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औरों की तरह "हाँ’ में कभी "हाँ’ नहीं किया
शायद इसीलिए मुझे पागल समझ लिया
जो कुछ दिया है आप ने एहसान आप का
उन हादिसात का कभी शिकवा नहीं किया
उलफ़त न हो ज़लील , मुहब्बत की शान में
वो ज़हर भी दिया तो मैने ज़हर भी पिया
दो-चार बात तुम से भी करनी थी .ज़िन्दगी !
लेकिन ग़म-ए-हयात ने मोहलत नहीं दिया
आदिल बिके हुए हैं जो क़ातिल के हाथ में
साहिब ! तिरे निज़ाम का सौ बार शुक्रिया
क़ानून भी वही है ,सज़ायाफ़्ता वही
मुजरिम को देखने का नज़रिया बदल लिया
’आनन’ तुम्हारे दौर का इन्साफ़ क्या यही !
पैसे की ज़ोर पे वो जमानत है ले लिया
-आनन्द.पाठक-
09413395592
औरों की तरह "हाँ’ में कभी "हाँ’ नहीं किया
शायद इसीलिए मुझे पागल समझ लिया
जो कुछ दिया है आप ने एहसान आप का
उन हादिसात का कभी शिकवा नहीं किया
उलफ़त न हो ज़लील , मुहब्बत की शान में
वो ज़हर भी दिया तो मैने ज़हर भी पिया
दो-चार बात तुम से भी करनी थी .ज़िन्दगी !
लेकिन ग़म-ए-हयात ने मोहलत नहीं दिया
आदिल बिके हुए हैं जो क़ातिल के हाथ में
साहिब ! तिरे निज़ाम का सौ बार शुक्रिया
क़ानून भी वही है ,सज़ायाफ़्ता वही
मुजरिम को देखने का नज़रिया बदल लिया
’आनन’ तुम्हारे दौर का इन्साफ़ क्या यही !
पैसे की ज़ोर पे वो जमानत है ले लिया
-आनन्द.पाठक-
09413395592
1 टिप्पणी:
बहुत खूब. आनंद मिला.
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