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शनिवार, 16 मई 2015

dwipadi: sanjiv

द्विपदी सलिला
संजीव
*
रूप देखकर नजर झुका लें कितनी वह तहजीब भली थी 
रूप मर गया बेहूदों ने आँख फाड़के उसे तका है
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रंज ना कर बिसारे जिसने मधुर अनुबंध
वही इस काबिल न था कि पा सके मन-रंजना
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घुँघरू पायल के इस कदर बजाये जाएँ
नींद उड़ जाए औ' महबूब दौड़ते आयें
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रन करते जब वीर तालियाँ दुनिया देख बजाती है
रन न बनें तो हाय प्रेमिका भी आती है पास नहीं
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जो गिर-उठकर बढ़ा मंजिल मिली है
किताबों में मिला हमको लिखित है
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दुष्ट से दुष्ट मिले कष्ट दे संतुष्ट हुए
दोनों जब साथ गिरे हँसी हसीं कहके 'मुए'
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सखापन 'सलिल' का दिखे श्याम खुद पर
अँजुरी में सूर्स्त दिखे देख फिर-फिर
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किस्से दिल में न रखें किससे कहें यह सोचें
गर न किस्से कहे तो ख्वाब भी मुरझाएंगे
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अजय हैं न जय कर सके कोई हमको 
विजय को पराजय को सम देखते हैं
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हम हैं काँटे न हमको तुम छूना
जब तलक हो न जाओ गुलाब मियाँ
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