गीत:
अमिताभ त्रिपाठी
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सुन रहे हो
बज रहा है मृत्यु का संगीत
मृत्यु तन की ही नहीं है
क्षणिक जीवन की नहीं है
मर गये विश्वास कितने
पर क्षुधा रीती नहीं है
रुग्ण-नैतिकता समर्थित
आचरण की जीत
सुन रहे हो.....
ताल पर हैं पद थिरकते
जब कोई निष्ठा मरी है
मुखर होता हास्य, जब भी
आँख की लज्जा मरी है
गर्व का पाखण्ड करते
दिवस जाते बीत
सुन रहे हो....
प्रीति के अनुबन्ध हो या
मधुनिशा के छन्द हो या
हों युगल एकान्त के क्षण
स्वप्न-खचित प्रबन्ध हों या
छद्म से संहार करती
स्वयं है सुपुनीत
सुन रहे हो....
पहन कर नर-मुण्ड माला
नाचती जैसे कपाला
हँसी कितने मानवों के
लिये बनती मृत्युशाला
वर्तमानों की चिता पर
मुदित गाती गीत
सुन रहे हो.....
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