के लिए अनुकरणीय होती हैं, खासकर ग्रामीण तथा महिला वर्ग. अपने प्रवचनों में वे दोवी पुरुषों द्वारा स्वच्छता अपनाने की बात कहें, राक्षसी शक्तियों के मलिन रहने का प्रचार करें तथा बताएं कि निंजी, सार्वजनिक या शासकीय स्थल पर अस्वच्छता फैलाना पाप है तो श्रोता पर असर होगा.
स्वच्छता के कुछ मानक सार्वभौमिक और कुछ स्थानीय होते हैं. जैसे हाथ धोकर खाना स्वच्छता का सार्वभौमिक मानक है किन्तु जमीन पर बैठकर खाना या हाथ से खाना स्वच्छता का स्थानीय मानक है. राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणीकरण उपयोगी हो सकता है किन्तु यह खर्चीला, दिखावटी तथा प्रचारात्मक अधिक होगा. स्वच्छता जन सामान्य के दैनंदिन क्रियाकलापों, आदतों, जीवन शैली तथा आर्थिक क्षमता पर निर्भर करती है. घर पर अस्वस्च्छ रहनेवाला नागरिक शासकीय भवन को भी अस्वच्छ करेगा. शासकीय भवन के साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों को भी स्वच्छ रखना होना. अत:, स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए निम्न सुझाव प्रस्तुत हैं:
१. जन जागरण तथा जन शिक्षण: जन सामान्य को अख़बारों, दूरदर्शन, बैठकों, सभाओं, परिसंवादों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से निरंतर तथा नियमित रूप से स्वच्छता का आशय, लाभ, अस्वच्छता से हानियाँ आदि से अवगत कराया जाए.
इस दिशा में धार्मिक प्रवचनकर्ता सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. उनकी बात बहुत बड़े वर्ग के लिए अनुकरणीय होती हैं, खासकर ग्रामीण तथा महिला वर्ग. अपने प्रवचनों में वे दोवी पुरुषों द्वारा स्वच्छता अपनाने की बात कहें, राक्षसी शक्तियों के मलिन रहने का प्रचार करें तथा बताएं कि निंजी, सार्वजनिक या शासकीय स्थल पर अस्वच्छता फैलाना पाप है तो श्रोता पर असर होगा.
२. शासकीय भवनों को मुख्यतः आवासीय (आवास, विश्राम भवन), कार्यालयीन, शैक्षणिक (विद्यालय, महाविद्यालय, विश्व विद्यालय), चिकित्सालय तथा व्याव्सायिक (मंडी), सार्वजनिक (बस अड्डा, रेल स्टेशन, हवाई अड्डा) आदि में वर्गीकृत किया जा सकता है. इनमें आने-जाने वाले लोगों की संख्या, जीवन तथा शिक्षा के स्तर, बिताये जानेवाले समय क्रिया कलाप तथा प्रसाधन सुविधा प्रयोग करने की समयावधि के आधार पर प्रसाधन संसाधनों, उपकरणों, कचरा डब्बों, थूकदानों, स्नानग्रहों, धोवन पात्रों (वाश बेसिनों) आदि की संख्या/मात्रा/किस्म आदि का निर्णय करना होगा. अल्पसंख्यक (विकलांग, रोगी) नागरिकों के लिए विशेष व्यवस्था आवश्यक होगी.
३. लोगों को अपना कचरा आप उठाने की आदत आदत डालना होगी. पर्स-रुमाल की तरह जेब में एक थैली रखना होगी ताकि फल खाकर उसके छिलके, फाड़े हुए कागज़, पान गुटखा आदि के खाली पाउच, बची हुई खाद्य सामग्री आदि उसमें रखकर कचरा पेटी में डाल सकें.
४. तुलसीदास ने मानस में लिखा है 'भय बिन होय न प्रीत' अतः स्वच्छता के प्रति प्रेम जाग्रत करने के लिए निगरानी जरूरी है. अस्वच्छता फ़ैलानेवालों को पहचान कर उन पर आर्थिक दंड के साथ-साथ शारीरिक दंड जैसे कुछ घंटों सार्वजनिक स्थल की सफाई करना देना आवश्यक होगा. अतः कैमरे तथा कर्मचारी जरूरी होंगे.
५. अस्वच्छता भौतिक हो या मानसिक उसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार संभ्रांत, सशक्त, समर्थ शासक तथा नेता वर्ग होता है जो शारीरिक श्रम को नीची निगाह से देखता है तथा उससे दूर रहता है. इस वर्ग (अधिकारी, संचालक, प्रभारी, जनप्रतिनिधि, उद्योगपति आदि) को नियमित रूप से अपने कार्य स्थल पर कुछ समय स्वच्छतापरक गतिविधि से जुड़कर काम करना अनिवार्य हो ताकि उनके अधीनस्थ, अनुयायी आदि प्रेरित हो शेष समय स्वच्छता रखें.
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Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
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